प्रसार भारती परिवार ब्लॉग के नियमित लेखक , आकाशवाणी लखनऊ के सेवानिवृत्त कार्यक्रम अधिकारी श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी और उनकी पत्नी श्रीमती मीना त्रिपाठी की एकमात्र संतान शहीद लेफ्टिनेंट यश आदित्य( आई.सी.68122-एच.) के शहादत की दसवीं वर्षगांठ पर 5 सितम्बर को उनका स्मृति पर्व मनाया जा रहा है |उनकी स्मृति में हर वर्ष इस दिन परिजन और हितैषी मिलजुल कर श्री रामचरित मानस के सुन्दर काण्ड का पाठ किया करते हैं |अपने पुकार नाम " प्रतुल " के नाम से विख्यात लेफ्टिनेंट यश आदित्य का जन्म 02 जनवरी 1985 को गोरखपुर में हुआ था |वर्ष 2000 में गोरखपुर के एयरफोर्स स्कूल से हाईस्कूल टॉप करने के बाद यश आदित्य अपने मौसा डिप्टी एस.पी. श्री ओ०पी० मणि त्रिपाठी और मौसी श्रीमती ममता के सानिध्य में उनके ही घर रहकर लखनऊ के सिटी मांटेसरी स्कूल महानगर से प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट उत्तीर्ण कर लिया | मात्र 17 वर्ष की उम्र में अपनी मेधा के बल पर वर्ष 2001 में यश आदित्य ने 2 से 4 मार्च 2001 तक श्रीलंका में आयोजित तीन दिवसीय वर्ल्ड पार्लियामेंट फार यूथ में भारत के प्रतिनिधि युवाओं की टीम के एक सदस्य के रूप में भाग लिया था |यश आदित्य अपने मूल गाँव विश्व नाथपुर (खजनी ) गोरखपुर और अपने संयुक्त परिवार के पहले ऐसे युवा थे जिन्होंने एक ओर तो अपने कुल का परचम अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर विदेश में लहराया दूसरी ओर सेना को अपना कैरियर बना कर परिवार का नाम रौशन किया |इसके लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की उ.प्र. इकाई ने उन्हें "नगर के गौरव श्री" सम्मान से नवाज़ा |
इंटर की पढाई के दौरान ही उन्होंने एन.डी.ए. के 108वें कोर्स की लिखित परीक्षा दे दी थी और भारतीय थल सेना के लिए चुने गए 182 युवाओं की सूची में इनका नाम सर्वोच्च था | 22 मार्च 2002 को इलाहाबाद कैंट में उनकी एस.एस.बी.परीक्षा सम्पन्न हुई और 20 अप्रैल 2002 को उन्हें उत्तीर्ण होने की घोषणा मिली |बाद में मेडिकल आदि के बाद 27 जून 2002 से एन.डी.ए.खडगवासला पुणे में उनका सैन्य प्रशिक्षण शुरू हुआ |यश के पितामह आचार्य प्रतापादित्य,बड़े पापा प्रोफेसर एस.सी.त्रिपाठी और उनकी दादी श्रीमती सरोजिनी त्रिपाठी अति प्रसन्न हुईं |आगे चल कर 10 जून 2006 का वह एतिहासिक क्षण भी अभिभावकों को देखने को मिला जब आई.एम.ए. देहरादून में " अंतिम पग" पार करके उनका बेटा लेफ्टिनेंट बनकर भारतीय सेना के लिए मर मिटने को संकल्पबध्द हो गया |अपने प्रशिक्षण के दौरान यश ने कम्पूटर साइंस में बी.एस.सी. और सैन्य अध्ययन और रक्षा प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी |उन्हें भारतीय सेना की 7 मैकेनाइज़्ड इन्फैन्ट्री (1 डोगरा) रेजिमेंट में शामिल किया गया और अति दुर्गम स्थान लेह में उनकी पोस्टिंग हुई | वहां सी .ओ.कर्नल संजीव शर्मा का सानिध्य मिला और विपरीत जलवायु और पारिवारिक पृष्ठभूमि में पले और बढ़े होने के बावजूद अपनी निष्ठा के कारण बहुत कम दिनों में वे उनके सबसे प्रिय अफसर भी हो गए |वर्ष 2007 की शुरुआत में उन्हें कमांडो की खतरनाक ट्रेनिंग के लिए भी भेजा गया और ट्रेनिंग पूरी करके लेह लौटते ही उनकी पलटन सुरक्षा अधिकारी के रूप में उन्हीं के नेतृत्व में झांसी के लिए रवाना हो गई |इसी यात्रा में 29 अगस्त 2007 को लुधियाना रेलवे स्टेशन पर मिलिट्री स्पेशल ट्रेन के पिछले हिस्से में मिलिट्री टैंक के वैगन के बाहर निकले एक बोर्ड को अन्दर धकेलते हुए उनके साथ इलेक्ट्रिक फ्लैश बर्न की एक लोमहर्षक दुर्घटना हुई और वे 70% बर्न के मरीज़ के रूप में लुधियाना के क्रिश्चियन मेडिकल कालेज हास्पिटल के आई.सी.यू.में भर्ती कराए गए |तमाम कोशिशों के बावजूद 5 सितम्बर 2007 की भोर में इस 22 वर्षीय युवा (अविवाहित) सैन्य अधिकारी ने अपनी शहादत दे दी | नितांत मृदुभाषी,कुशाग्र,सहनशील और कर्म तत्पर युवा की असमय शहादत पर पूरा देश रो उठा था | निःसंदेह लेफ्टिनेंट यश आदित्य की कम समय की इस लोकयात्रा ने अनेक कीर्तिमान रचे हैं |ऊँचे वेतनमान और विदेश में नौकरी पाने के लिए मल्टी नेशनल कम्पनियों की ओर भागने वाले आज के भारतीय युवाओं के लिए यश का जीवन अनुकरणीय है |प्रसार भारती परिवार को इस बात का गर्व है कि उसके परिवार के इस युवा ने कैरियर के लिए सेना को चुनकर देश के लिए अपने जीवन की कुर्बानी दे दी है |
विख्यात मनोवैज्ञानिक लानी जैकब ने ठीक ही कहा है कि वे लोग जिनका भावनात्मक रुप से अपने प्रियजनों के साथ जुड़ाव बना रहता है वे उनके जाने के बाद भी उन्हें हमेशा अपने क़रीब महसूस करते रहते हैं।सचमुच पंचभौतिक शरीर में भले ही यश आज विद्यमान नहीं हैं लेकिन उनकी स्मृतियां अजर अमर हैं।लेफ्टिनेंट यश की शहादत को पूरे प्रसार भारती परिवार का सलाम !