संस्मरण :पंचरंगी कार्यक्रम के साथ पंचरंगी डिनर की !



 पंचरंगी कार्यक्रम के साथ पंचरंगी डिनर की यादें...

पीछे मुड़कर देखना कितना रोमांचक होता है ! ..........यादों की खिड़कियां एक एक करके खुलती जाती हैं और अतीत जीवंत हो उठता है। 1977 के दौर के आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र में श्री बी० एस० बहल ,केन्द्र निदेशक के कार्यकाल में 30अप्रैल को 24वर्ष की उम्र में जब मैने प्रसारण अधिशासी के रूप में ज्वाइन किया तो उस समय केन्द्र पर नामचीन ड्रामा प्रोड्यूसर श्री विनोद रस्तोगी, हीरा चड्ढा,दुर्गा मेहरोत्रा, राजा जुत्शी, नर्मदेश्वर जी , उमेश दीक्षित, विपिन शर्मा, आशा ब्राउन,केशव चन्द्र वर्मा,लता दीक्षित, पी० डी० गुप्ता, डा० एस० के० सिन्हा, नरेन्द्र शुक्ल,राजहंस जी, निखिल जोशी ,कैलाश गौतम,ऊषा मरवाहा और उनके पति जितेन्द्र मरवाहा, मोघे साहब, कृपाशंकर तिवारी, नरेश मिश्र, बजरंगी तिवारी, अरिदमन शर्मा, कुसुम जुत्शी, राम प्रकाश जी, जाहिद फाखरी साहब और आगे चलकर डा.मधुकर गंगाधर ,शिवमंगल सिंह मानव ,महेन्द्र मोदी जी आदि का सानिध्य मिला ....हर शख्स अलग अलग मूड और विधाओं के विशेषज्ञ ।

सबने मुझ नवांगतुक को दुलार दिया था और सबसे सीखने को बहुत कुछ मिला ।सच मानिए मुझे लगा ही नहीं कि मैं नौकरी कर रहा था ।मुझे हमेशा यही एहसास होता रहा कि मैं अपनों के बीच उत्साह और उमंग से अपने सपनों को बहुआयामी रंग रूप देता चला जा रहा हूँ । मुझे अभी भी याद है ,वयोवृद्ध प्रोडयूसर नर्मदेश्वर जी पहली बार मुझे इलाहाबाद से अमेठी एक वी० आई० पी० कवरेज में साथ ले गये तो रिकार्डिंग टेप मैनें अमूल्य धरोहर की तरह तब तक अपने से चिपका कर रखे रहा जब तक पंडित जी ने रेडियो रिपोर्ट दिल्ली फीड नहीं कर दी और वह ब्राडकास्ट नहीं हो गया ।उधर प्रोडयूसर ग्रामीण प्रसारण केशव चन्द्र वर्मा जी ने ऐसे अवसरों पर जब नियमित कम्पियर्स उपलब्ध नहीं हो पाते ,अपने साथ गोबिन्दी भइया बनाकर मुझे बैठे ठाले लाइव कम्पियरिंग के गुण सिखा डाले थे जो आगे चलकर बहुत काम आए ।

मैनें 30अप्रैल को दिन में जब ज्वाइन किया तो मुझे बताया गया कि कल से मुझे ड्यूटी रुम में शिफ्ट में ड्यूटी संभालनी है।एक हफ़्ते के लिए मेरी गुरुआइन बनीं मेरी सीनियर श्रीमती कुसुम ज़ुत्शी ।तीन सभाओं में दो चैनल पर(प्राइमरी और विविध भारती)प्रसारण होता था।हर सभा में एक एक ड्यूटी आफिसर के साथ उदघोषकगण हुआ करते थे।इसी तरह तकनीकी विभाग में भी तीनों शिफ्ट में लोग ड्यूटी करते थे।उन दिनों आज की तरह एफ.एम.चैनलों की भरमार नहीं थी और आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम विविध भारती ही फिल्मी ,गैर फिल्मी तरानों का अग्रदूत हुआ करता था।बाम्बे से प्री रिकार्डेड टेप आया करते थे या कुछेक कार्यक्रम सीधे रिले हुआ करता था ।

सुबह और शाम की शिफ्ट में जब दफ्तर के लोग नहीं हुआ करते थे तो शिफ्ट ड्यूटी वाले प्रायः सात आठ घंटे की लम्बी ड्यूटी में चाय पानी,गपशप और खाना वगैरह साथ करते।यदि मन माफिक शिफ्ट रहती तो चंदा जुटाकर खाने पीने के लिए कुछ ख़ास भी बना करता।हां,उन दिनों एक कैंटीन भी थी।टिफिन घर से सभी लाते ही थे।रात में इतनी तो अवश्य कोशिश रहती कि पौने नौ से साढ़े नौ के बीच डिनर निपट जाए क्योंकि उस बीच हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू या स्पाटलाइट रिले हुआ करता था और उदघोषक खाली रहा करते थे।सुबह आठ से साढ़े आठ बजे सम्मिलित चाय नाश्ते के लिए मुफीद रहता।उन दिनों के खाने की याद अब तक मन में इसलिए भी रची बसी हुई है क्योंकि हर टिफिन से कोई न कोई ख़ास आइटम शेयर में खाने को मिला करता था।सचमुच उन दिनों के विविध भारती की टैग लाइन पंचरंगी कार्यक्रम के प्रसारण के साथ साथ चलने वाले पंचरंगी डिनर की याद अब तक बनी हुई है।
 ■द्वारा योगदान - प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ   darshgrandpa@gmail.com

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