कैंसर मरीज़ों के लिए बनाये कई सोशल ग्रुप, मृत्यु के बाद पत्नी ने संभाली डोर


"अपने आखिरी दिनों में जब राहुल आईसीयू में भर्ती थे तो हमेशा योद्धाज़ के इवेंट्स के बारे में पूछते रहते थे। लोगों को जागरूक करने का उनका पैशन किसी भी सुईं, मास्क और दवाइयों से बढ़कर था," राशि ने अपने पति राहुल के बारे में बात करते हुए कहा। राहुल ने कैंसर से जूझ रहे लोगों के लिए एक प्लेटफ़ॉर्म बनाया था- योद्धाज़।

13 जून 2017 को राहुल की मौत कैंसर से जूझते हुए हुई। उस दिन सिर्फ राहुल नहीं बल्कि एक पति, एक बेटा, एक भाई और हजारों कैंसर के मरीज़ों का कॉमरेड दुनिया छोड़ गया।

राशि बुरी तरह टूट गई थीं लेकिन उन्होंने खुद को संभाला क्योंकि उन्हें अपने पति के अभियान को आगे लेकर जाना था।

अपने इलाज़ के दौरान, राहुल ने योद्धाज़ की नींव रखी ताकि कैंसर से जूझ रहे लोगों को एक मंच मिले अपना दर्द बांटने का। साथ ही, उनका उद्देश्य देश भर में कैंसर के मरीज़ों की मदद करना था।

योद्धाज़ से आज लगभग 15 हज़ार कैंसर के मरीज़ और बहुत से वॉलंटियर्स जुड़े हुए हैं और ये लोग क्राउडफंडिंग करके कैंसर के मरीज़ों की मदद करते हैं। "राहुल ने अपने इलाज के लिए भी फंड्स इकट्ठा किए थे। क्राउडफंडिंग एक अच्छा ज़रिया है, इससे कैंसर के मरीज़ों के परिवारों की बहुत मदद हो जाती है।" – राशि

दिल्ली से संबंध रखने वाले राहुल यादव बंगलुरु में रह रहे थे। एक दिन उन्हें अचानक पेट में हल्का-सा दर्द हुआ और फिर खांसी-जुकाम। दवाइयां लेने के बाद भी यह कम नहीं हो रहा था।

साल 2013 वो समय था जब बंगलुरु में डेंगू का प्रकोप जारी था। राहुल को लगा कि कहीं उन्हें भी डेंगू न हो इसलिए उन्होंने मणिपाल हॉस्पिटल में जाकर अपने सभी टेस्ट कराए। टेस्ट के बाद सभी रिपोर्ट्स नेगेटिव आईं। लेकिन, डॉक्टरों को थोड़ा संदेह था तो उन्होंने और कई टेस्ट किए। जब उनकी रिपोर्ट्स आईं तो डॉक्टरों ने उन्हें और उनके परिवार को उनकी बीमारी के बारे में बताया।

राहुल को प्लाज्मा सेल ल्यूकेमिया (PCL) था

PCL बहुत ही दुर्लभ और घातक कैंसर हैं, जिसमें एब्नॉर्मल प्लाज्मा सेल खून में फ़ैल जाती हैं। स्वस्थ प्लाज्मा सेल शरीर में होने वाले इन्फेक्शन से लड़ती है, लेकिन PCL के मरीज़ के शरीर में प्लाज्मा सेल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज बनाने की जगह पैराप्रोटीन बनाती हैं, जो कि इन्फेक्शन से नहीं लड़ सकते।

PCL के लिए सबसे सामान्य इलाज कीमोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट है। हालांकि, PCL के मरीज़ के बचने की दर बहुत ही कम है।

राशि के माता-पिता को जब यह पता चला तो वे भी तुरंत बंगलुरु पहुंचे और उन्होंने राहुल को इलाज के लिए दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल ऑफ़ रिसर्च एंड रेफरल में भर्ती कराया। कुछ दिनों बाद उन्हें बीएलके अस्पताल ले जाया गया।

राहुल और राशि, दोनों ही आर्मी परिवारों से हैं और इस पूरे वक़्त में वे एक-दूसरे की ताकत बनकर रहे। राहुल के 15 कीमोथेरेपी सेशन और सर्जरी हुए, उनका गॉल ब्लैडर निकाला गया और दो बोन मेरो ट्रांसप्लांट हुए। राहुल बहुत ही खुशमिजाज इंसान थे और तुरंत लोगों से दोस्ती कर लेते थे। अस्पताल में भी उनकी कई लोगों से दोस्ती हो गई थी।


अक्सर राहुल सोचते थे और बात करते थे कि ऐसा क्या किया जाए जिससे कि मरीज़ों के लिए कीमोथेरेपी के दर्द को कम किया जा सके। उन्होंने सिर्फ बातें नहीं की बल्कि वे हमेशा कैंसर से जूझ रहे लोगों को प्रोत्साहित करते थे। राशि बताती हैं कि राहुल ने अपने इस मिशन को बढ़ाने के लिए व्हाट्सअप और फेसबुक पर ग्रुप भी बनाए थे।

उन्होंने ग्रुप्स को नाम दिया 'योद्धाज़' मतलब कि हर परिस्थिति से लड़ने वाले। "कैंसर के मरीज़ के लिए यह किसी लड़ाई से कम नहीं है। नतीजा जो भी हो लेकिन वे हर दिन इस बीमारी से लड़ते हैं," उन्होंने कहा।

चंद महीनों में, देशभर से 300 कैंसर के मरीज़ इन ग्रुप्स से जुड़ गए।

अपनी बिगड़ती तबियत के बावजूद, राहुल स्कूल, क्लब और इवेंट्स में PCL पर बात करने जाते और योद्धाज़ का काम आगे बढ़ाते रहते। वह चाहते थे कि उनका यह प्लेटफ़ॉर्म दुनियाभर में जाना जाए और इसके लिए उन्होंने 'यूथ एंटरप्रेन्योरशिप कम्पटीशन 2014' के लिए अप्लाई किया। यह युवा उद्यमियों की प्रतियोगिता थी और इसमें 'योद्धाज़' को 'पीपल्स चॉइस अवॉर्ड' मिला और 'बेस्ट प्रोजेक्ट' केटेगरी में दूसरा स्थान मिला।

राशि आगे बताती हैं कि धीरे-धीरे उनका ग्रुप बढ़ता ही गया। उन्हें देश के हर कोने से लोगों के फोन और मैसेज आते थे। लोग अपनी बीमारी के बारे में खुलकर बात कर रहे थे। बहुत से लोग शर्म के चलते कैंसर के बारे में बात नहीं करते हैं तो बहुत से लोग नहीं चाहते कि कोई उन पर दया दिखाए। राहुल ने इन सभी को अपनी बीमारी को स्वीकार करने का और इसके बारे में खुलकर बात करने का हौसला दिया।

2017 में जब राहुल इस दुनिया से गए तो हर जगह से उनके परिवार को सांत्वना मिली और योद्धाज़ से जुड़े हर व्यक्ति ने अपनी दुआएं उनके लिए भेजी। राहुल के प्रति लोगों का प्यार और विश्वास देखकर उनके परिवार ने योद्धाज़ के अभियानों को आगे बढ़ाने की ठानी।

राहुल हमेशा कहते थे कि जो लड़ाई मैं लड़ रहा हूँ वह मैंने नहीं चुनी, इसलिए इस लड़ाई को लड़ने के नियम मेरे हाथ में नहीं हैं। लेकिन, हर परिस्थिति को कैसे संभालना है, यह मैं तय करूँगा है और कोई इस हक को मुझसे नहीं छीन सकता। राशि कहती हैं कि अगर उनकी वजह से लोगों को जरा भी वैसा महसूस हो जैसा राहुल महसूस करते थे, तो ये उनके लिए सम्मान की बात होगी।

राहुल के माता-पिता, रिटायर्ड मेजर जनरल (डॉ.) एस. एन. यादव और कृष्णा यादव ने खुद को अपने बेटे के सपनों के लिए समर्पित कर दिया। राशि कहती हैं, "मेरे स्वर्गीय ससुर हमेशा एक चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहे और मुझे राहुल की सोच को आगे बढ़ाने का हौसला दिया।"

बदकिस्मती से, राहुल के पिता की मृत्यु भी अप्रैल 2019 में एक कार दुर्घटना में हो गई।

राहुल द्वारा शुरू किया गया संगठन आज हर संभव तरीके से कैंसर के मरीज़ों और उनके परिवारों की मदद कर रहा है। छात्रों को और कॉर्पोरेटस को हेल्थ इंश्योरेंस के बारे में जागरूक करना, मरीज़ों को डॉक्टरों से जोड़ना, पैसे इकट्ठे करने के लिए बोन मेरो रजिस्ट्रीज जाना आदि।

दुनियाभर में हर साल लगभग 10 लाख लोगों का PCL डिटेक्ट होता है। 

स्त्रोत : द बेटर इंडिया

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