साहित्य, कला, संस्कृति सिर्फ अभिजात्य वर्ग के बीच समृद्ध नहीं होती बल्कि छोटे-छोटे गांवों कस्बो में यह पल्लवित पुष्पित होती है । यदि इस तथ्य को समझना है तो आप 'एक कम साठ राजुरकर राज ' कृति को पढ़िए आप समझ जाएंगे कि कैसे एक सुदूर अंचल के गांव गोधनी से निकल कर राजधानी तक का सफर तय करते हुए राजुरकर राज ने अपनी जीवन यात्रा को इस पड़ाव तक पहुंचाया है | यह उदगार हैं वरिष्ठ कथाकार उपन्यासकार श्री संतोष चौबे कुलाधिपति टैगोर विश्वविद्यालय के जो दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय में वरिष्ठ साहित्यकार एवम राज्य प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी श्री रामराव वामनकर की सद्य प्रकाशित कृति के लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे |
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि हिंदी बघेली के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री डॉ शिवशंकर मिश्र सरस् ने इस पुस्तक को एक आम आदमी की खास जीवन यात्रा का जीवंत दस्तावेज बताया | इस कृति के लेखक रामराव वामनकर ने इस कृति के सृजन से जुड़े कई रोचक किस्से उपस्थित लोगों से साझा किए |
कृति पर चर्चा में भाग लेते हुए समीक्षक घनश्याम मैथिल 'अमृत' ने इस कृति को हिंदी साहित्य जगत के लिए महत्वपूर्ण भेंट बताते हुए कहा कि यह इस कृति के नायक सिर्फ राजुरकर राज का जीवन वृत नहीं है अपितु उनकी बचपन से लेकर अभी तक की जुड़ी यात्रा से जुड़े सैकड़ों महत्वपूर्ण व्यक्तियों एवम स्थानों के बारे में भी हमें बहुत कुछ नवीन जानकारी उपलब्ध करवाती है।
इस अवसर पर राजुरकर राज ने इस कृति के लेखक एवम इस आयोजन में उपस्थित सभी सामाजिक साहित्यिक जनों की उपस्थिति का ह्रदय से आभार प्रकट किया | कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ अरविंद सोनी ने किया |कार्यक्रम में सीमा रानी ,कांता रॉय ,युगेश शर्मा ,मुकेश वर्मा ,नरेंद्र दीपक ,अशोक निर्मल ,विपिन बिहारी वाजपेई ,जगदीश किंजल्क , मुकेश वर्मा ,बलराम गुमास्ता ,विमल भंडारी सहित अनेक साहित्यकार एवम गणमान्य नागरिक उपस्थित थे |
स्त्रोत :- श्री राजुरकर राज की फेसबुक वाल से ।
प्रेषक :- श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ।