रोचक कहानी : जब मृत घोषित व्यक्ति जीवित मिले !


यह सत्यकथा है और इसके पात्र का सम्बन्ध आकाशवाणी गोरखपुर से दशकों तक रहा है।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आकाशवाणी गोरखपुर मे एक रमा शंकर दूबे ड्राइवर थे जो वर्ष उन्नीस सौ बासठ की लडाई मे सेना द्वारा मृत घोषित कर दिये गये थे ।उनके मूल निवास स्थान के गांव जगतबेला(गोरखपुर) में उनका क्रिया कर्म भी हो गया था !वे भारतीय सेना के एक ब्रिगेडियर के ड्राइबर थे ।युद्ध का दौर था और वे अपनी गाडी एक झुरमुट मे छिपाकर सभी लोग खाना खा रहे थे ।तभी चीनियोंं ने अचानक हमला कर ब्रिगेडियर और इनके सहित एक अन्य सैनिक को गिरफ्तार कर लिया। दूबे जी अच्छे अथलीट के साथ काफी ऊंंची कद काठी के भी थे ।चीनी जब इन्हेंं पकड कर ले जा रहे थे तो एक मोड़ पर उन्होंने चीनी जवानोंं को झटक कर खाई की तरफ फेंंक दिया और अपने एक खोह मे छिप गये। बाद मे भटकते भटकते वे गौहाटी तक पहुंंच गये।इस संस्मरण को आकाशवाणी गोरखपुर के से.नि.कार्यक्रम अधिकारी और ग्रामीण कार्यक्रम के एक लोकप्रिय स्टाक कैरेक्टर "जुगानी भाई"ने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया है।दुबे जी ने उसके बाद लगभग डेढ़ दशक तक आकाशवाणी गोरखपुर को अपनी सेवायें दीं।
असल में उन दिनों हमारा सूचना तंत्र विकसित नहीं हुआ था ।इसीलिए किसी तरह जब वे अपनी जान बचाकर घर आये तब लोगो को मालुम हुआ कि वे ज़िन्दा हैंं।बाद में उन्होंने सेना में रिपोर्ट किया और वालंटरी रिटायरमेंट लेकर सेना के कोटे से ही वे आकाशवाणी मे ड्राइबर बने। इस समय उनके लडके श्रीप्रकाश दुबे आकाशवाणी वाराणसी मे ड्राइबर हैंं।
दुबे जी अब भी हम सभी की स्मृति में हैं।ब्लॉग लेखक तो उन दिनों रात की शिफ्ट ड्यूटी में अक्सर रहा करते थे।उनका सानिध्य मिलता रहा था ।"समय के हस्ताक्षर"नामक कार्यक्रम में ससम्मान उनका इंटरव्यू भी आकाशवाणी गोरखपुर से प्रसारित हुआ था जिसमें उन्होंने ये सारी बातें बताई थीं।इंटरव्यू लेनेवाले कोई और नहीं ख़ुद उनदिनों के केन्द्र निदेशक जनाब काज़ी अनीसुल हक़ थे ।अफ़सोस उनका चित्र उपलब्ध नहीं है।हां,उनके पुत्र श्री प्रकाश दुबे जो वर्तमान में आकाशवाणी वाराणसी में वाहन चालक पद पर कार्यरत हैं।उनका नं.है 8896574702.।हालांकि वे उस कालखंड में बच्चे रहे होंगे फिर भी उत्सुक लोग उनसे सविस्तार जानकारी ले सकते हैं।उनके साथ ही उनके एक सहकर्मी थे जिनका नाम रमाशंकर दुबे था।दोनों लोग आर.एस.दुबे ही लिखते थे।लेकिन दोनों की कद काठी एकदम अलग थी।जिन दुबेजी की बात हो रही है वे कद काठी में पठान लगते थे।थोड़ा हकलाते थे।लेकिन हृदय से बेहद कोमल थे।ब्लाग लेखक ने भी उन पर एक संस्मरण लिखा था और एक रोचक वाकया यह भी कि कभी - कभार उनकी बाडी लैंग्वेज से लोग उन्हीं को आकाशवाणी का डाइरेक्टर समझ लिया करते थे!अब तो ऐसे जीवंत पात्र इतिहास के कालखंड के हिस्से बन चुके हैं।

ब्लॉग रिपोर्ट :- श्री. प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, कार्यक्रम अधिकारी, आकाशवाणी(से.नि.),लखनऊ।
darshgrandpa@gmail.com


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