सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारी कर्मचारी का निलंबन अनिश्चितकाल के लिए नहीं हो सकता। यह एक सीमित अवधि के लिए होना चाहिए। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने एक आईजी का छह साल पुराना निलंबन समाप्त कर दिया। जस्टिस ए. एस. बोब्डे की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सरकार को लगता है कि आरोपी सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है तो उसे असंवेदशील पद पर रखा जा सकता है। तमिलनाडु के आईजी प्रमोदी कुमार पर एक वित्तीय कंपनी के निदेशकों से पैसे वसूलने का आरोप था। ये निदेशक निवेशकों के 1200 करोड़ गबन करने के मामले लिप्त थे। आईजी को गिरफ्तारी के बाद निलंबित कर दिया गया था।
कार्रवाई को चुनौती : आईजी ने कैट में अपने खिलाफ कार्रवाई को चुनौती दी। कैट ने अनुशासनात्मक कार्यवाही में हस्तक्षेप से तो इनकार किया पर निलंबन रद्द कर दिया।
हाईकोर्ट में अपील : अधिकारी ने मद्रास हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने निलंबन के साथ आईजी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही भी निरस्त कर दी। अदालत ने कहा कि अधिकारी को दिए चार्जमेमो को अनुशासनात्मक अथॉरिटी की मंजूरी प्राप्त नहीं है। यदि इस अथॉरिटी के अलावा कोई और चार्जमेमो जारी करेगा तो आरोपी को संविधान के प्रावधान 311(2) की सुरक्षा से वंचित करना होगा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इसकी अपील की। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, नियम 8 यही कहता है कि चार्जमेमो अनुशासन समिति बनाएगी। इस नियम की अनदेखी नहीं की जा सकती।
कर्मचारियों को बड़ी राहत
फैसले से सरकारी कर्मचारियों को बड़ी राहत मिली है। इससे उन्हें अनिश्चितकाल तक निलंबन जैसा दंड नहीं झेलना पड़ेगा। पहले भी कोर्ट कह चुका है कि लंबा खिचने वाला निलंबन एक कलंक है।
सुप्रीम व्यवस्था
– इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को उसके खिलाफ आरोप पत्र के अभाव में 90 दिन से अधिक निलंबित नहीं रखा जा सकता
– यदि यह अनिश्चितकाल के लिए हो या फिर इसका नवीनीकरण ठोस वजह पर आधारित नहीं हो तो यह दंडात्मक स्वरूप ले लेता है
– यदि आरोपी अधिकारी या कर्मचारी को आरोप पत्र नहीं दिया जाता है और यदि आरोप पत्र दिया जाता है तो निलंबन की अवधि बढ़ाने के लिए विस्तृत आदेश दिया जाना चाहिए .