मित्रो! हम सबके कुछ सपने होते हैं जिन्हें साकार करने के लिए हम कोई कसर बाकी नहीं रख छोड़ते। हम जैसे-जैसे अपने लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ते हैं हमारे प्रयास और अधिक तेज़ हो जाते हैं।
लक्ष्य के अत्यधिक निकट पहुंचने पर हमें अपने लक्ष्य के अतिरिक्त और कुछ भी दिखलाई नहीं पड़ता। यह स्वाभाविक ही है। सफलता का
मूल मंत्र भी यही है। ओलंपिक खेलों को ही लीजिए। दशकों तक कठिन परिश्रम करने के बाद ही कोई खिलाड़ी पदक हासिल करने के लिए आगे आ पाता है।
वर्ष 1988 में सियोल में आयोजित ओलंपिक मुकाबलों में नौकायन की एकल प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के लिए कनाडा के लॉरेंस लेम्यूक्स एक दशक से भी अधिक समय से कठोर प्रशिक्षण ले रहे थे। उनका सपना साकार होने में बस थोड़ा सा ही समय शेष रह गया था।
लॉरेंस लेम्यूक्स के गोल्ड मेडल जीतने की प्रबल संभावना थी। वह तेजी से अपने लक्ष्य कि ओर बढ़ रहे थे और दूसरी पोजीशन पर बने हुए थे; अब उनका कोई न कोई पदक जीतना पक्का था।
लेकिन तभी उन्होंने देखा कि एक दूसरी प्रतिस्पर्धा के नाविकों की नाव बीच समुद्र में उलटी पड़ी है। एक नाविक किसी तरह नाव से लटका हुआ था जबकि दूसरा समुद्र में बह रहा था। दोनों बुरी तरह से घायल थे।
लॉरेंस ने अनुमान लगाया कि सुरक्षा नौका अथवा बचाव दल के आने में देर लगेगी और यदि तत्क्षण सहायता नहीं मिली तो इनका बचना असंभव होगा।
लॉरेंस लेम्यूक्स ने बिना किसी हिचकिचाहट के फ़ौरन अपनी नाव उस दिशा में मोड़ दी जिधर उलटी हुई दुर्घटनाग्रस्त नाव समुद्र की विकराल लहरों में हिचकोले खा रही थी। लेम्यूक्स ने बिना देर किए दोनों घायल नाविकों को एक एक करके अपनी नाव में खींच लिया और तब तक वहीं इंतज़ार किया जब तक कि कोरिया की नौसेना आकर उन्हें सुरक्षित निकाल नहीं ले गई।
वास्तव में लॉरेंस लेम्यूक्स के जीवन मूल्य इस तथ्य पर निर्भर नहीं थे कि विजेता होने के लिए किसी भी कीमत पर ओलंपिक मेडल प्राप्त करना ही एकमात्र विकल्प है।
लॉरेंस लेम्यूक्स को प्रतिस्पर्धा में तो कोई पदक नहीं मिल सका लेकिन अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी द्वारा लॉरेंस लेम्यूक्स को उनके साहस, आत्म-त्याग और खेल भावना के लिए पियरे द कूबर्तिन पदक प्रदान किया जो अत्यंत सम्मान का सूचक है।
हमारे जीवन में भौतिक लक्ष्य भी हों और उन्हें पाने के लिए हम सदैव प्रयासरत रहें लेकिन जीवन का एकमात्र लक्ष्य भौतिक उपलब्धियाँ ही न हों। करुणा के वशीभूत होकर जब हम हर हाल में दूसरों की मदद के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं तभी हम वास्तविक विजेता बन पाते हैं। लॉरेंस लेम्यूक्स की करुणा की भावना व वास्तविक मदद ने उसे अपने देश के लोगों के दिलों का ही नहीं दुनिया के लोगों के दिलों का सम्राट बना दिया।
लक्ष्य के अत्यधिक निकट पहुंचने पर हमें अपने लक्ष्य के अतिरिक्त और कुछ भी दिखलाई नहीं पड़ता। यह स्वाभाविक ही है। सफलता का
मूल मंत्र भी यही है। ओलंपिक खेलों को ही लीजिए। दशकों तक कठिन परिश्रम करने के बाद ही कोई खिलाड़ी पदक हासिल करने के लिए आगे आ पाता है।
वर्ष 1988 में सियोल में आयोजित ओलंपिक मुकाबलों में नौकायन की एकल प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के लिए कनाडा के लॉरेंस लेम्यूक्स एक दशक से भी अधिक समय से कठोर प्रशिक्षण ले रहे थे। उनका सपना साकार होने में बस थोड़ा सा ही समय शेष रह गया था।
लॉरेंस लेम्यूक्स के गोल्ड मेडल जीतने की प्रबल संभावना थी। वह तेजी से अपने लक्ष्य कि ओर बढ़ रहे थे और दूसरी पोजीशन पर बने हुए थे; अब उनका कोई न कोई पदक जीतना पक्का था।
लेकिन तभी उन्होंने देखा कि एक दूसरी प्रतिस्पर्धा के नाविकों की नाव बीच समुद्र में उलटी पड़ी है। एक नाविक किसी तरह नाव से लटका हुआ था जबकि दूसरा समुद्र में बह रहा था। दोनों बुरी तरह से घायल थे।
लॉरेंस ने अनुमान लगाया कि सुरक्षा नौका अथवा बचाव दल के आने में देर लगेगी और यदि तत्क्षण सहायता नहीं मिली तो इनका बचना असंभव होगा।
लॉरेंस लेम्यूक्स ने बिना किसी हिचकिचाहट के फ़ौरन अपनी नाव उस दिशा में मोड़ दी जिधर उलटी हुई दुर्घटनाग्रस्त नाव समुद्र की विकराल लहरों में हिचकोले खा रही थी। लेम्यूक्स ने बिना देर किए दोनों घायल नाविकों को एक एक करके अपनी नाव में खींच लिया और तब तक वहीं इंतज़ार किया जब तक कि कोरिया की नौसेना आकर उन्हें सुरक्षित निकाल नहीं ले गई।
वास्तव में लॉरेंस लेम्यूक्स के जीवन मूल्य इस तथ्य पर निर्भर नहीं थे कि विजेता होने के लिए किसी भी कीमत पर ओलंपिक मेडल प्राप्त करना ही एकमात्र विकल्प है।
लॉरेंस लेम्यूक्स को प्रतिस्पर्धा में तो कोई पदक नहीं मिल सका लेकिन अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी द्वारा लॉरेंस लेम्यूक्स को उनके साहस, आत्म-त्याग और खेल भावना के लिए पियरे द कूबर्तिन पदक प्रदान किया जो अत्यंत सम्मान का सूचक है।
हमारे जीवन में भौतिक लक्ष्य भी हों और उन्हें पाने के लिए हम सदैव प्रयासरत रहें लेकिन जीवन का एकमात्र लक्ष्य भौतिक उपलब्धियाँ ही न हों। करुणा के वशीभूत होकर जब हम हर हाल में दूसरों की मदद के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं तभी हम वास्तविक विजेता बन पाते हैं। लॉरेंस लेम्यूक्स की करुणा की भावना व वास्तविक मदद ने उसे अपने देश के लोगों के दिलों का ही नहीं दुनिया के लोगों के दिलों का सम्राट बना दिया।
सोर्स और क्रेडिट : https://www.achhikhabar.com.