यूं तो लखनऊ आकाशवाणी केन्द्र से मेरा बचपन से ही नाता रहा है। लेकिन मेरे जेहन में एफएम आने के बाद जो यादें बसी हैं वो बहुत खास हैं। 20 अगस्त 2000 से 100.7 मेगाहर्ट्ज पर जब एफएम का प्रसारण हुआ तो इसे रेडियो के पुनर्जन्म का नाम दिया गया। यह पूरी तरह से इंटरटेनमेंट चैनल हुआ करता था। इनमें से हैलो एफएम लाइव फोन इन प्रोग्राम काफी पॉपुलर हुआ। आप यूं समझिए कि आधे घंटे के प्रोग्राम के दौरान कैसरबाग फोन एक्सचेंज ब्लॉक हो जाया करता था। हमारे पास शिकायतें आती थीं कि आपका फोन नहीं मिलता। इसके अलावा गुडमॉर्निंग लखनऊ और एफएम मेहमान कार्यक्रम ने भी उस वक्त खूब धूम मचाई थी। एफएम मेहमान के हमारे पहले मेहमान के.पी.सक्सेना थे। मैं ही तीनों प्रोग्राम का संचालन करती थी। हालांकि मैं उस वक्त ऑफिसर पद पर तैनात थी लेकिन लोग मुझे उद्घोषक ही समझते थे।
-रमा अरुण त्रिवेदी, प्रोग्राम हेड, दूरदर्शन
आकाशवाणी लखनऊ साहित्य और कला का पर्याय है
मैंने 1969-2002 तक लखनऊ आकाशवाणी में सेवाएं दीं। यहां की खासियत रही कि इसने कला के पारखियों को तलाशा और उन्हें खुद से जोड़ा। इस तलाश में डिग्रियों की कभी कोई जगह नहीं रही। जिसकी वजह से हमारे साथ वो लोग भी जुड़े जो कभी स्कूल तक नहीं गए। इनमें ढोलक वादक बफाती भाई जैसे कई नाम शामिल है। दूसरा यहां के प्रोग्राम के किरदार बहुत पॉपुलर हुए। जैसे पंचायत घर के रमईकाका, पलटू/ झपेटे, बालसंघ के रज्जन लाल उर्फ भैया और दीदी के किरदार। प्रोग्राम की बात करूं तो पत्र के लिए धन्यवाद और प्रसारित नाटकों को श्रोताओं का खूब प्यार मिला।
-शारदा लाल, रिटायर्ड प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव, आकाशवाणी
बेगम अख्तर को दी नई जिन्दगी:
गज़ल गायिका अख्तरी बाई फैजाबादी ने 1945 में बैरिस्टर इश्ताक अहमद अब्बासी से निकाह किया। जब दोनों के बीच शादी की बात हुई तो शर्त रखी गई कि वह संगीत से रिश्ता तोड़ लेंगी। जिस पर बेगम अख्तर राजी हो गई। लेकिन 5 साल तक आवाज की दुनिया से दूर रहने का सदमा वह बर्दाश्त न कर सकीं और बीमार रहने लगीं। हकीम और डॉक्टर की दवा ने भी कोई असर न किया, नतीजन उनकी तबियत बिगड़ने लगी। हालातों को देखकर पति और घर वालों ने आकाशवाणी में गाने की इजाजत दे दी। पहला प्रोग्राम ठीक से न गा सकने की वजह से अखबार में उनकी काबिलियत पर अंगुली उठाई गई। लेकिन उसके बाद आकाशवाणी की वजह से उन्होंने अपनी खोई पहचान वापस पा ली।
-पृथ्वी राज चौहान, स्टेशन डायरेक्टर, आकाशवाणी
हमारी शैली आज भी वही है
आकाशवाणी का अब तक का सफर बहुत शानदार रहा है। आज भी हम अपनी पुरानी शैली पर काम कर रहे हैं, शालीन भाषा का प्रयोग करना हमारी कोशिश रहती है। हमारे पुराने प्रोग्राम के नाम जरूर बदल गए हैं लेकिन कंटेंट में कोई बदलाव नहीं है।
अनुपम पाठक, हेड प्रोग्रामिंग एग्जीक्यूटिव, आकाशवाणी
साभार : नवभारत टाइम्स, 19 फरवरी 2018
श्रेय :- श्री. जावेंद्र कुमार ध्रुव जी के फेसबुक अकाउंट से