National Farmers Day: चौधरी चरण सिंह की बदौलत ही किसानों को मिली थी बड़ी सौगात.
नई दिल्ली जागरण स्पेशल। हम सभी जानते हैं कि भारत कृषि प्रधान देश है। यही वजह है कि यहां के करीब 70 फीसद किसान देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं। इनके ऊपर देश की पूरी अर्थव्यवस्था टिकी है। इनके ही लिए हर वर्ष 23 दिसंबर को राष्ट्रीय कृषक दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की सबसे बड़ी वजह जमींदारी प्रथा का खत्म होना है। यह सभी कुछ पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की वजह से हो सका था। आज उनका जन्मदिन भी है। वे भारत के पांचवें प्रधानमंत्री थे। वह इस पद पर 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक रहे। इसके अलावा वे यूपी के मुख्यमंत्री भी रहे थे। चौधरी चरण सिंह देश के जानेमाने किसान नेता थे जिनका राष्ट्रीय राजनीति में योगदान अहम है। राष्ट्रीय कृषक दिवस को मनाने की शुरुआत 2001 से हुई थी।]
जमींदारी प्रथा को खत्म किया
चरण सिंह द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। उनकी ही बदौलत 1 जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा खत्म हुई और गरीबों को उनका अधिकार मिला। उन्होंने ही लेखपाल के पद की भी शुरुआत की थी। उन्होंने 1954 में किसानों के हित में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। 3 अप्रैल 1967 को चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और राज्य में दोबारा चुनाव करवाए गए। इन चुनावों में उन्हें सफलता मिली और वो दोबारा 17 फरवरी 1970 को प्रदेश के सीएम बने।
शुरुआती जीवन
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंंबर,1902 को बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम चौधरी मीर सिंह था। जब वह छह वर्ष के थे तब उनका परिवार नूरपुर से जानी खुर्द के पास भूपगढी आकर बस गया था। यहां से ही उनके मन में किसानों के प्रति लगाव पैदा हुआ था। 1928 में उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और गाजियाबाद में कुछ समय के लिए वकालत भी की।
राजनीति की शुरुआत
1929 में जब कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन पूर्ण स्वराज्य की मांग की तो इससे चौधरी चरण सिंह भी काफी प्रभावित हुए। इससे प्रभावित होकर उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। चौधरी चरण सिंह महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे। यही वजह थी कि 1930 में जब महात्मा गांधी सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत नमक कानून तोडने का आह्वान किया तो चौधरी चरण सिंह ने इसके लिए हिंडन नदी को चुना था। इसके लिए उन्हें छह माह की कैद भी हुई। जेल से बाहर आते ही वह फिर तन मन से गांधी के आंदोलन से जुड़ गए। 1940 में वे फिर गिरफ्तार किए गए और अक्टूबर 1941 को रिहा हुए।
बापू से प्रभावित
बापू के 'करो या मरो' के नारे के बाद पूरे देश में अंग्रेजों के प्रति गहरा असंतोष था। अगस्त 1942 में उन्होंने भूमिगत होकर एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। उनकी ताकत से अंग्रेज भी घबरा गए थे। उन्हें देखते ही गोली मारने के आदेश तक दे दिए गए थे। इस दौरान उन्होंने कई सभाएं की और अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंक कर बचते भी रहे। बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान जेल में उन्होंने शिष्टाचार नाम से एक किताब भी लिखी।