पिछली भोपाल यात्रा में हमनें एक सैन्य तीर्थ का पुण्य लाभ अर्जित किया जिसे देशवासी शौर्य स्मारक के रुप में जानते हैं।सैन्य तीर्थ ,मैनें इसलिए कहा क्योंकि मेरे दोनों बेटे सेना में रहे हैं और उन दुर्गम पहाड़ियों/क्षेत्रों में रह चुके हैं जिन्हें आप इस स्मारक में जा कर देखते हुए महसूस कर सकते हैं। भोपाल शहर के केंद्र में अरेरा पहाड़ी पर स्थित है देश का यह प्रतिष्ठित शौर्य स्मारक । भारत के अमर शहीदों की युद्ध तथा शौर्य गाथाओं की अनुभूति आम जनता को कराने के उद्देश्य से इसका निर्माण किया गया है। भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 14 अक्टूबर 2016 को इसे देशवासियों को समर्पित किया गया। शौर्य कथाओं को सुनने जानने , विषम परिस्थितियों में सेना के जोखिम भरे जीवन को अनुभव करने सेना के तीनों अंगों की उपलब्धियों को जानने की दृष्टि से ही नहीं बल्कि अब यह पूरे भारत का एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया है।शाम को होने वाले लाइट एंड शो के क्या कहने..!विश्वास कीजिए ,इसे देखते हुए आपका सीना चौड़ा हो जायेगा !माइनस डिग्री तापमान वाले एक कक्ष में जाकर आप महसूस कर सकते हैं कि सियाचिन में सैनिकों का कैसा जोखिम भरा कठिनतम जीवन है !देश के रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले वीर सैनिकों की स्मृति को सहेजकर रखने के लिए रखने के लिए मध्यप्रदेश शासन द्वारा भोपाल के प्रसिद्ध चिनार उद्यान के पास इस शौर्य स्मारक का निर्माण किया गया है। लगभग 13 एकड़ भूमि पर बने शौर्य स्मारक के आधार तल में संग्रहालय बनाया गया है।
इस शौर्य स्मारक संग्रहालय में भारत की वायु सेना, थल सेना और नौसेना के शहीदों की देशभक्ति और शौर्य को तस्वीरों के माध्यम से दर्शाया गया है। संग्रहालय में कारगिल की विजयगाथा को भी प्रस्तुत किया गया है। सियाचीन में शरीर जमा देने वाली ठंड के बीच किस तरह हमारे वीर सैनिक देश की रक्षा के लिए मुस्तैद रहते हैं, यह भी यहां प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय में परमवीर और महावीर चक्र से सम्मानित वीर सैनिकों की पेंटिंग्स भी हैं। स्मारक में एक स्थल पर पृथ्वी पर जीवन को एक वर्गाकार के रूप में इंगित किया गया है। जीवन के उतार-चढ़ाव को सीढ़ी द्वारा प्रदर्शित किया गया है। पृथ्वी की गंभीर और शांत रचना को मिट्टी से बनी ईंट, घास और जल के रूप में परिभाषित किया गया है। युद्ध के रंगमंच पर धरती को आंगन के रूप में दर्शाया गया है। युद्ध के विनाश से आहत हुई मानवता को असमतल पत्थरों के माध्यम से बताया गया है।
द्वारा योगदान :- प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ,darshgrandpa@gmail.com.