यह तो सभी जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कथक नृत्य शैली को नई पहचान लखनऊ से मिली थी।यहीं गुरु कालिका बिन्दादीन महाराज ने कथक नृत्य को नई ऊंचाई प्रदान की थी और अपने तीनों बेटों अच्छन महाराज,शंभू महाराज और लच्छू महाराज को एक प्राचीन और सिद्ध मंदिर में घुंघरु देकर गुरु मंत्र दिया था । वह मंदिर है शिव के पांचवे अवतार माने जाने वाले बटुक भैरव नाथ जी का ।इस 3 सितम्बर रविवार को लखनऊ के संगीत और नृत्य प्रेमियों की बहु- प्रतीक्षित घुँघरु वाली रात आ रही है और इस रात एक बार फ़िर होगा संगीत साधकों का जमघट और होगी विशेष आराधना ,पूजा पाठ और गुरु-शिष्य दीक्षा का कार्यक्रम । सुरों के महाराज बटुक भैरव का मंदिर एक बार फिर गवाह बनेगा उन एतिहासिक क्षणों की स्मृतियों को जीवंत करने का ।
लखनऊ शहर के व्यस्ततम क्षेत्र अमीनाबाद के गुइन रोड पर बटुक भैरवनाथ का सैकड़ों वर्ष पुराना मंदिर है। माना जाता है कि बटुक भैरवनाथ जी सुरों के राजा हैं, इसलिए यहाँ माँगी जाने वाली मन्नतें भी कला, संगीत और उसकी साधना से जुड़ी होती है। मान्यता है कि यहीं लखनऊ कथक घराने के धुरंधरों ने अपने पैरों में घुँघरू बाँध कथक शिक्षा का ककहरा सीखा था ।इस प्रकार एक मायने में गीत,संगीत और नृत्य का यह गहन और सिद्ध साधना स्थल है। । भगवान शिव के पांचवे अवतार भैरव जी की कलियुग में पूजा-अर्चना अत्यन्त फलदायी मानी गयी है। जिस तरह शिव-पूजा के लिए सावन माह को विशिष्ट माना जाता है, ठीक उसी तरह भाद्रपद माह को भैरव-पूजा के लिए उत्तम माना गया है। भक्त यहां पर प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाते हैं।आगामी रविवार (अर्थात 3 सितम्बर 2017 ) को घुँघरू वाली रात है, इसी दिन बटुक भैरवनाथ से आशीर्वाद लेकर नई पीढ़ी के संगीत साधक अपनी साधना प्रारम्भ करेंगे । इसी रात कथक के लखनऊ घराने के वर्तमान उस्तादों के हाथों अपने शागिर्द के पैरों में घुँघरु बांधे जायेंगे और उन घुंघरुओं की लयबद्ध खनक और संगीत की मधुर तान एक बार फ़िर वहाँ बिखरे इतिहास के सुनहरे पृष्ठ खोलते नज़र आयेंगे ।मंदिर में विराजमान बटुक भैरवनाथ जी महाराज को सोमरस प्रिय है, इसलिए अनेक भक्तजन तदनुकूल प्रसाद चढ़ाकर भैरवनाथ बाबा को प्रसन्न करते हैं। संगमरमरी आभायुक्त मंदिर परिसर और उसके आसपास इसी दिन से हफ्तों तक मेले जैसा माहौल होता है।आसपास के ज़िलों से भी लोग आया करते हैं ।आकाशवाणी दूरदर्शन से जुड़े इतिहासकार डा. योगेश प्रवीन ने ब्लाग लेखक को बताया कि इस बटुक भैरवनाथ मंदिर का इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना है। यहाँ भैरवजी अपने बाल रूप में विराजमान हैं। बटुक भैरव को लक्ष्मणपुर का रक्षपाल भी कहा जाता है। दोष, दु:ख, दुष्टों के दमन के लिए बटुक भैरव की उपासना की जाती है। उनका कहना है कि बटुक भैरव की यह मूर्ति 1000-1100 वर्ष पुरानी है। गोमती नदी तब मंदिर के करीब से बहती थी। यहाँ पास ही श्मशान भी था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार बलरामपुर इस्टेट के महाराजा ने कराया था। जनपद इलाहाबाद की हण्डिया तहसील से एक मिश्रा परिवार यहाँ आया और उसी परिवार ने कथक की बेल रोपी थी । कथक घराने के कालका-बिंदादीन की ड्योढ़ी के बस ठीक पीछे ही है यह मंदिर । यहीं पर कथक गुरु लच्छू महाराज की प्रथम शिष्या यश भारती पुरस्कृत कुमकुम आदर्श ने भी शिष्यता ग्रहण की थी।
सचमुच,कथक नृत्य के लखनऊ घराने पर हमें नाज़ है।