आजादी के दस सालों बाद ही रांची में बिहार-झारखंड का दूसरा रेडियो स्टेशन स्थापित किया गया था। लोगों की दीवानगी ऐसी थी कि जब यहां रेडियो की टेस्टिंग शुरू हुई तो लोग अपने रेडियो सेट पर उसे भी सुनते थे। मगर एक बात थी कि रांची में रेडियो भी कुछ गिने चुने अमीर लोगों के पास ही थी। अपने बैठक खाने में केवल रेडियो रखने भर से लोगों की नजरों में इज्जत बढ़ जाती थी। जिनके पास थी रेडियो उनकी समाज में थी ज्यादा इज्जत। ये सुनकर आज के वैसे लोग जो मोबाइल एप के रूप में एचडी रेडियो सुनते हैं उन्हें अजीब जरूर लगेगा मगर वो भी एक दौर हुआ करता था। ये बातें आकाशवाणी रांची की सीनियर उद्घोषिका मंजुला रोमोला होरो ने रांची में रेडियो की शुरुआत के बारे में बताते हुए कही।
बताया कि पहले शादी में लोग अपनी बेटी को दहेज में रेडियो और साइकिल दिया करते थे। जिन लोगों को रेडियो दिया जाता था वो समाज में बड़े शान से चलते थे। लोगों के पास मनोरंजन का इसके अलावा कोई साधन नहीं था। हालांकि आदिवासी संस्कृति में शाम में अखड़ा का नृत्य आम था। मगर समय के साथ आदिवासी समाज में भी रेडियो को बड़ी अहम जगह मिली। लोग नृत्य के पहले या बाद में समाचार जरूर सुनते थे। वहीं इसपर प्रसारित होने वाली लोकगीतों ने दो अहम काम किये। एक लोक कलाकारों को अपने कला के मंचन का एक प्लेटफॉम दिया। दूसरा लोगों को नयी सूचना प्रसार की तकनीक से जुड़ने में मदद किया। रेडियो सेट के साथ लोग सड़कों पर उतर गए थे
80 का दशक आते-आते समाज में रेडियो ने एक बड़ा अहम स्थान बना लिया था। रांची के मेन रोड में कई ऐसे दुकान थे जहां अच्छी क्वालिटी के रेडियो लोक सुलभ दामों पर आने लगे। 1983 में जब क्रिकेट विश्व कप में वेस्टइंडिज और भारत की बड़ी भिड़ंत होनी थी। उस वक्त रांची में रिकॉर्ड रेडियो की बिक्री हुई थी। लोग रेडियो के माध्यम से इस मैच के एक-एक पल को महसूस करना चाहते थे। भारत की जीत के बाद लोग अपने रेडियो सेट के साथ सड़कों पर उतर आये थे। वहीं भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या 1984 में हुई तो लगभग हर शहर में दंगे शुरू हो गये। ऐसे में रांची रेडियो ने अपनी जिम्मेदार भूमिका अदा की। सर्व धर्म के लोगों को रेडियो कार्यक्रम में बुलाकर लोगों से शांति बनाये रखने की सशक्त अपील की। जिसका बड़ा असर समाज पर देखने को मिला था।
लोक संस्कृति के संरक्षक का काम कर रही है आकाशवाणी. आज भी रेडियो लोगों के लिए मनोरंजन का एक सशक्त माध्यम है। नयी तकनीकों के साथ रेडियो भी नया हुआ है। मगर आकाशवाणी आज भी लोक संस्कृति के संरक्षक के रूप में काम कर रही है।
द्वारा अग्रेषित :- श्री. श्री. झावेंद्र कुमार ध्रुव
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