पार्वती देवी को दवा पिलाते सईद हुसैन। |
सईद हुसैन की कद काठी छोटी जरूर है मगर दिल बहुत बड़ा। एक बार जो मिलेगा वह निश्चित ही उनकी सहजता, सरलता और समर्पण का कायल हो जाएगा। मल्ला गोरखपुर में रहने वाले कुंवर सिंह कबड़वाल को वह अपना बड़ा भाई मानते हैं। 1965 में बरेली से काम की तलाश में हल्द्वानी आए सईद को कुंवर सिंह ने अपने घर पर रखा। तब कुंवर सिंह का मक्खन का कारोबार था।
रेडियो मैकेनिक के वहां से सईद ने नौकरी छोड़ी तो कुंवर सिंह ने ही उनके लिए दुकान खोल ली। फिर क्या था, दो भाइयों के रिश्तों की जड़ें इतनी मजबूत हो गईं कि उसे आज तक कोई हिला नहीं पाया। दोनों ने 1985 में मल्ला गोरखपुर में संयुक्त रूप से जमीन खरीदी, एक ही मकान बनवाया। एक ही छत के नीचे रहने के संकल्प के साथ। कुंवर तीन साल पहले स्वर्ग सिधार गए। इसके बाद तो सईद की जिम्मेदारी और बढ़ गई।
अब बीमार भाभी की सेवा में जुटे
हल्द्वानी। सईद को इन दिनों चिंता है तो कुंवर सिंह की पत्नी पार्वती देवी की। वह उन्हें भाभी पुकारते हैं। पार्वती बीमार हैं। उन्हें दोनों टाइम दवा देने से लेकर हफ्ते में दो दिन अस्पताल ले जाने की जिम्मेदारी सईद की है। इसके लिए वह दो दिन अपनी दुकान बंद रखते हैं। भतीजा शिवराज प्राइवेट नौकरी करता है। दूसरा भतीजा जितेंद्र उर्फ राहुल स्वास्थ्य विभाग में है। बड़ी बहू गीता घर संभालती है। भतीजी लखनऊ में पढ़ रही है और भतीजा हल्द्वानी में। गीता कहती हैं कि हमारा तो सहारा ही दद्दा हैं। पार्वती देवी भी इस अटूट रिश्ते को याद कर भावुक हो जाती हैं। कुंवर सिंह के परिवार के सदस्य में रूप में सईद ऐसे रम गए कि अपना घर नहीं बसा पाए। उनके परिवार के लोग पीलीभीत में रहते हैं। दोनों परिवारों का एक दूसरे के वहां आना-जाना लगा रहता है। यहां घर में पैसे का कोई हिसाब नहीं है। जिसे जब जरूरत पड़े एक दूसरे से मांग लेते हैं।
सईद हुसैन के बोल
-आप ब्लेड से अपनी और मेरी अंगुली से खून निकालें, फिर बताएं कि हिंदू का खून कौन सा है मुसलमान का कौन सा। अंतर नहीं कर पाएंगे ना... फिर ये नफरत कैसी।
-सब अपना खा रहे हैं.. सब अपना पहन रहे हैं..अपने काम में मस्त हैं... फिर ये अलगाव कैसा।
Forwarded By:Jhavendra Kumar Dhruw