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आकाशवाणी के सेवानिवृत्त ए.डी.पी.श्री यतीन्द्र चतुर्वेदी ने एक मजेदार संस्मरण साझा किया है। उन्हीं की एक पोस्ट।
 "अभिन्न मित्र व दूरदर्शन लखनऊ की ऐडीपी श्रीमती रमा त्रिवेदी जी की पोस्ट से ज्ञात हुआ कि आज लखनऊ दूरदर्शन केन्द्र का स्थापना दिवस है । सेवानिवृत्त साथी राकेश त्यागी व अन्य साथ ही वर्तमान के सभी साथी मित्रौं को हार्दिक शुभकामनाएं।

१९७५ में मैं लखनऊ ननिहाल में रह कर बीए की पढ़ाई कर रहा था व पड़ोसी के घर टेलीविजन पर चित्रहार व फीचर फिल्म देखने जाया करता था। मित्रो मेरे लिए गौरव की बात है कि मैंने पहला आलेख आकाशवाणी के लिए नहीं बल्कि लखनऊ दूरदर्शन के लिए ही लिखा था। लखनऊ में उम्र में मुझ से छोटे मामा किशोर चतुर्वेदी अच्छे गायक हैं तब तरह तरह की आवाज़ैं भी निकाल कर हम सब का मनोरंजन किया करते थे सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्य लेखक स्व. केपी सक्सेना जी के सुपुत्र जुबली कौलेज में इनके सहपाठी थे। एक दिन सक्सेना जी के पुत्र के जन्मदिन पर हम सब उनके घर पंहुचे वहां छोटा सा कार्यक्रम भी रखा गया था। किशोर बाबू ने गानौं के साथ मिमिक्री भी की तब केपी सक्सेना जी बहुत ही खुश हुए और उन्होंने दूरदर्शन पर बच्चों के कार्यक्रम में मिमिक्री करने के लिए प्रेरित किया।
हम लोग एक दिन सायकिल से चारबाग रेल्वे स्टेशन पंहुचे क्यों कि केपी सक्सेना रेल्वे के मुलाजिम थे किसी ने बताया कि वे केबिन में मिलैंगे। हम पटरी पटरी केबिन में पंहुचे जहां हमारी मुलाकात सक्सेना जी से हो सकी। सक्सेना जी ने एक पत्र वहां की उदघोषिका के लिए लिखा तब हम वो पत्र लेकर दूरदर्शन केन्द्र पंहुचे संयोग से उद्घोषक महोदया हमें मिल गई किशोर बाबू ने बात करने का दायित्व मुझे सौंपा बात हुई तो मैडम ने हमैं प्रोड्यूसर जनाब एम शमीम जी के पास भेजा।
किशोर बाबू ने शमीम जी को तरह तरह की आवाज़ें सुनाई शमीम साहब प्रभावित तो हुए पर उन्होंने कहा कि इन आवाज़ौं की बेहतर प्रस्तुति के लिए इन्हें एक कहानी में पिरोना होगा क्या आप ये कर सकैंगे किशोर बाबू ने कहा कि मैं तो नहीं पर मेरे भांजे कर सकते हैं। शमीम साहब राजी़ हो गये। घर आकर मैंने मनोयोग से एक रोचक कहानी "शरारती बिल्लू की कहानी" में सारी आवाज़ैं पिरो दीं हम लोग डीएवी कॉलेज घर के पास ही मैदान में रिहर्सल के लिए जाने लगे नियत तिथि को लखनऊ दूरदर्शन में रिकार्डिंग हुईं। कार्यक्रम प्रसारित हुआ तो दर्शकों द्वारा काफी सराहा गया अनेक बार रिपीट भी हुआ। 
हम लोग बहुत ही प्रसन्न हुए।
बहुत दिनों बाद प्रधानमंत्री श्री अटलबिहरी वाजपेयी जी की कवरेज हेतु राकेश त्यागी मथुरा आये तो मैं उनसे मिलने होटल पंहुचा शमीम साहब भी आये थे शमीम साहब से मेरा आकाशवाणी मथुरा के कार्यक्रम अधिकारी के रूप में परिचय कराया गया पर मैंने जब उन्हें १९९५ का ये प्रसंग सुनाया तो बहुत ही खुश हुए।"

स्त्रोत-श्री यतीन्द्र चतुर्वेदी की फेसबुक पोस्ट ।
ब्लाग प्रस्तुति-प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ

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