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कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने मीडिया को कैरियर नहीं बल्कि शौक और सेवा के लिए चुना था।अपने कार्यकाल या आजीविका के दौरान तो उन्होंने ढेर सारे इनोवेटिव और एक्सक्लुसिव काम किये ही अब रिटायरमेंट के बाद भी साहित्य सृजन के माध्यम से अपने ज्ञान,अनुभव और विशिष्टता को बांट रहे हैं।उनकी निरंतर सृजनात्मकता के कारण ऐसे कर्मयोगियों पर हमें गर्व का अनुभव होता है।पिछले दिनों ब्लॉग लेखक की मुलाकात आकाशवाणी समाचार जगत के एक ऐसे ही स्फूर्तिमान पुरोधा 76वर्षीय श्री राम सागर शुक्ला से उनके आवास पर हुई ।श्री शुक्ला भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी के रुप में अपर महानिदेशक समाचार जैसे पद से सेवानिवृत्त होकर गोमतीनगर, लखनऊ में अपने आवास में इन दिनों रहते हैं।वे भारत नेपाल सम्बन्धों पर विशेषता रखते हैं।इन दिनों स्लिप डिस्क के चलते अस्वस्थ चल रहे हैं।प्रसार भारती ब्लॉग के वे नियमित पाठक हैं।रिटायरमेंट के बाद उनकी लिखी "नहीं यह सच नहीं"(कविता संग्रह)," "अनजान पड़ोसी:भारत नेपाल","काला धन कथा","रेडियो टी.वी.समाचार कैसे लिखें","वन चले राम रघुराई" आदि पुस्तकें छप चुकी हैं।पिछले दिनों उनकी एक और पुस्तक "एशिया के ज्योतिपुंज गुरु गोरखनाथ" छपकर आई है ।रामकथा के एक अनन्य पात्र श्री हनुमान पर भी उन्होंने एक अंग्रेजी की पुस्तक Hanuman -The Victor and the Benevolent लिखी है।उन्होंने बताया कि जहां एक पुस्तक में योग के उत्थान और हिन्दी के विकास में योगी गोरखनाथ के योगदान पर उन्होंने प्रकाश डाला है वहीं दूसरी पुस्तक में हनुमानजी के बारे में उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला है।गुरु गोरखनाथ पुस्तक के अग्रलेख में उ.प्र.के मुख्यमंत्री, जो श्री गोरक्षनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर भी हैं,ने लिखा है कि" महायोगी गुरु गोरखनाथ जैसी दिव्य विभूति पर पुस्तक का सृजन कर आपने एक पुनीत कार्य किया है।इसके लिए मैं आपको साधुुवाद ज्ञापित करता हूूं।मुझे आशा है कि यह पुस्तक युवा पीढ़ी के लिए विशेष रुप से प्रेरणादायी सिद्ध होगी "
श्री शुक्ला के दो सुयोग्य सेवारत पुत्र ,पुत्र वधुएं और एक एल.एल.एम.डिग्री धारी पुत्री हैं जो बैंक में कार्यरत हैं।उनकी योजना आगामी वर्षों में रामायण के अन्य सभी पात्रों पर विस्तार से एक एक पुस्तक लिखना है जिससे वर्तमान में फैलाये जा रहे ढेर सारे भ्रमों पर से सप्रमाण आवरण हटाया जा सके।इस पर उन्होंने काम भी शुरू कर दिया है और उसी कड़ी में हनुमानजी पर छपी उनकी अंग्रेजी पुस्तक पहली कड़ी है।

प्रसार भारती परिवार अपने इन पुरोधा के साहित्यिक कार्य कौशल की प्रशंसा करते हुए अपनी शुभकामनाएं व्यक्त कर रहा है।

द्वारा योगदान :- श्री.प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ,darshgrandpa@gmail.com.

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