PM's today's speech ( Hindi)

मेरे प्यारे देशवासियों,
 कुछ ही घंटों के बाद हम सब 2017 के नववर्ष का स्वागत करेंगे। भारत के सवा सौ करोड़ नागरिक नया संकल्पनईउमंगनया जोशनए सपने लेकर स्वागत करेंगे।
 दीवाली के तुरंत बाद हमारा देश ऐतिहासिक शुद्धि यज्ञ का गवाह बना है। सवा सौ करोड़ देशवासियों के धैर्य औरसंकल्पशक्ति से चला ये
शुद्धि यज्ञ आने वाले अनेक वर्षों तक देश की दिशा निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाएगा।
 ईश्वर दत्त मानव स्वभाव अच्छाइयों से भरा रहता है। लेकिन समय के साथ आई विकृतियोंबुराइयों के जंजाल मेंवो घुटन महसूस करने लगता है। भीतर की अच्छाई के कारणविकृतियों और बुराइयों की घुटन से बाहर निकलने केलिए वो छटपटाता रहता है। हमारे राष्ट्र जीवन और समाज जीवन में भ्रष्टाचारकालाधनजालीनोटों के जाल नेईमानदार को भी घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था।
उसका मन स्वीकार नहीं करता थालेकिन उसे परिस्थितियों को सहना पड़ता थास्वीकार करना पड़ता था।
 दीवाली के बाद की घटनाओं से ये सिद्ध हो चुका है कि करोड़ों देशवासी ऐसी घुटन से मुक्ति के अवसर की तलाश कररहे थे।
 हमारे देशवासियों की अंतर ऊर्जा को हमने कई बार अनुभव किया है। चाहे सन 62 का बाहरी आक्रमण हो, 65 काहो, 71 का होया कारगिल का युद्ध होभारत के कोटि-कोटि नागरिकों की संगठित शक्तियों और अप्रतिमदेशभक्ति के हमने दर्शन किए हैं। कभी ना कभी बुद्धिजीवी वर्ग इस बात की चर्चा जरूर करेगा कि बाह्य शक्तियों केसामने तो देशवासियों का संकल्प सहज बात हैलेकिन जब देश के कोटि-कोटि नागरिक अपने ही भीतर घर कर गईबीमारियों के खिलाफबुराइयों के खिलाफविकृतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरते हैंतो वोघटना हर किसी को नए सिरे से सोचने के लिए प्रेरित करती है।

 दीवाली के बाद लगातार देशवासी दृढ़संकल्प के साथअप्रतिम धैर्य के साथत्याग की पराकाष्ठा करते हुएकष्टझेलते हुएबुराइयों को पराजित करने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।
जब हम कहते हैं किकुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारीइस बात को देशवासियों ने जीकर दिखाया है।
 कभी लगता था सामाजिक जीवन की बुराइयां-
विकृतियां जाने अनजाने मेंइच्छा-अनिच्छा से हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। लेकिन 8 नवंबर के बाद कीघटनाएं हमें पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती हैं।
सवा सौ करोड़ देशवासियों ने तकलीफें झेलकरकष्ट उठाकर ये सिद्ध कर दिया है कि हर हिंदुस्तानी के लिए सच्चाईऔर अच्छाई कितनी अहमियत रखती है।
 काल के कपाल पर ये अंकित हो चुका है कि जनशक्ति का सामर्थ्य क्या होता हैउत्तम अनुशासन किसे कहते हैं,अप-प्रचार की आंधी में सत्य को पहचानने की विवेक बुद्धि किसे कहते हैं। सामर्थ्यवानबेबाक-बेईमानी के सामनेईमानदारी का संकल्प कैसे विजय पाता है।
 गरीबी से बाहर निकलने को आतुर जिंदगीभव्य भारत के निर्माण के लिए क्या कुछ नहीं कर सकती। देशवासियोंने जो कष्ट झेला हैवो भारत के उज्जवल भविष्य के लिए नागरिकों के त्याग की मिसाल है।
सवा सौ करोड़ देशवासियों ने संकल्प बद्ध होकरअपने पुरुषार्थ सेअपने परिश्रम सेअपने पसीने से उज्जवलभविष्य की आधारशिला रखी है।
 आमतौर पर जब अच्छाई के लिए आंदोलन होते हैं तो सरकार और जनता आमने-सामने होती है। ये इतिहास कीऐसी मिसाल है जिसमें सच्चाई औऱ अच्छाई के लिए सरकार और जनतादोनों मिलकर कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाईलड़ रहे थे।
 मेरे प्यारे देशवासियों,
 मैं जानता हूं कि बीते दिनों आपको अपना ही पैसा निकालने के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ापरेशानी उठानीपड़ी। इस दौरान मुझे सैकड़ों-हजारों चिट्ठियां भी मिली हैं। हर किसी ने अपने विचार रखे हैंसंकल्प भी दोहराया है।साथ ही साथ अपना दर्द भी मुझसे साझा किया है। इन सबमें एक बात मैंने हमेशा अनुभव कीआपने मुझे अपनामानकर बातें कहीं हैं। भ्रष्टाचारकालाधनजालीनोट के खिलाफ लड़ाई में आप एक कदम भी पीछे नहीं रहना चाहतेहैं। आपका ये प्यार आशीर्वाद की तरह है।
 अब प्रयास है कि नए वर्ष में हो सकेउतना जल्दीबैंकों को सामान्य स्थिति की तरफ ले जाया जाए। सरकार में इसविषय से जुड़े सभी जिम्मेदार व्यक्तियों से कहा गया है कि बैंकिंग व्यवस्था को सामान्य करने पर ध्यान केंद्रितकिया जाए। विशेषकर ग्रामीण इलाकों मेंदूर-दराज वाले इलाकों में प्रो-एक्टिव होकर हर छोटी से छोटी कमी को दूरकिया जाए ताकि गांव के नागरिकों कीकिसानों की कठिनाइयां खत्म हों।
  प्यारे भाइयों और बहनों,
 हिंदुस्तान ने जो करके दिखाया हैऐसा विश्व में तुलना करने के लिए कोई उदाहरण नहीं है। बीते 10-12 सालों में1000 और 500 के नोट सामान्य प्रचलन में कम और पैरेलल इकॉनोमी में ज्यादा चल रहे थे। हमारी बराबरी कीअर्थव्यवस्था वाले देशों में भी इतना कैश नहीं होता।
हमारी अर्थव्यवस्था में बेतहाशा बढ़े हुए ये नोट महंगाई बढ़ा रहे थेकालाबाजारी बढ़ा रहे थेदेश के गरीब से उसकाअधिकार छीन रहे थे
 अर्थव्यवस्था में कैश का अभाव तकलीफदेह हैतो कैश का प्रभाव और अधिक तकलीफदेह है। हमारा ये प्रयास है किइसका संतुलन बना रहे। एक बात में सभी अर्थशास्त्रियों की सहमति है कि कैश अथवा नगद अगर अर्थव्यवस्था सेबाहर है तो विपत्ति है। वही कैश या नकद अगर अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में हो तो विकास का साधन बनता है।
 इन दिनों करोड़ों देशवासियों ने जिस धैर्य-अनुशासन औऱ संकल्प-शक्ति के दर्शन कराएं हैंअगर आज लाल बहादुरशास्त्री होतेजय प्रकाश नारायण होतेराम मनोहर लोहिया होतेकामराज होतेतो अवश्य देशवासियों को भरपूरआशीर्वाद देते।
 किसी भी देश के लिए ये एक शुभ संकेत है कि उसके नागरिक कानून औऱ नियमों का पालन करते हुएगरीबों कीसेवा में सरकार की सहायता के लिए मुख्यधारा में आना चाहते हैं। इन दिनोंइतने अच्छे-अच्छे उदाहरण सामनेआए हैं जिसका वर्णन करने में हफ्तों बीत जाएं। नकद में कारोबार करने पर मजबूर अनेक नागरिकों ने कानून-नियम का पालन करते हुए मुख्यधारा में आने की इच्छा प्रकट की है। ये अप्रत्याशित है। सरकार इसका स्वागतकरती है।
 मेरे प्यारे देशवासियों,
  हम कब तक सच्चाइयों से मुंह मोड़ते रहेंगे। मैं आपके सामने एक जानकारी साझा करना चाहता हूं। औऱ इसे सुननेके बाद या तो आप हंस पड़ेंगे या फिर आपका गुस्सा फूट पड़ेगा। सरकार के पास दर्ज की गई जानकारी के हिसाब सेदेश में सिर्फ 24 लाख लोग ये मानते हैं कि उनकी आय
10 लाख रुपए सालाना से ज्यादा है। क्या किसी देशवासी के गले ये बात उतरेगी?
आप भी अपने आसपास बड़ी-बड़ी कोठियांबड़ी-बड़ी गाड़ियों को देखते होंगे। देश के बड़े-बड़े शहरों को ही देखें तोकिसी एक शहर में आपको सालाना 10 लाख से अधिक आय वाले लाखों लोग मिल जाएंगे।
 क्या आपको नहीं लगता कि देश की भलाई के लिए ईमानदारी के आंदोलन को और अधिक ताकत देने की जरूरतहै।
 भ्रष्टाचारकालेधन के खिलाफ इस लड़ाई की सफलता के कारण ये चर्चा बहुत स्वाभाविक है कि अब बेईमानों काक्या होगाबेईमानों पर क्या बीतेगीबेईमानों को क्या सज़ा होगी। भाइयों और बहनोंकानूनकानून का कामकरेगापूरी कठोरता से करेगा। लेकिन सरकार के लिए इस बात की भी प्राथमिकता है कि ईमानदारों को मदद कैसेमिलेसुरक्षा कैसे मिलेईमानदारी की जिंदगी बिताने वालों की कठिनाई कैसे कम हो। ईमानदारी अधिक प्रतिष्ठितकैसे हो।
  ये सरकार सज्जनों की मित्र है और दुर्जनों को सज्जनता के रास्ते पर लौटाने के लिए उपयुक्त वातावरण को तैयारकरने के पक्ष में है।
 वैसे ये भी एक कड़वा सत्य है कि लोगों को सरकार की व्यवस्थाओंकुछ सरकारी अफसरों और लालफीताशाही सेजुड़े कटु अनुभव होते रहते हैं। इस कटु सत्य को नकारा नहीं जा सकता। इस बात से कौन इनकार कर सकता है किनागरिकों से ज्यादा जिम्मेदारी अफसरों की हैसरकार में बैठे छोटे-बड़े व्यक्ति की है। औऱ इसलिए चाहे केंद्र सरकारहोराज्य सरकार हो या फिर स्थानीय निकायसबका दायित्व है कि सामान्य से सामान्य व्यक्ति के अधिकार कीरक्षा होईमानदारों की मदद हो और बेईमान अलग-थलग हों।
 दोस्तों,
 पूरी दुनिया में ये एक सर्वमान्य तथ्य है कि आतंकवादनक्सलवादमाओवादजाली नोट का कारोबार करने वाले,ड्रग्स के धंधे से जुड़े लोगमानव तस्करी से जुड़े लोगकालेधन पर ही निर्भर रहते हैं। ये समाज और सरकारों के लिएनासूर बन गया था। इस एक निर्णय ने इन सब पर गहरी चोट पहुंचाई है। आज काफी संख्या में नौजवान मुख्यधारामें लौट रहे हैं। अगर हम जागरूक रहेंतो अपने बच्चों को हिंसा और अत्याचार के उन रास्तों पर वापस लौटने सेबचा पाएंगे।
 इस अभियान की सफलता इस बात में भी है कि अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से बाहर जो धन थावो बैंकों केमाध्यम से अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में वापस  गया है। पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से ये सिद्ध हो चुका है किचालाकी के रास्ते खोजने वाले बेईमान लोगों के लिएआगे के रास्ते बंद हो चुके हैं। टेक्नॉलोजी ने इसमें बहुत बड़ीसेवा की है। आदतन बेईमान लोगों को भी अब टेक्नोलॉजी की ताकत के कारणकाले कारोबार से निकलकर कानून-नियम का पालन करते हुए मुख्यधारा में आना होगा।
 साथियों,
 बैंक कर्मचारियों ने इस दौरान दिन-रात एक किए हैं। हजारों महिला बैंक कर्मचारी भी देर रात तक रुककर इसअभियान में शामिल रही हैं। पोस्ट ऑफिस में काम करने वाले लोगबैंक मित्रसभी ने सराहनीय काम किया है। हां,आपके इस भगीरथ प्रयास के बीचकुछ बैंकों में कुछ लोगों के गंभीर अपराध भी सामने आए हैं। कहीं-कहीं सरकारीकर्मचारियों ने भी गंभीर अपराध किए हैं औऱ आदतन फायदा उठाने का निर्लज्ज प्रयास भी हुआ है। इन्हें बख्शा नहींजाएगा।
 ये देश के बैंकिंग सिस्टम के लिए एक स्वर्णिम अवसर है। इस ऐतिहासिक अवसर पर मैं देश के सभी बैंकों से आग्रहपूर्वक एक बात कहना चाहता हूं। इतिहास गवाह है कि हिंदुस्तान के बैंकों के
[Message clipped]  View entire message

Subscribe to receive free email updates: