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आकाशवाणी महानिदेशालय से सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक राजभाषा डा. कृष्ण नारायण पाण्डेय का दिनांक 8 सितंबर, 2017 को दुखद देहान्त हो गया । डा. पाण्डे ने आकाशवाणी लखनऊ से सरकारी सेवा प्रारम्भ की थी और भारत सरकार के विभिन्न विभागों में सेवारत रहते हुए आकाशवाणी महानिदेशालय से सन् 2010 में सेवानिवृत्त हुए । वे जहां भी रहे उन्होंने सरकारी कामकाज में राजभाषा के प्रयोग को बढाने के लिए अनथक और महत्वपूर्ण कार्य किये । राजभाषा नियमों के क्रियान्वयन और राजभाषा सम्मेलनों के आयोजन कर उन्होंने राजभाषा के प्रचार प्रसार के लिए सक्रियता बनाए रखी । राजभाषा के विकास और प्रचार तथा हिन्दी भाषा की सेवा में उनके विशेष योगदान के लिए 2007 में भारत सरकार ने उन्हे संयुक्त राज्य अमेरिका, न्युयार्क में आयोजित आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में प्रतिभागी बनाकर भेजा । 
डा. पाण्डे सरकारी काम के अतिरिक्त संस्कृत भाषा के प्रचार के लिए समर्पित कार्यकर्ता की तरह कार्य करते थे । वे चार घण्टों की अल्प समायावधि में किसी भी हिन्दी या अंग्रेजी भाषी व्यक्ति को संस्कृत बोलना सिखा सकते थे । संस्कृत के प्रचार के लिए उन्होंने गांवों, तीर्थस्थानों में होने वाले मेलों, कवि सम्मेलनों, विश्वविद्यालयों में होने वाले संस्कृत सेमिनारों से लेकर विश्व संस्कृत सम्मेलन जैसे उच्चस्तरीय कार्यक्रमों में भाग लिया और शोधपत्र पढ़े । उनकी दीर्घकालीन संस्कृत सेवा के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें 2015 में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के कालीदास पुरस्कार से सम्मानित किया । 
वे भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के उद्भट विद्वान थे । उन्होंने इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस, ओरियंटल कांफ्रेंस, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना आदि संस्थाओं के सैंकड़ों सेमिनारों और अधिवेशनों में भाग लिया तथा चार सौ से अधिक शोधपत्र पढ़े । इतिहास शोध के लिए वे संबंधित स्थानों पर जाकर तथ्यों को एकत्र करते थे । परशुराम पर ग्रन्थ रचना के समय उन्होंने परशुराम कुंड-अरुणांचल प्रदेश, परशुराम मंदिर तिरुवनन्तपुरम्, परशुरामेश्वर महादेव, भुवनेश्वर, राजसमन्द-राजस्थान, टांगीनाथ धाम-झारखण्ड, मऊ-मध्यप्रदेश, शाहजहांपुर-उ.प्र., रेणुका जी-हिमाचल प्रदेश आदि स्थानों की दुर्गम यात्राएं कीं । हेमू विक्रमादित्य पर शोध करने वाले वे एकमात्र इतिहासकार थे जिसके लिए उन्होंने हेमू के जन्मस्थान गांव मछेरी, अलवर, राजस्थान, कुतुबपुर, रेवाड़ी, हरियाणा की अनेकों यात्राएं कीं । हरियाणा के जींद जिले में स्थित गांव बराह कलां के रुप में पुराणों में वर्णित स्वयंभू मनु की राजधानी बर्हिष्मती की खोज की । मयूरशर्मा कदम्ब के इतिहास की खोज के लिए कर्नाटक की अनेक यात्राएं कीं । अपनी पुस्तक रामायणकालिक इतिहास के लिए उन्होंने राम वनगमन मार्ग के सौ से अधिक स्थानों की यात्रा की और 2016 में इसके लिए वे श्रीलंका भी गए । ये सभी यात्राओं के लिए उन्होंने किसी भी संस्था से अनुदान नहीं लिया बल्कि अपनी व्यक्तिगत आय से व्यय किया । डा. पांडे सही अर्थों में अपरिग्रही थे । 
डा. पाण्डे ने हिन्दी और संस्कृत में काव्य, भाषा, धर्म, इतिहास, पर्यावरण आदि अनेक विषयों पर 40 ग्रन्थों की रचना की । वे जीवन के अंतिम क्षण तक अध्ययन, मनन, चिन्तन, शोधकार्य और लेखन में सक्रिय रहे । सम्प्रति उन्होंने भारत के पिछले पांच हजार वर्षों के आनुक्रमिक इतिहास के वृहत् ग्रन्थ की रचना पुर्ण की थी जो प्रकाशक के पास जा चुका है । डा. साहब बहुत ही ईमानदार, सच्चे और सरल स्वभाव के थे । कार्यालय में कभी अधिकारी और अधीनस्थ का भेद नहीं करते थे । सभी कर्मचारियों से प्रेम से मिलते थे । वे अजातशत्रु थे और अपने से मतभेद रखने वालों से भी प्रेम करते थे । 
दिनांक 8 सितंबर, 2017 को 2.30 बजे भोजन करने के बाद जब वे टीवी देख रहे थे तो अचानक उनका देहान्त हो गया, एक पीड़ाहीन मृत्यु जो हम जैसे कितनों को ही अंतहीन पीड़ा देकर गए । ऐसे मानवता के पुजारी, संस्कृति के सेवक, सभी को सद्कर्मों की प्रेरणा देने वाले, सरस्वती के उपासक, निष्काम साधक, अपरिग्रही व्यक्तित्व का जाना बहुत बड़ी क्षति है । वे अपने पीछे पत्नी, एक पुत्र, एक पुत्री तथा दोहितृ-पौत्रों का भरापूरा परिवार छोड़कर गए हैं । भगवान दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे और परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति दे ।
डा. पाण्डे की तेरहवीं और श्रद्धांजलि सभा दिनांक 20 सितंबर, 2017 वार बुधवार, अमावस्या को उनके निवास ई-1052, राजाजी पुरम, लखनऊ में होगी ।। ऊं शान्ति ।।

SourceBajrang Lal

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