जिन्होंने हिंदी फ़िल्म संगीत को लोक धुनों और शास्त्रीय संगीत पर आधारित न जाने कितने नायाब गीतों के ख़ज़ाने से सजाया, ज़ाती ज़िन्दगी में वो उतने ही सरल, सहज और विनम्र थे। बरसों पहले एक बार उनके लखनऊ आने पर मुझे उनसे मुलाक़ात करने का सौभाग्य मिला था। कितना शिष्ट और सौम्य व्यक्तित्व। मैंने शाम को उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दिया जिस पर उन्होंने बेहिचक आधा घंटे के लिए आना स्वीकार किया, क्योंकि शाम को उन्हें कहीं और जाना था। बिल्कुल समय पर शाम 6 बजे एक सज्जन को लेकर वो हमारे यहां तशरी़फ लाए, मेरी ख़ुशी का आप अंदाज़ नहीं लगा सकते, तीन दशक तक एक से बढ़कर एक कर्णप्रिय गानों की धुनों के रचयिता नौशाद साहब मेरे घर पधारे थे।ख़ैर, बातें शुरू हुईं 1944 में उनकी सबसे पहली हिट फ़िल्म, "रतन" के गानों से, फिर तो जो बातों का सिलसिला शुरू हुआ, उनके गानों में हमारी गहरी रुचि देख कर वो बड़े ख़ुश हुए। फिर तो उन्होंने अपनी शादी से लेकर विभिन्न गानों की धुनें बनाने तक के अपने संस्मरण ऐसे रोचक अंदाज़ में सुनाए कि कब 9.30 बज गए पता ही नहीं चला।
उनका एक रोचक संस्मरण आपसे शेयर करना चाहूंगी। उनके वालिद साहब संगीत के सख़्त ख़िलाफ़ थे, किसी तरह बंबई भाग कर ये संघर्ष करते रहे और 1944 आते आते उनकी ,"रतन" फ़िल्म release हुई और गाने सुपर हिट हो रहे थे। ऐसे में इनकी शादी तय हुई और ससुराल में बताया गया कि लड़का बंबई में tailor है। ख़ैर बारात चली, ये नौशा मियां बने घोड़ी पर बैठे थे, और बैंड वाले इस बात से बेख़बर इन्हीं की फ़िल्म,"रतन" के गाने बजा रहे थे," अंखियां मिला के, जिया भरमा के, चले नहीं जाना"और "मिल के बिछड़ गईं अंखियां"।लता मंगेशकर और शमशाद बेगम को एकसाथ माइक पर कैसे बैलेंस करते थे, मुग़ल- ए - आज़म में "प्यार किया तो डरना क्या" में कैसे उस ज़माने में echo effect दिया, कैसे "मेरे महबूब" के निर्माता एच. एस. रवैल ने उन्हें उस फ़िल्म का मेहनताना एक पैसा नहीं दिया, कैसे ,"अंदाज़" फ़िल्म के लिए लता से उन्होंने ,"उठाए जा उनके सितम" गाना रिकॉर्ड किया, उस वक़्त लता को सुनने वालों में राज कपूर और दिलीप कुमार भी वहां मौजूद थे, लता कितनी नर्वस थीं लेकिन एक टेक में उन्होंने ये गाना रिकॉर्ड किया ..... न जाने कितनी रोचक बातें उन्होंने बताईं।
मुझसे, "आपकी परछाइयां" फ़िल्म की ग़ज़ल,"अगर मुझसे मोहब्बत है" सुन कर बहुत ख़ुश हुए, बताने लगे कि कैसे ये गाना सुनकर आधी रात को मदन मोहन को उन्होंने बधाई दी थी। वो मेरी ज़िन्दगी की एक बेहद यादगार शाम थी जिसके बारे में सोच सोच कर मन अब भी भावुक और उदास हो जाता है।
जाने चले जाते हैं कहां, दुनियां से जाने वाले......
स्त्रोत -श्रीमती निर्मला कुमारी (पूर्व समाचार वाचिका एवं वरिष्ठ गायिका)की फेसबुक वाल
द्वारा योगदान :-श्री प्रफ्फुल कुमार त्रिपाठी ,darshgrandpa@gmail.com