दलित चिंतक पारस नाथ जिज्ञासु ने कहा कि जब तक सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक जीवन में दलित समाज का प्रतिनिधित्व नहीं होता तब तक उनके जीवन में बदलाव नहीं आ सकता। उन्होंने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के वक्तव्य का हवाला देते हुए कहा कि समाज में आज मरे हुए लोगों के विचार जिंदा लोगों पर थोपे नहीं जा सकते। समय के साथ यह बदलाव जरूरी है, तभी डा. अंबेडकर के स्वप्न और संघर्ष का साकार रूप सामने आ सकता है।
जिज्ञासु बुधवार को यहां आकाशवाणी में डा. भीमराव अंबेडकर जयंती के परिप्रेक्ष्य में आयोजित परिसंवाद 'अंबेडकर का स्वप्न और हमारा समाज' विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। पूर्वोत्तर रेलवे के पूर्व मुख्य परिचालन प्रबंधक राकेश त्रिपाठी ने अपने तार्किक वक्तव्य में यह साबित किया कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी समाज में दलितों के साथ अन्य समाजों के भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जो समता, स्वाधीनता के अधिकार से वंचित हैं। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के ¨हदी विभागाध्यक्ष प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि डा. अंबेडकर को इतिहास कभी भुला नहीं सकता, लेकिन अंबेडकरवादियों को यह आज विचार करने की जरूरत है कि अंबेडकर खुद टुकडों-टुकडों में नहीं सम्पूर्ण बदलाव के पक्षधर थे।
समाजवादी चिंतक फतेह बहादुर सिंह ने कहा कि अंबेडकर ने आजादी के आंदोलन में आजादी के प्रश्नों को गौण मानते हुए दलित मुक्ति का स्वप्न देखा था। उनका मानना था कि आजादी मिल भी जाएगी तो भी जो सामाजिक गुलामी है उससे दलितों की मुक्ति नहीं हो सकती। डा. अजीज अहमद ने अंबेडकर के अवदान की चर्चा करते हुए कहा कि अगर वे न होते तो आज स्वतंत्रता, समता और बंधुता के मुद्दे हमारी व्यवस्था से गायब होते और लोकतंत्र की जडे़ मजबूत नहीं होती। पूजा ने कहा कि आज स्त्री समाज व दलित समाज में कोई मौलिक भेद नहीं दिखाई देता है। आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रमुख डा. अरविंद त्रिपाठी ने कहा कि डा. अंबेडकर मुक्तिकामी कालजयी व्यक्तित्व थे। संगोष्ठी को प्रो. जनार्दन, डा. हरेंद्र शर्मा, डा. सुधाकर पांडेय व इं. जयराम शर्मा ने भी संबोधित किया। आरंभ में नूतन मिश्रा ने डा. भीमराव अंबेडकर के जीवन का सफरनामा प्रस्तुत किया।
अतिथियों का स्वागत आकाशवाणी के अभियात्रिकी प्रमुख एके शर्मा ने किया। आभार ज्ञापन केपी कुशवाहा व संचालन डा. प्रेमनारायण भट्ट ने किया।
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