विज्ञान और प्रोद्योगिकी के विकास ने एक अविष्कार दिया तो वहीं पुराने को विलुप्त सा कर दिया। मोबाइल के आविष्कार ने एक तरफ जहां दुनिया को मुट्ठी में कर लिया तो वहीं दूसरी ओर रेडियो, टीवी, वीसीआर, घड़ी, कैलक्यूलेटर, अलार्म एवं पोस्टकार्ड आदि को महत्वहीन सा कर दिया।
आज पत्रों का स्थान पूरी तरह से मोबाइल ने लिया। पलक झपकते ही मोबाइल द्वारा दुनियां के एक छोर से दूसरे छोर पर न सिर्फ बात की जा सकती है बल्कि वीडियो कॉलिंग भी की जा सकती है, लेकिन गुजरे जमाने की बात बन चुके पोस्टकार्डो का चलन अब भी आकाशवाणी केंद्रों में देखने को मिल रहा है।
खाकी वर्दी, साईकिल पर सवार और हाथ में थैला थामे डाकिया जब पत्र लेकर आता तो उसके इर्द-गिर्द मजमा लग जाता। खत पढ़कर ऐसा लगता जैसे खत लिखने वाला सामने खड़ा हो। खत में भाई का प्यार था। बहन का स्नेह, माता-पिता का आशीर्वाद और पत्नी का पति के लिए प्रेम छलकता था। यहां तक कि दूर-दराज से रुपये मंगाने और भेजने के लिए खत के रूप में मनी आर्डर का ही प्रयोग होता था।
लेकिन इंटरनेट के युग में यह विधा गुम होकर रह गई है। मोबाइल द्वारा काल, एसएमएस, एमएमएस ने सबको पीछे छोड़ दिया। कभी डाकघरों में हजारों की संख्या में रोजाना पत्र आते-जाते थे। लेकिन अब यह संख्या सिमट कर रह गई है। ग्रामीण क्षेत्र के डाकघरों में पोस्टकार्ड और अंतरदेशीय पत्र मिलना भी बंद हो गए हैं।
स्वार के मुख्य पोस्ट आफिस में तैनात पोस्ट मास्टर लईक अहमद बताते हैं कि अब पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्र खरीदने के लिए कोई नहीं आता। इसलिए अंतर्देशीय पत्र तो वर्षों से रखना ही ही बंद कर दिए।
रेडियो पर कार्यक्रम सुनने और पत्र लिखने के शौकीन मुकुटपुर शाहबाद के सिंह राजपूत का कहना है कि पोस्टकार्ड खरीदने के लिए जिला मुख्यालय की दौड़ लगाना पड़ती है। कई बार यहां से भी निराश लौटना पड़ता है।
आकाशवाणी केंद्र ही वर्तमान में अंतर्देशीय पत्रों और पोस्टकार्डों के वजूद को सहेजे हुए है। आकाशवाणी केंद्र पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की लोकप्रियता का बखान करने, श्रोताओं एवं केंद्र उद्घोषकों के बीच संचार का माध्यम आज भी यही पोस्टकार्ड बने हैं।
हालांकि समय से कदमताल करते हुए आकाशवाणी केंद्र ने भी श्रोताओं से सीधे जुड़ने के लिए फोन इन कार्यक्रमों की शुरुआत की है। वाबजूद इसके बदलते दौर में आकाशवाणी केंद्र पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्रों के अस्तित्व को बचाए हुए है।
आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रम प्रमुख शोभित शर्मा जी बताते हैं कि एक दौर था, जब हजारों की संख्या में रोजाना पत्र आते थे, लेकिन अब ये संख्या घटकर दो से चार दर्जन के बीच सिमट कर रह गई है। गांवों के डाकघरों में पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्र न मिलने से श्रोता शहर के मुख्य डाकघर की ओर दौड़ लगाते हैं, जहां से अब भी इकट्ठे पोस्ट कार्ड खरीद कर श्रोता ले जाते हैं।
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