महज 26 साल की उम्र, छोटा कद, मगर इरादे बुलंद। यह पहचान है अरुण प्रसाद गौड़ की। उत्तराखंड स्थित देवलसारी के बंगसिल गाँव निवासी अरुण ने न सिर्फ मधुमक्खियों को बचाने का महती कार्य किया है, बल्कि देवलसारी के जंगलों को कटने से भी बचाया है। इसके साथ ही यहाँ उन्होंने एक तितली पार्क विकसित कर, इको टूरिज्म की नई राह दिखाई है। अब बड़े पैमाने पर देशी-विदेशी पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं। उन्हें उनके कार्य के लिए सेंक्चुरी एशिया मैगजीन की ओर से बेस्ट वाइल्ड लाइफ सर्विस अवार्ड 2019 अवार्ड प्रदान किया गया है, जिसे उन्होंने मुंबई में हुए एक कार्यक्रम में मशहूर फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के हाथों ग्रहण किया।
अरुण तब 12वीं कक्षा में थे, जब उन्होंने मधुमक्खियों का संरक्षण शुरू किया। पहले घरों में स्थित कोटरों में मधुमक्खियों को पाला और उसके बाद उन्होंने 'बी बॉक्स' बनाकर उनकी देखभाल शुरू की।
'द बेटर इंडिया' से बात करते हुए अरुण कहते हैं, "उत्तराखंड में पेड़ कट रहे हैं। गाँव खाली हो रहे हैं। ऐसे में अगर मधुमक्खियों के बारे में न सोचा गया तो आने वाले वक्त में मुश्किल होगी, क्योंकि परागण का काम इन्हीं के जिम्मे है।"
अरुण बताते हैं कि जिस तरह से पहाड़वासी मैदान की तरफ पलायन कर रहे हैं, उसी तरह से मधुमक्खियां भी दूसरी जगह पलायन कर रही हैं अगर इनका संरक्षण ना हुआ तो बहुत जल्दी यह पहाड़ से विलुप्त हो जाएंगी।
अरुण कहते हैं, "शुरू में लोग इस काम को करते देख टोका टाकी करते थे, लेकिन बाद में जब इसका महत्व उन्हें समझाया तो वही लोग इस कार्य की सराहना करने लगे। अगर इस कार्य में स्थानीय लोग साथ न होते तो निश्चित रूप से मुश्किल आती। उनकी मदद के बिना ऐसा हो पाना संभव ही नहीं था।"
देवलसारी में महज डेढ़ सौ मीटर पैदल राह निकालने को देवलसारी के जंगलों में आरियां उठने लगी थीं। अरुण ने माफिया का विरोध किया। उन्हें उनकी ओर से धमकी भी मिली, लेकिन अरुण ने परवाह नहीं की। ऐसे में स्थानीय लोगों का भी उन्हें साथ मिला। सब मिलकर साथ आए और जंगल को कटने नहीं दिया।
अब वन विभाग का भी साथ वन संरक्षण के लिए अरुण को मिला है। पिता रामप्रसाद और माता सूचिता देवी के पुत्र अरुण मानते हैं कि जंगल जीवन का आधार है, इन्हें कैसे कटने दें। इसीलिए इस जंगल को बचाने के लिए उन्होंने देवलसारी के संरक्षण को समिति भी गठित की है।
तितली पार्क विकसित कर बढ़ाया इको टूरिज्म
देवलसारी में तितलियों की कुल 186 प्रजातियाँ हैं। अरुण ने अपने साथियों के साथ मिलकर तितली पार्क विकसित किया। यहां इको टूरिज्म विकसित किया है। अब यहां देशी विदेशी पर्यटकों की आवाजाही शुरू हो गई है। इससे न केवल स्थानीय युवाओं को रोजगार मिला है, उनके स्किल डेवलपमेंट की भी राह खुली है। इस संरक्षित पार्क में अभी तक 133 प्रजाति की तितलियां हैं, जिनमें उत्तराखंड की राज्य तितली कॉमन पीकॉक और अगर पक्षियों की बात करें तो देवलसारी में 196 प्रजातियां हैं, जिनमें संरक्षित पार्क में 87 प्रजातियां हैं। जब से इसे संरक्षित किया गया है, यहाँ तेंदुआ ,भालू और अन्य जीवों का वासस्थल बन चुका है।
अरुण को वाइल्ड लाइफ सर्विस अवार्ड के रूप में 50 हजार रुपए मिले हैं, इस सारी कैश धनराशि को वह देवलसारी जंगल के संरक्षण और उसकी देखरेख में लगाएंगे। इसमें वाचमैन लगाए गए हैं। यह जंगल इन दिनों वन और वन्य जीव प्रेमियों के लिए आकर्षण का एक बड़ा केंद्र बन गया है। अपने जीवन का ध्येय अरुण ने मधुमक्खी, वन संरक्षण को बना लिया है। ऐसे में उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए भी कम समय मिल पा रहा था। लिहाजा, उन्होंने बीएससी की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर आर्ट्स में ग्रेजुएशन करना शुरू कर दिया, ताकि वह अपने काम को ज्यादा से ज्यादा समय दे सकें।
खुद अरुण का कहना है कि वह पहले साइंस में ग्रेजुएशन करना चाहते थे, लेकिन जब देखा कि वह इस स्ट्रीम की पढ़ाई में अपने काम को पूरा समय नहीं दे पा रहे थे, इसीलिए साइंस की पढ़ाई छोड़ दी, ताकि ग्रेजुएशन भी कर सकें और उनके काम पर भी असर न पड़े। अरुण के मुताबिक जिस रोज उनके पुत्र का जन्म हुआ उस रोज देवलसारी तितली पार्क में उत्सव चल रहा था, ऐसे में उन्होंने अपने पुत्र का नाम भी उत्सव रख दिया। बकौल अरुण, तितलियों समेत तमाम जीवों का उत्सव जीवन का उत्सव बन जाए, यही उनका मकसद है।
जीआईसी, बंगसिल को लिया गोद
अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच अरुण प्रसाद गौड़ ने इसके अलावा बंगसिल के जीआईसी यानी राजकीय इंटर कॉलेज को भी गोद लिया है। इस कालेज की दीवारें जर्जर हैं। कभी भी गिर सकती हैं। इस पर टिन की छत पड़ी हुई है। अरुण इसे इसलिए गोद ले रहे हैं, ताकि इस पर छत डाली जा सके। अभी तक यहां सरकारी फंड की कमी की वजह से काम नहीं हो सका है। अरुण के मुताबिक जन्म भूमि का कर्ज उतारना भी बेहद जरूरी है। यही वजह है कि यहां की व्यवस्था ठीक करने की बात दिमाग में सबसे पहले आई।
…तो पलायन क्यों करें पहाड़ के युवा
अरुण ने इस बात का भी संदेश दिया है कि अगर पहाड़ के युवा चाहे तो उन्हें मैदान में जाकर नौकरी ढूंढने की कोई जरूरत नहीं है। 10 जनवरी, 1993 को जन्में अरुण के मुताबिक अपने ही गाँव में रोजगार के तमाम जरिए बिखरे पड़े हैं, जरूरत है तो उन पर एक नजर दौड़ाने की। स्वरोजगार की राह पर चलेंगे तो युवाओं को पलायन करने की जरुरत कहां पड़ेगी। वह समाज के लिए कुछ करने की राह में आने वाली दिक्कतों पर कहते हैं कि अगर आपके भीतर समाज के लिए कुछ बेहतर करने की इच्छा है तो कोई भी बाधा आपका रास्ता नहीं रोक सकती।
अरुण कहते हैं कि जंगल और वन्य जीवों को बचाने का जिम्मा अब नव युवाओं को उठाना होगा। वह जो धरोहर बचाएंगे, उसे ही आज की पीढ़ी आने वाले पीढ़ी को सौंपेगी। जंगल बचेंगे
तो हम बचेंगे। वन्यजीव बचेंगे तो संपदा बचेगी। यह मूल रूप से अपने ही जीवन को सुरक्षित रखने की जद्दोजहद है। एक कर्त्तव्य है, जिसे सब को निभाना ही होगा। उनका कहना है कि हम सभी लोग अपनी जरूरतों के लिए वनों पर निर्भर हैं। कई मामलों में वन्यजीवों पर निर्भर हैं। इनका ना रहना सभी के लिए मुसीबत का सबब बनेगा।
वन कैंप के जरिए लोगों को करते हैं जागरूक
लोगों को जागरूक करने के लिए ही अरुण वन विभाग की मदद से लग रहे कैंपों में छात्रों को जागरूक करने जाते हैं। वह मधुमक्खियों के बारे में जागरूक करते हैं। तितलियों के बारे में जागरूक करते हैं। जंगल न काटे जाने पर जोर देते हैं। इसके अलावा इको टूरिज्म पर नेचर गाइड के प्रशिक्षण कार्यक्रम का भी संचालन कर रहे हैं। इससे सीधे-सीधे युवाओं को रोजगार के लिए एक अवसर भी प्राप्त हो रहा है। अरुण के मुताबिक उनकी तमन्ना है कि लोग पहाड़ को, यहां की धरोहर, जंगल, जीव को संरक्षित करें। इसके लिए सबसे बड़ी जरूरत युवा वर्ग को प्रेरित करने की है। यह तभी हो सकता है जब पहाड़ के युवा जंगल और जीवों के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनें। उन्हें नुकसान पहुंचाने की जगह उन्हें बचाने की कोशिश करें। वह साथ मिलकर आगे आएं। समन्वित प्रयासों से उम्मीद है ऐसा जरूर होगा।
अरुण से संपर्क करने के लिए आप उन्हें 9368674290 पर कॉल या arunapis1@gmail.com पर ईमेल भी कर सकते हैं।
स्त्रोत : The Better India