हम होंगे कामयाब' के रचनाकार गिरिजा कुमार माथुर को 27 वी पुण्यतिथि पर नमन

हम में से जाने कितने लोग हैं, जिन्‍होंने अपने कमजोर पलों में खुद के हौंसले को समेट कर मुट्ठियां तान कर संकल्‍प दोहाराते हुए गुनगुनाया होगा- 'होंगे कामयाब, होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन/मन में है विश्‍वास, पूरा है विश्‍वास...' बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह गीत गिरिजा कुमार माथुर ने लिखा है. 


शुरुआत में अपने छायावादी गीतों और फिर नई कविताओं के लिए समान रूप से पहचाने जाने वाले वरिष्‍ठ कवि गिरिजा कुमार माथुर का यह गीत एक लोक गीत की तरह है, जिसे लोगों ने उसके रचनाकार को भुलाते हुए याद रखा है. 



10 जनवरी रविवार को इन्‍हीं गिरिजा कुमार माथुर की पुण्‍यतिथि है. 10 जनवरी 1994 को देह त्‍यागने वाले कवि, नाटककार और समालोचक गिरिजा कुमार माथुर का जन्‍म 22 अगस्त 1919 को मध्य प्रदेश के अशोक नगर में हुआ था. सन् 1940 में उनका विवाह शकुंत माथुर से हुआ. गिरिजा कुमार माथुर तार सप्‍तक के पहले सात कवियों में शामिल थे, जबकि उनकी पत्‍नी शकुंत माथुर अज्ञेय द्वारा सम्पादित सप्तक परम्परा ('दूसरा सप्तक') की पहली कवयित्री रहीं. 


1943 में 'ऑल इंडिया रेडियो' की नौकरी आरंभ करने वाले गिरिजा कुमार माथुर दूरदर्शन के उप-महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. आकाशवाणी का लोकप्रिय चैनल 'विविध भारती' उन्‍हीं की कल्‍पना है. 


गिरिजा कुमार माथुर का साहित्‍य कर्म 1934 में ब्रज भाषा के कवित्त-सवैया लेखन से हुई. 1941 में प्रकाशित प्रथम काव्य संग्रह 'मंजीर' की भूमिका महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने लिखते हुए उनके भविष्‍य के प्रति आश्‍वस्‍त किया था. भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा उन्होंने कहानी, नाटक और आलोचनाएँ भी लिखी हैं. 


उन्हें 1991 में कविता-संग्रह "मै वक्त के हूँ सामने" के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था. इसी काव्य संग्रह के लिए 1993 में केके बिरला फ़ाउंडेशन द्वारा प्रतिष्ठित व्यास सम्मान प्रदान किया गया. उन्हें शलाका सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है. 

10 जनवरी को पुण्यतिथि पर  प्रसार भारती परिवार नमन करती है।


श्रेय:विनय शुक्ल

स्त्रोत:झावेंद्र कुमार ध्रुव ,फेसबुक

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