कोरोना संक्रमण के इस नाज़ुक समय में देश के वरिष्ठ नागरिकों के लिए घर में बैठे समय काटना भी बेहद मुश्किल हो चला है।ये वरिष्ठ नागरिक उस पीढ़ी के हैं जो संस्कार और संस्कृति से जुड़े हैं।उन्हें ओ.टी.टी.पर परोसे जाने वाले एडल्ट, एग्रेसिव, एरोगेंट और वल्गर आइटम रास नहीं आ रहे हैं।इसलिए वे अपने देश की जड़ों से जुड़े रहना चाहते हैं।वे आज भी रामायण की आदर्श कथा को फिर फिर देखना सुनना पसंद करते हैं।कर्तव्य परायणता के सूत्र महाभारत में ढूंढते दिखते हैं।आदिदेव शंकर के सृजन और संहार की शक्ति ,कृष्ण की लीलाओं को अपने व्यक्तित्व में उतारना चाहते हैं।कोरंटाइन में उन्हें अपनी विरासत,अपनी संस्कृति, अपने मूल्य एक बार फिर लाड़ दुलार रहे हैं।
एक दिन ब्लॉग लेखक के भोपाल स्थित 85वर्ष के एक सेवानिवृत्त इंजीनियर रिश्तेदार ने दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिक "बीबी नातियों वाली " फिर से देखने की चाहत लिए फोन किया।वे डी.जी.दूरदर्शन का मेल आई.डी.और फोन नम्बर इसी बाबत चाह रहे थे।मैनें प्रयास करके उन्हें इसे देखने के लिए सरल राह दिखाया । इंटरनेट सर्फिंग करके मैनें उन्हें यूट्यूब पर उपलब्ध कालजयी सीरियल "बीबी नातियों वाली " के सभी एपिसोड्स का लिंक दे दिया ।.....उन्हें मानो अतुलनीय सम्पदा मिल गई। प्रसार भारती के यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध लखनऊ दूरदर्शन के इस पहले धारावाहिक का प्रसारण 1990-91में हुआ था और इसके लेखक पद्मश्री के.पी.सक्सेना और निर्देशक रामेन्द्र सरीन थे।गंगा जमुनी तहज़ीब को बढ़ावा देनेवाले इस सीरियल में समाज की सड़ी गली रुढियों पर भी प्रहार किया गया था। लिंक पाते ही मेरे उन वयोवृद्ध रिश्तेदार ने मुझसे फोन पर जिस वाक्य को शेयर किया वह मन को छू गया ।
उन्होंने कहा- " ईस्ट हो या वेस्ट, अपना डी.डी.बेस्ट !"
ब्लॉग रिपोर्ट- श्री. प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ।
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