अब रेडियो पर गूंज रहे धरती के गीत


एक समय था जब विवाह का अवसर हो, बच्चे के पैदा होने या फिर अन्य कोई मंगल उत्सव पर कई दिन पहले से ही घरों से ढोलक की थापों पर लोकगीत सुरों में सजने लगते थे। घर में अलग सा माहौल पैदा हो जाता था, जिसमें होती थी भरपूर मस्ती और आनंद। ऐसा किसी एक धर्म या जाति मे नहीं हुआ करता था, बल्कि हर जाति-धर्म के लोग अपने-अपने उत्सव इस ढंग से मनाते थे। धीरे-धीरे दौर बदला और युवा पीढ़ी अपनी परंपरा से दूर होती चली गई।

म्यूजिक सिस्टम पर बज रहे लाउड म्यूजिक के शोर में लोकगीतों की मिठास कहीं गुम होकर रह गई है। हालांकि अभी गांव देहात या फिर छोटे शहरों में कहीं-कहीं घर के बुजुर्ग ही इस परंपरा को सहेजे हुए दिखाई दे जाते हैं।अब लोकगीतों की विधा को सजोये रखने के लिए आकाशवाणी रामपुर ने निर्णय लिया है। इसके लिए 'धरती के गीत' कार्यक्रम शुरू किया है। इसके लिए आकाशवाणी ने गांव-गांव जाकर ग्रामीण महिलाओं की आवाज में 1100 गीत रिकार्ड किए हैं।


लोक संपदा संरक्षण महापरियोजना के तहत शुरू किया गया प्रोजेक्ट

आकाशवाणी के कार्यक्रम हेड शोभित शर्मा बताते हैं कि लोक संपदा संरक्षण महापरियोजना के अंतर्गत चालू किए गए इस प्रोजेक्ट के तहत विभिन्न जाति-धर्म के पारंपरिक लोकगीतों को सहेजना था। तीन साल से इसकी तैयारी चल रही थी। आकाशवाणी ने गांव-गांव जाकर इन पारंपरिक गीतों को रिकॉर्ड किया। अपने प्रोफेशनल गायकों से गवाने के बजाय इन गीतों को ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली घरेलू महिलाओं की आवाज में ही रिकॉर्ड किया गया। इस प्रकार कुल 1100 गीत रिकार्ड किए गए। इसके अलावा 60 चारवैत भी रिकॉर्ड किए गए हैं। इतना ही नहीं, इसकी वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी भी की गई। सारा डेटा आकाशवाणी के केंद्रीय संग्रहालय में संग्रहीत किया गया है।


शुरू हो गया प्रसारण
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अब केंद्रीय निदेशालय से आकाशवाणी केंद्र को इन गीतों को प्रसारित करने के आदेश जारी किए गए हैं। बुधवार 15 मई से धरती के गीत नाम से इन गीतों का प्रसारण मीडियम वेव पर 336.7 फ्रीक्वेंसी पर शुरू कर दिया गया है। इसे एफएम 102.9 पर भी हर सुबह सवा नौ बजे से सुना जा सकता है। कार्यक्रम 15 दिसंबर तक चलेगा। इसमें लोकगीतों की पारंपरिक पृष्ठभूमि बताते हुए खूबसूरत ढंग से प्रसारित किया जाएगा।

स्त्रोत :- http://bit.ly/2WamUd4

द्वारा अग्रेषित :-श्री. झावेन्द्र कुमार ध्रुव,

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