पारस लूम्बा, एक आर्मी अफसर का बेटा जो पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं लेकिन अपने दिल से एक चेंजमेकर हैं। साल 2012 में उन्होंने अंटार्टिका के इंटरनेशनल एक्सपीडिशन में भाग लिया था और यहाँ से उनकी ज़िंदगी ने रुख बदला। वह बताते हैं कि इस एक यात्रा के बाद उन्हें समझ में आ गया कि वह अपनी ज़िंदगी में क्या करना चाहते हैं। इसके बाद उन्होंने भारत के लद्दाख और अन्य कुछ पहाड़ी इलाकों में यात्राएं कीं।
आज के डिजिटल जमाने में जहां हम अपने घर में एक मिनट भी बिना बिजली और बिना इंटरनेट के नहीं रह सकते। उसी देश में आज भी न जाने कितने इलाके हैं जहाँ आज तक बिजली नहीं पहुंची है।
"मैंने देखा कि कैसे क्लाइमेट चेंज यहाँ पर रह रहे लोगों की ज़िंदगी पर सीधा असर करता है। अंटार्टिका में तो कोई नहीं रहता लेकिन लद्दाख और हिमालय में बहुत छोटे-छोटे गाँव हैं, जिन पर यहाँ के मौसम का असर पड़ता है। मैंने सोचा कि क्यों न मैं अपनी यात्राओं के दौरान इन लोगों के लिए कुछ करूँ।,"-- पारस लूम्बा.
"मैंने देखा कि कैसे क्लाइमेट चेंज यहाँ पर रह रहे लोगों की ज़िंदगी पर सीधा असर करता है। अंटार्टिका में तो कोई नहीं रहता लेकिन लद्दाख और हिमालय में बहुत छोटे-छोटे गाँव हैं, जिन पर यहाँ के मौसम का असर पड़ता है। मैंने सोचा कि क्यों न मैं अपनी यात्राओं के दौरान इन लोगों के लिए कुछ करूँ।,"-- पारस लूम्बा.
पिछले 7 सालों में यह अपनी टीम के साथ मिलकर देश के दूरगामी गांवों को बिजली से रौशन कर रहा है।
बिजली पहुँचाने के साथ-साथ GHE की टीम इन गांवों के लिए एक सस्टेनेबल मॉडल भी बना रही है। पारस बताते हैं कि उन्होंने 5-10 गांवों के क्लस्टर बनाकर, हर एक क्लस्टर में सर्विस सेंटर भी बनाएं हैं। इन गांवों में से ही किसी को इलेक्ट्रिसिटी और ग्रिड सिस्टम की अच्छी ट्रेनिंग देकर सर्विस सेंटर खुलवाया जाता है।
"बिजली आज के समय की मूलभूत ज़रूरत है। स्कूल, हेल्थ सेंटर या फिर कोई भी व्यवसाय, हर किसी में बिजली महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे इन गांवों में बिजली पहुँच रही है, वैसे-वैसे इन सब जगहों पर भी बदलाव हो रहा है।
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