मेरा रेडियो से बचपन से ही लगाव रहा। यह वो समय था जब कि सभी पत्र-पत्रिकाओं में खासतौर पर त्यौहारों के मौके पर रेडियो व ट्रांजिस्टरों के विज्ञापनों की भरमार रहती थी। मरफी व फिलिप्स दो प्रमुख कंपनियांथी। मरफी के विज्ञापनों में जो घुंघराले बालों वाला बच्चा छपता था उसे लेकर भी कहानियां छपती रहती थी कि वह कौन व कितना बड़ा है। आज इस रेडियो चीज का एक भी विज्ञापन नहीं मिलता है। है। उन दिनों वह चर्चा में रहता था व शहर भर मेंउसकी चर्चा होती थी। यह वो समय था जबकि मध्यम वर्ग के लिए रेडियो या ट्रांजिस्टर बहुत बड़ी चीज माना जाता था। जिनके घर यह होता था वे उसे खबरें सुनने के लिए बहुत जोर से चलाते थे। इसकी खासियत यह होती थी कि अगर आप सामानखरीदने बाजार जाएं तो आपकी खबर जरा भी नहीं छूटती थी क्योंकि लोग इतनी तेजी से इसे बजाते थे कि आप चलते हुए सब सुन सकते थे। उन दिनों जनता के मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडिया ही हुआ करता था। किसी के घर या चाय कीदुकान पर तेजी से यह बजता और लोग कान लगाए बैठे रहते। तब रात को हमारे मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो ही होता था। आपको रेडियो सिलोन स्टेशन याद है? जिसमें हिंदी फिल्मों के से गाने आते थे! और बिनाका गीत माला की रातें!वह मेरा प्रसंदीदा कार्यक्रम था। रेडियो अतीत की चीज बन गया है। उस समय बड़े और संपन्न लोग शादियों में दामाद को रेडियो जरूर देते थे। अब लोग गाना भी सुनते हैं तो मोबाइल में। कुछ दिनों बाद नई पीढ़ी रेडियो को सिर्फ संग्रहालय मेंदेखेगी। कहीं अतीत न बन जाए रेडियो. .रेडियो एक जमाने से लोगों की सेवा करता आ रहा है। गाँवों के बड़े-बूढ़े अपने ज़माने के एक दौर को याद कर भावुक हो जाते हैं, आज के टेलीविज़न, मोबाइल और इंटरनेट के ज़माने में रेडियो संग्रहालय की वस्तु बन गया है। रेडियो बाज़ारों सेलगभग गुम हो गया है। इसके मेकैनिक अब नहीं रहे। काम नहीं मिलने से उन्होंने अब दूसरे कामों को अपना लिया है। हालाँकि गावों में अब भी इसका कुछ अस्तित्व है। पुराने लोग अब भी रेडियो सुनते हैं, लेकिन इनकी संख्या गिनती की है। रेडियो आज भी मेरे पास है।मैं रेडियो पर बीबीसी की ख़बरें और हवा महल कार्यक्रम रोज सुनता हूँ। एक बार खाना खाना भूल सकते हूँ, पर रेडियो पर हवा महल और समाचार सुनना नहीं।रेडियो के बिना मैं नहीं रह सकता। रात में विविध भारतीके भूले-बिसरे गीत और छाया गीत सुन लेता हूँ, तो सारी थकान दूर हो जाती है।