अभी अभी कनाडा से लिखी गयी भाई अजय कुमार जी की पोस्ट से खबर मिली कि हम लोगों के अतिप्रिय साथी भोलानाथ गोयल जी इस असार संसार को छोड़ कर अंतिम विश्राम स्थली की ओर गमन कर गए हैं. हालांकि दुबारा उस पोस्ट को मैंने तलाश किया तो वो कहीं नहीं मिली मुझे. काश ये समाचार सत्य न हो. एक छोटे कद का बहुत ही साधारण आवाज़ का इंसान जिसे देखकर कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि ये इंसान रेडियो का एक सफल अधिकारी है. उनका भौतिक कद ज़रूर छोटा था लेकिन मानसिक कद बहुत ऊंचा था.
सन् १९८७ के दो अगस्त को मैं विकास प्रसारण एकांश, आकाशवाणी, कोटा में ज्वाइन करने पहुंचा तो वहाँ एकांश के दो और साथियों से तो भेंट हुई ही साथ ही केंद्र के फ़ार्म रेडियो अधिकारी श्री Girish Verma, श्रीमती Santosh sharma और श्री Bholanath Goyal जी से भी मुलाकात हुई. संतोष जी और मैं तो उससे पहले भी कई केन्द्रों पर साथ रह चुके थे मगर श्री गिरीश और गोयल जी से पहली मुलाक़ात थी. बहुत साधारण से लगने वाले गोयल जी को हर बीतने वाला पल बहुत असाधारण सिद्ध करता चला गया. चाहे वो प्रशासन के मामले हों, चाहे अकाउंट्स के, चाहे रेडियो के इतिहास की बात हो या रेडियो की हस्तियों की, हर विषय में गोयल साहब के पास ऐसी अचूक जानकारियाँ भरी रहा करती थीं कि हम सभी उनकी याददाश्त और उनके ज्ञान को देखकर अचंभित हो जाया करते थे.
आकाशवाणी के आकाशवाणी बनने से लेकर आज तक के नियमों से सम्बंधित कागज़ात उनकी फाइलों में बाकायदा क्रम से सहेज कर रखे हुए मिल जायेंगे. जब भी किसी को किसी कोर्ट केस या अन्य किसी मामले में किसी नियम की ज़रूरत पडी वो शख्स भागा हुआ गोयल साहब के पास पहुंचा और ऐसा शायद कभी नहीं हुआ कि उसे अपने मतलब का कागज़ न मिला हो. यहाँ तक कि रिटायरमेंट के बाद भी जिन दिनों मैं महानिदेशालय में पोस्टेड था, किसी नए निकले सर्कुलर के लिए उनका फोन आ जाया करता था. उनका फोन उठाते ही उनकी आवाज़ सुनाई पड़ती,"बंधु फलां फलां मामले में कोइ नया सर्कुलर निकला है, मैंने सुना है." मैं कहता, " बॉस अब रिटायर हो गए. छोडिये ना इन कागज़ पत्रों को." उनका जवाब होता था," अपना तो क्या है बंधु, किसी को किसी केस में ज़रूरत पड जाए तो उसके काम आएगा ये कागज़." और मैं नतमस्तक होकर उन्हें वो कागज़ भिजवा दिया करता था.
दो साल हम लोग कोटा में साथ रहे थे. वहाँ से वो दिल्ली चले गए थे. आपस में संपर्क हमेशा बना रहा. मेरे मुम्बई आने के बाद भी उनसे दो तीन बार भेंट हुई जब उनके बेटे की पोस्टिंग मुम्बई में थी और वो कुछ दिन यहाँ आकर रहे. उसके बाद वो ज़्यादातर कनाडा में रहने लगे. फिर भी फेसबुक हमारे बीच सेतु का काम करता रहा. कई बार रेडियोनामा में कभी कोई प्रश्नचिन्ह उठाता था तो मैं Sujoy Chatterjee जी को गोयल साहब से संपर्क करने की सलाह देता था और कई बार उन्होंने अपने विद्वतापूर्ण लेखों से हम सबका मार्गदर्शन किया.
कुछ दिन पहले भाई गिरीश वर्मा ने,जो इन दिनों अमेरिका में हैं, बताया कि गोयल जी बीमार चल रहे हैं. उनका फोन नंबर भी दिया मगर बात न हो सकी तो नहीं ही हो सकी....... आज वो हमारे बीच नहीं रहे. ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे."
अभी कुछ महीनें पहले प्रसार भारती ब्लाग पर जब मेरा एक ब्लाग झुमरी तलैय्या के बारे में छपा था तो उसकी प्रतिक्रिया में गोयल साहब ने लिखा था।रेडियो के प्रति यह उनके जुड़ाव का उदाहरण है।
प्रसार भारती परिवार अपने इस पुरोधा के निधन पर उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
इनपुट:श्री महेन्द्र मोदी की फेसबुक वाल पोस्ट/प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,लखनऊ।मोबाइल 9839229128