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जी हां ,20 जुलाई 1950 को आकाशवाणी के बहु आयामी प्रसारण की दुनियां में संगीत के अखिल भारतीय कार्यक्रमों के प्रसारण का सिलसिला प्रारम्भ हुआ था।यूं तो इसके पूर्व ही आकाशवाणी ने अपनी स्थापना के समय से ही राजा रजवाड़ों,नवाबों और कोठों पर संरक्षित संगीत को सम्मानजनक मंच और श्रोता प्रदान कर दिये थे।लेकिन संगीत के अलग अलग क्षेत्रों की विशेष प्रस्तुतियों के लिए एक बड़े मंच की ज़रुरत थी जो इस माध्यम से इसको अखिल भारतीय स्वरुप देकर पूरी की गई।अपनी इस अनवरुद्ध 67 साल की रोमांचक यात्रा में इस कार्यक्रम ने अनेक नये आयाम दिए।आगे चलकर रेडियो संगीत सम्मेलनों ने तो चार चांद लगा दिये।अब हर साल आकाशवाणी संगीत सम्‍मेलन समारोह का सजीव आयोजन देश के लगभग दो दर्जन आकाशवाणी स्‍टेशनों पर किया जाने लगा है जिसमें हिन्‍दुस्‍तानी तथा कर्नाटक संगीत के कलाकार भाग लेते हैं।इतना ही नहीं आकाशवाणी ने क्षेत्रीय ,लोक तथा सुगम संगीत के भी सजीव समारोह करने आरंभ कर किए जो आकाशवाणी संगीत सम्‍मेलन के समकक्ष ही हैं। संगीत के अ.भा.कार्यक्रमों,आकाशवाणी संगीत सम्‍मेलनों आदि का प्रयोजन अपने देश की समृद्ध लोक सांस्‍कृतिक विरासत और कला को सामने लाना, प्रोत्‍साहन देना और आगे बढ़ाना है। उधर नई प्रतिभाओं की खोज के लिए आकाशवाणी द्वारा अखिल भारतीय संगीत प्रतिस्‍पर्द्धा का आयोजन किया जाता है। आकाशवाणी संगीत प्रतिस्‍पर्द्धा युवाओं के बीच मौजूद नई प्रतिभाओं की खोज और तलाश के लिए एक नियमित कार्यक्रम है। हिन्‍दुस्‍तानी/कर्नाटक संगीत की श्रेणी में हर साल कई नई प्रतिभाओं को जोड़ा गया है।चयनित युवा कलाकारों को ग्रेड देकर सम्मान और प्रोत्साहन मिलता है।

संगीत के अ.भा.कार्यक्रमों का प्रसारण दिल्ली केन्द्र से प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को प्राय:एक या डेढ़ घंटे का होता है और लगभग सभी केन्द्र इसे रिले करते हैं।इसकी रिकार्डिंग में अन्य केन्द्रों का भी योगदान होता है।संगीत के नामचीन कलाकार इसमें अपनी प्रस्तुतियां देकर आज भी विशेष गौरव का अनुभव करते हैं।इससे जुड़ी एक रोचक घटना आकाशवाणी -दूरदर्शन के उप महानिदेशक पद से रिटायर्ड डा.सतीश कुमार ग्रोवर ने ब्लाग रिपोर्टर से शेयर की जो प्रसंगवश पाठकों से शेयर कर रहा हूं।यह बात उन दिनों की है जब ग्रोवर साहब आकाशवाणी लखनऊ में के.नि.पद पर काम कर रहे थे।इसके पूर्व वे आकाशवाणी वाराणसी में वर्षों संगीत के कार्यक्रम अधिकारी रह चुके थे और भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां साहब उन्हें बहुत प्यार करते थे।उन्हीं उस्ताद जी की रिकार्डिंग का दिल्ली से इसी अ.भा.संगीत कार्यक्रम में प्रसारण होना था और प्रसारण के दो तीन दिन पहले पता चला कि टेप ग़ायब है।सबके होश उड़ गये कि अब तो किसी न किसी की नौकरी गयी।बिस्मिल्ला खां साहब के सामने जाने और फ़िर से उसी फ़ीस में रिकार्डिंग करवा पाने की किसी को हिम्मत नहीं हो पा रही थी ।दिल्ली के सम्बन्धित अधिकारी ने लखनऊ और वाराणसी एक करते हुए इस विपत्ति से उबरने की गुहार लगाई तो संकट मोचक की भूमिका में डा.ग्रोवर को आना पड़ा।वे टूर पर वाराणसी गये और स्टेशन से सीधे उस्ताद जी के घर पहुंचे।उनकी ख़ैर सलामती पूछने के बाद उस्ताद जी ने जब लखनऊ से वाराणसी आने का कारण पूछा तो ग्रोवर साहब ने संकोच करते हुए बताया कि दिल्ली से फ़ोन आया है कि आपकी रिकार्डिंग की थोड़ी क्वालिटी ख़राब मिली है इसलिए एक बार फ़िर से आपको उसी रिकार्डिंग के लिए ज़हमत उठानी होगी ......

उस्ताद जी पहले तो ख़ूब गुस्साए ।बड़बड़ाए...बड़े लापरवाह हो आप लोग..उसी वक़्त क्वालिटी चेक कर लिए होते..लेकिन या ख़ुदा... फ़िर राजी हो गये।और,उसी फ़ीस में आकाशवाणी वाराणसी में फ़िर से उनकी रिकार्डिंग सम्पन्न हुई और वह टेप मैसेन्जर के हाथ दिल्ली भेजा गया। सबकी जान में जान आई ।इस तरह सुचारु रुप से ठीक समय पर यह प्रसारण सम्पन्न हुआ।डा.ग्रोवर आज भी उन लमहों को याद करते हुए ,उस्ताद जी के अपने प्रति प्यार को याद कर भावुक हो उठते हैं। ऐसा कम ही हो पाता है कि हम अपनी रोजमर्रा की आफ़िशियल दिनचर्या में किसी बड़े कलाकार के इतना आत्मीय बन सकें।ऐसे ही गुणी अधिकारियों,वादक कलाकारों के सहयोग से आज भी संगीत की दुनियां में आकाशवाणी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है जिसकी हर कलाकार भूरि भूरि प्रशंसा करता है।

ब्लाग रिपोर्ट:प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,लखनऊ।,prafulla kumar Tripathi darshgrandpa@gmail.com

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