Our Cultural Heritage-?????? ?? ??? ????????? ???????? ???????????? ????


लोकगीत की अमर सुरसाधिका और मेरी गुरु पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी का जन्म 5 मार्च, 1920 को नाना चतुर्भुज सहाय के घर मुजफ्फरपुर में हुआ। पिता जगत बहादुर प्रसाद की पुत्री थीं, जो रोहतर, नेपाल के रहनेवाले थे। परिवार के सभी लोग धार्मिक प्रवृत्ति के थे। घर में हमेशा भजन-कीर्तन होता था, जिसका प्रभाव विंध्यवासिनी देवी पर पड़ा। उनके बचपन का नाम बिंदा था। सबकी प्यारी वे साक्षात भगवती की अवतार थीं। जैसा नाम, वैसा गुण, तभी तो आज भी घर-घर में इनके सुराें की पूजा होती है। वे लोकगीत की ज्योति जलाकर अमर हो गईं। 
कलाजगत में रोशनी बनकर 
तूने राह दिखाया 
लोकसुरों की साधिका तूने 
घर-घर अलख जगाया। 
सातफेरों के साथ हर क्षेत्र में सहयोग देनेवाले पति सहवेश्वर चंद्र वर्मा ने सादगी की मूर्ति अपनी प|ी विंध्यवासिनी को उंगली पकड़कर घर से बाहर निकाला और शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश कराया। जिस समय महिलाओं का संसार मात्र घर-परिवार ही होता था, पर्दे में रहकर जीवन यापन करना पड़ता था, उस समय महिला का नौकरी करना, संगीत सीखना और गाना संभव नहीं था। घर के भीतर भी नारियों को सिर पर आंचल लेकर काम करना पड़ता था। सचमुच में पुरुष और स्त्री एक दूसरे के पूरक हैं। आर्य कन्या विद्यालय की सीधी-सादी शिक्षिका, आकाशवाणी केंद्र, पटना के स्थापना समारोह में स्वरचित गीत भइले पटना में रेडियो के शोर, बटन खोल तनि सुन सखिया गायन प्रस्तुत कर वहां की कलाकार, प्रोड्यूसर भी बन गईं। 26 जनवरी, 1948 को आकाशवाणी केंद्र, पटना की स्थापना हुई। 1980 में वे अपने पद से सेवानिवृत्त हुईं।

वे अपने तरह की अकेली महिला लोकगायिका हैं। घर-घर गाए जानेवाले गीतों को गाकर श्रोताओं को दीवाना बना दिया उन्होंने। बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी समय पर प्रतीक्षा करते कि विंध्यवासिनी देवी जी के गीत सुनने को मिलेंगे। घुरा के पास चारों ओर बैठे पुरुष और रसोई बनाती महिलाएं घर में बैठकर गीत का भरपूर आनंद उठाते। महिलाएं सुर में सुर मिलाकर गीतों को गातीं और आपस में बातें करतीं कि यह गीत हमलोग घर में गाते हैं। रेडियो में भी यह गीत गाया जाता है क्या? सचमुच में गांव घर के गीतों को उन्होंने बिहार से शुरू कर सात समुंदर पार तक लोकसंगीत को प्रतिष्ठा दिलाई। इनके गीतों में मिट्टी की गंध आती है। 
घर-आंगन गीतों को ऊंचाई तक पहुंचाने का श्रेय विंध्यवासिनी जी को है। तब लोग नहीं जानत थे कि वे अपनी संस्कृति एवं संस्कार को साथ लेकर लोक संगीत जगत की प्रेरणा बनेंगी। उन्होंने लोक संगीत रूपक और लोक नाट्य की रचना ही नहीं की, उनका निर्देशन भी किया। 1962-63 में पहली मगही फिल्म भइया में संगीत निर्देशक चित्रगुप्त के निर्देशन में उन्होंने स्वर दिया। मैथिली फिल्म कन्यादान, छठ मइया, विमाता में डोमकच झिंझिया की लोक प्रस्तुति से काफी ख्याति पाई। 

प्रो. (डॉ.) लक्ष्मी सिंह

स्रोत :- http://ift.tt/2pfxpv5
द्वारा अग्रेषित :- श्री. झावेंद्र ध्रुव ,jhavendra.dhruw@gmail.com

Subscribe to receive free email updates: