लेखिका कवयित्री मीनू रानी दुबे नहीं रही। बीते शनिवार (2 मई) को सीढ़ियों से उतरते समय वह लड़खड़ा कर गिर पड़ी थीं। सिर में गंभीर चोट लगने के कारण उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां सोमवार दिनांक 4 मई की दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 63 वर्ष की थीं। वह अपने पीछे माता-पिता तीन बहनों और दो भाइयों से भरापूरा परिवार छोड़ गई हैं।
शाम को दारागंज घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। भाई सर्वेश दुबे ने मुखाग्नि दी। लाकडाउन की वजह से छोटा भाई रत्नेश अमरोहा और बहन रंजना तिवारी प्रतापगढ़ से नहीं आ सकीं।
स्त्री स्वाभिमान की पक्षधर मीनू रानी दुबे की एक सहेली को दहेज के लिए जला कर मार डाला गया था। इस घटना से आहत होकर उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था। मनोरमा के संपादकीय विभाग से जुड़े रहने के अतिरिक्त उन्होंने गंगा-यमुना सहित देश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विधाओं में स्वतंत्र लेखन किया।
सामाजिक सेवा का व्रत उन्होंने स्कूली जीवन से ही ले लिया था। उनके समाजसेवी कार्यों के लिए इनरव्हील क्लब ने उन्हें 5 वर्षों की मानद सदस्यता दी थी तो वह रोटरी और लेडीज क्लब सहित अनेक सामाजिक, साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़ी रहीं।
वह आकाशवाणी के बाल संघ कार्यक्रम से पांच वर्ष की उम्र से ही जुड़ गई थीं। रेडियो के लिए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम तैयार किए। वह दूरदर्शन महानिदेशालय की ओर से टेली फिल्म और धारावाहिकों की संस्तुति समिति की सम्मानित सदस्य भी थीं।
उनके निधन पर गीतकार यश मालवीय, अजामिल, डॉ श्लेष गौतम, रविनंदन सिंह, सुधीर अग्निहोत्री ने शोक जताया है।
मीनू रानी दुबे का जाना बहुत ही दुखी, उदास कर गया है। वह सभी के सुख दुख की सहभागी रहती थीं। वह इलाहाबाद की हर छोटी बड़ी घटनाएं साझा करतीं थीं। उनमें मेल मिलाप का भाव बहुत ज्यादा था और इसीलिए वह सब को अपना बना लेती थीं।
-ममता कालिया, कथा लेखिका
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मीनू रानी दुबे का जाना दुखद है। वह अपने समय से संवाद करते हुए साहित्यिक पत्रकारिता को गतिशील बनाए हुए थीं। आजीवन स्त्री स्वाभिमान के लिए जूझने वाली कथा लेखिका को मेरा शत-शत नमन है।
Source : झावेन्द्र कुमार ध्रुव