आकाशवाणी की आवाज़ विनोद कश्यप ने ही देश को भारत-चीन युद्ध, भारत पाकिस्तान युद्ध ( 1965, 1971), नेहरू जी और लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के समाचार सुनाए थे।
गुजरे जमाने की आकाशवाणी की लोकप्रिय समाचार वाचिका विनोद कश्यप जी की प्रथम पुण्यतिथि है. उनका विगत वर्ष (2019) में स्वर्गवास हो गया। 30 वर्षों से अधिक समय तक अपनी आवाज़ से समाचारों को घर घर पहुंचाने वाली विनोद जी 1992 मे आकाशवाणी से रिटायर हुईं थीं। उनकी मृत्यु किसी हिन्दी अखबार या खबरिया चैनल के लिए खबर नहीं बनी। विनोद कश्यप ने ही देश को भारत-चीन युद्ध, भारत पाकिस्तान युद्ध ( 1965, 1971), नेहरू जी और लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के समाचार सुनाए थे।
विनोद कश्यप का संबंध एक पंजाबी परिवार से था, फिर भी उनका हिन्दी का उच्चारण शानदार था। उन्हें देवकीनंदन पांडे के बाद आकाशवाणी के सबसे लोकप्रिय समाचार वाचक के रूप में देखा जाता था। वो प्राय: आकाशवाणी के सुबह 8 बजे या फिर रात 9 बजे के 15 मिनट के बुलेटिनों को पढ़ा करती थीं। इन दोनों बुलेटिनों को करोड़ों लोग सुन कर देश-दुनिया की हलचलों को जान पाते थे। वो बताती थीं कि हालांकि उन्होंने तीन दशकों तक आकाशवाणी पर हजारों बार खबरें पढ़ीं, पर श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या की खबर देश को देना वो हमेशा याद रखेंगी. उस खबर को पढ़ने से वो पहले कांप रही थी। इतनी बड़ी शख्सियत की मृत्यु का सामाचार पढ़ना कोई आसान नहीं था। उन्हें राजीव गांधी की मौत से जुड़ी खबर देश को सुनाना भी याद था. उनके जेहन में उस बुलेटिन की यादें हमेशा रहीं. उसे पढ़ना बेहद कठोर था। 'मुझे याद है, उस दिन आकाशवाणी न्यूज रूम का माहौल. बेहद गमगीन था. मैंने जैसे-तैसे खबर को पढ़ा। आप खुद ही समझ सकते हैं कि उस बुलेटिन को पढ़ते वक्त मेरी किस तरह की मानसिक स्थिति रही होगी' एक बार उन्होंने बताया था।
विनोद कश्यप अपना आदर्श देवकी नंदन पांडे और अशोक वाजपेयी को मानती थीं। वो इन दोनों के खबरों के पढ़ने के स्टाइल की कायल थी. वो कहती थीं कि पांडे जी बहुत कद्वार शख्सियत थे। इन लोगों से बहुत मार्गदर्शन मिलता था. नुक्ते के प्रयोग से लेकर शब्दों के सही उच्चारण के स्तर पर। खबरों और साहित्य की दुनिया पर जबर्दस्त पकड़ थी उनकी. बड़े बलंडर करने पर वे डांटते या अपमानित नहीं करते थे, समझाते थे। उन्होंने आकाशवाणी न्यूज की कई पीढ़ियों को तैयार किया।
आकाशवाणी और खबरिया चैनलों की खबरों के अंतर पर वो कहती थीं कि हमारे दौर में समाचारों का मतलब दिन भर की घटनाओं को दर्शकों के समक्ष बिना किसी निजी राय या दृष्टिकोण के परोसना होता था. समाचार जैसे होते थे प्रस्तुत कर दिए जाते थे. अब तो खबरें तोड़-मरोड़ कर पेश करना सामान्य माना जाता है. अब खबरों की विश्वसनीयता समाप्त हो गई है. उस दौर में माता-पिता अपने बच्चों से समाचार देखने को कहते थे, ताकि वे सही उच्चारण समझ सकें. आज के खबरिया चैनलों पर तंज कसते हुए विनोद कश्यप जी कहती थीं उस दौर में 15 सेकेंड की फुटेज से आधे घंटे खेला नहीं जाता था. तब रात 8 बजे का बुलेटिन मेन रहता था.
निश्चित रूप से प्राइवेट टीवी चैनलों के कोलाहाल से पहले खबरों को समाचार वाचक पढ़ते हुए शोर नहीं करते थे। आकाशवाणी में उनके साथ दशकों समाचार वाचक रहे राजेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि विनोद जी दफ्तर कभी एक मिनट भी देर से नहीं पहुंचती थीं. वो वक्त की पाबंद थीं। वो अपने जूनियर साथियों को कस देती थी जो समय पर दफ्तर नहीं पहुंचते थे. वो हरेक ड्यूटी करने के लिए सदैव तत्पर रहती थीं।उन्होंने रात की ड्यूटी करने से परहेज नहीं किया. विनोद जी अपने काम से काम में मतलब रखती थीं। उनकी शख्सियत काफी धीर-गंभीर थी. उनकी अपने काम के प्रति निष्ठा और समर्पण का भाव कमाल अनुकरणीय था। वो आकाशवाणी से रिटायर होने के बाद बागवानी में हाथ आजमाने लगीं. उनकी बागवानी में गहरी दिलचस्पी थी। वो पढ़ती भी बहुत थीं। धर्म, साहित्य, राजनीति जैसे विषयों पर उनका गहरा अध्ययन था। उनकी आवाज को अब 40-50 की उम्र पार गई पीढ़ी भूलेगी नहीं. वो उस दौर में खबरें पढ़ा करती थीं जब खबरों को गंभीरता से सुना जाता था। तब खबरें नौटंकी के अंदाज से नहीं पढ़ी जाती थीं।
प्रथम पुण्यतिथि पर प्रसार भारती परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।
द्वारा योगदान :-श्री. झावेंद्र कुमार ध्रुव ,jhavendra.dhruw@gmail.com.
द्वारा योगदान :-श्री. झावेंद्र कुमार ध्रुव ,jhavendra.dhruw@gmail.com.