रेडियो को गुरू मानकर दृष्टिहीन बदलाऊ ने सीखा गीत-संगीत



 एकलव्य था, जिसने द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर धनुर्विद्या सीखा। वहीं एक सूरदास हैं जिन्होंने रेडियो को ही गुरू माना और गीत-संगीत सीखा।
सूरदास के नाम से नाम से पहचान बनाने वाले बलदाऊ कौशिक के हाथ में हारमोनियम हो या तबला उनकी उंगलियां ऐसी थिरकती है कि देखते ही बनती है। दृष्टिहीन होने के बावजूद भगवान से कोई शिकवा शिकायत नहीं है। बलदाऊ कौशिक का कहना है कि संगीत उनकी जिंदगी बन गई है।
जिले के सहसपुर लोहारा विकासखंड के ग्राम पंचायत भाटकुंडेरा निवासी संगीत में सूरदास के नाम से पहचान बनाने वाले बलदाऊ कौशिक(41) एक छोटे से किसान परिवार से है और पैदाइशी दृष्टिहीन हैं। दृष्टिहीन होने की वजह से प्रारंभिक शिक्षा से वह वंचित रह गए। लेकिन संगीत ने बलदाऊ को संभाल दिया। जन्म से दृष्टिहीन होने बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी। धीरे-धीरे उनकी मेहनत व लगन रंग लाने लगा। महज सात बरस की उम्र में रेडियो कार्यक्रम के लोकगीत को सुनकर अपने जहन में बसाते हुए उसकी ताल से अपनी ताल मिलाकर जुगलबंदी करते गया। सुर-ताल का धुन लगाया करते थे। रेडियो को ही गुरू बनाकर वाद्ययंत्र बजाने का गुर सीख लिया। उसने अपने काले केनवास में संगीत के सुरों को भर दिया। आज दृष्टिहीन होने के बाद भी बलदाऊ कौशिक अपने पैरो पर खड़ा है। दुनिया को संगीत सिखा रहा है।
रेडियो से मिलाया सुर-ताल
बलदाऊ कौशिक बताते है बचपन से उनके पिता रेडियो चालू कर पास रख दिया करते थे। निश्चित समय पर लोकगीत संगीत कार्यक्रम रोजाना सुनने को मिलता था। इससे लगाव बढ़ता गया। उसी गीत-संगीत को नकल करते गाना-बजाना सिखा। उसके बाद अपने पिता, चाचा सहित यार दोस्त को वाद्ययंत्र बजाना सिखाया। बलदाऊ कोई भी वाद्ययंत्र बखूबी बजाना जानते हैं।
ख्याति कलाकार के साथ दे चुके प्रस्तुती
बलदाऊ गीत संगीत में केवल ग्रामीण कलाकार के मंचों पर नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ नामी-गिरामी हस्तियां के साथ अपनी गीत संगीत की छटा बिखेरी चुका है। बैतलराम, पंचराम मिर्झा, सीमा कौशिक सहित लोक कलाकारों के साथ सांझा मंच पर अपना गीत संगीत से लोगों के दिलों पर छाप छोड़ी है। लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण इन्हें शासन-प्रशासन द्वारा सहयोग नहीं मिलता। स्थानीय कार्यक्रम में भी मौका नहीं देते।
स्वयं गाते हैं महिला-पुरुष की आवाज में
बलदाऊ में सबसे खास बात है कि वह बड़ी सुरीली आवाज से पारंपरिक युगल लोकगीत को स्वयं ही दो आवाज़ से पिरोह लेते हैं। गायक तो हैं ही, महिला गायिका की आवाज भी बखूबी निकालते हैं। इसके चलते ही नागपुर के साथ-साथ राजधानी रायपुर सहित प्रदेशभर में विभिन्न स्थानों में संस्था के माध्यम हजारों प्रस्तुती दे चुके हैं। कई मंचों पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर सम्मानित हो चुके हैं। उनकी घर की दीवारों में लटके शील्ड व मैडल इनके हूनर को बताता है। साथ कई ओडियो विडियो लोकगीत इंटरनेट पर धमाल मचा चुकी है।
ब्लॉग रिपोर्टर :झावेंद्रकुमार ध्रुव
 

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