सार्थक व स्वस्थ मनोरंजन के बीच आकाशवाणी अंबिकापुर ने 43 वर्ष पूरे कर लिए हैं। 26 दिसम्बर 1976 को इसकी शुरुआत होने के बाद इस संस्था ने अपना स्वर्णिम युग देखा। इस दौर में रेडियो ही एकमात्र संचार व मनोरंजन का साधन होने से इसकी लोकप्रियता में चार चांद लगा। आज वाईफाई के दौर में भले ही कुछ आकाशवाणी की प्रसिद्धि कम हुई हो मगर इसके सुनने वालों की तादाद आज भी है।
आदिवासी इलाके में रेडियो के जरिये यहां की लोककला, लोकसंगीत, स्थानीय प्रतिभा को निखारने शुरू की गई इस पहल का नतीजा था कि एक से बढ़कर एक प्रतिभा सामने आईं। दशकों पहले आकाशवाणी अंबिकापुर की शुरुआत तब हुई थी जब रेडियो का बोलबाला था। लोगों के पास संचार का एकमात्र माध्यम था। इस जमाने में रेडियो ने ख्याति हासिल की जिसकी कल्पना करना मुश्किल है। रेडियो स्टेशन शुरू होने के बाद यहां नियुक्त प्रथम केंद्र निदेशक अमीक हनफी ने कार्यक्रमों की गुणवत्ता का स्तर इतना बढ़ाया कि आज भी उस दौर के कलाकार एवं कार्यक्रम याद किए जाते हैं। इस दौर में रजत सेन गुप्ता, शैलेंद्र योगी, तपन बनर्जी, नागेंद्र दुबे, अमरेश्वर दुबे, अरविंद माथुर, कामिनी माथुर, माधवी वर्मा, शोभनाथ साहू, राघवेंद्र मुद्गल जैसे बहुआयामी प्रतिभा ने आकाशवाणी को देश भर में नाम दिलाया। इस दौरान अंबिकापुर से प्रसारित पंखुड़ियां, ज्ञान विज्ञान, रसधारा, इंद्रधनुष कार्यक्रम लोकप्रिय रहे। धारावाहिक भोकोदास की सफलता ने कई कलाकारों को स्थापित कर दिया। यह दौर ऐसा था कि आकाशवाणी की पूरी टीम के साथ कलाकारों की लंबी फेहरिस्त थी।
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