साहित्य का उत्थान हुआ हिंदी का मान हुआ ,गज़लों की महफ़िल सजी ,लोकधुनें भी परवान चढ़ीं जिसकी फैली बाहों में गंगाजमुनी संस्कृति भी खूब फूली-फली वो आसमान सा विस्तृत, कृष्ण से मोहक ,बहरूपिया रंगरेज कोई इक्यासी वर्ष का कोई समाजसेवी ख्यातिलब्ध बुजुर्ग नहीं ,वो तो 81 वर्ष का किशोरावस्था की ओर बढ़ता हुआ हमारा आकाश वाणी लखनऊ है दोस्तों । 2 अप्रैल को ही स्थापना हुई थी आकाश वाणी लखनऊ की सभी इमारतों की तरह ये भी महज शहर की एक आम इमारत सा है ,लेकिन इसकी पहचान हल्के नीले रंग से रँगी दीवारों पर आकाशवाणी का प्रतीक चिन्ह और उस पर लिखा 'आकाशवाणी लखनऊ' इसे आकर्षण प्रदान करते हैं।
ये वही केंद्र है जो 18 एबट रोड पर दो मंजिले के किराए के मकान से शुरु हुआ था। सुनने में शायद यह अजीब लगे लेकिन छोटे से सफ़र से हुई शुरुआत आज 81 वर्ष के सुरीले सफ़र में तब्दील हो चुकी है। इमारत की भीतरी सफेद रंग की दीवारों से पटी शहर की मशहूर शख्सियतों की तस्वीरें आकाशवाणी के सफ़र की एक कहानी कहती हैं। लखनऊ शहर की तहज़ीब, नज़ाकत, नफ़ाजत और हिंदी-उर्दू की ज़बान को अपने अंदाज़ में जिंदा रखा और यही अंदाज-ए-जुबां इसे बाकी आकाशवाणी केंद्रों से जुदा करते हैं। और भी ख़ास पहलू और क़िस्से हैं आकाशवाणी लखनऊ के जो आपको याद दिलाएंगे बीते दिनों की…….
फिल्मी कलाकारों से मुलाक़ात, फौजी भाइयों के लिए 'जयमाला', 'हवा महल' के नाटक जैसे कार्यक्रम लोगों के जीवन का हिस्सा बनते गए। 1967 में विविध भारती से प्रायोजित कार्यक्रमों की शुरुआत हुई और लोगों ने फिर दिलों में जगह दे दी ।अमीन सयानी की "बिनाका गीतमाला" आज भी आपकी यादों का हिस्सा है ,भाइयों और बहनों की आवाज़ का जादू जो सर चढ़कर बोला उसका असर आज भी राजनीतिक गलियारों में दिखता है ।संबोधन का अंदाज़ ही निराला था जो उस वक़्त भी और आज भी (माननीय प्रधानमंत्री जी की "मन की बात"में) दिलों पर राज करने में सफल हुआ।अपने नाटकों की वजह से भी चर्चा में रहा ये केंद्र ।
कहा जाता था कि यहां नाटक करने लोग कोलंबो से आते थे। अपने नाटकों की वजह से लाहौर के बाद सबसे ज्यादा पहचान इसी केंद्र को मिली । यहां अमृतलाल नागर जैसे बड़े साहित्यकारों ने नाटकों का लेखन और संपादन किया। राधे बिहारी लाल श्रीवास्तव,मुख्तार अहमद, पी.एच.श्रीवास्तव, शहला यास्मीन, आसिफा जमानी, प्रमोद बाला और हरिकृष्ण अरोड़ा जैसे नाटक कलाकारों का कोई सानी नहीं हुआ। यहीं से विमल वर्मा, विजय वास्तव, अनिल रस्तोगी, शीमा रिजवी, कुमकुमधर और संध्या रस्तोगी नाटक के दिग्गज कलाकार यहीं पर हुए।
बेगम अख्तर, तलत महमूद, बिस्मिल्लाह खां, उस्ताद अली अकबर, मदन मोहन, सुशीला मिश्र, विनोद कुमार चटर्जी, विद्यानाथ सेठ, इकबाल अहमद सिद्दीकी, आलोक गांगुली, मोहम्मद यरकूब, सर्वेशवर दयाल सक्सेना, गरिजा कुमार माथुर, भगवती चरण वर्मा, विद्यानिवास मिश्र, रमानाथ अवस्थी, पंडित मदन मोहन मालवीय, सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, जोश मलिहाबादी, जिगर मुरादाबादी, असर लखनवी, मजाज और शकील बदायूंनी जैसे कलाकार यहां से जुड़े रहे।शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां प्रोग्राम करने कहीं भी जा रहे हों वह अपना सफर रोक कर मुख्य द्वार पर सजदा करते हुए और आकाशवाणी परिसर में किशन द्ददा से मिले बगैर कहीं नहीं जाते थे। उनके दिल में यह बात थी कि उन्हें बनाने में आकाशवाणी लखनऊ ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।
20 अगस्त 2000 से 100.7 मेगाहर्ट्ज पर जब एफएम का प्रसारण हुआ तो इसे रेडियो के पुनर्जन्म का नाम दिया गया। यह पूरी तरह से इंटरटेनमेंट चैनल हुआ करता था। इनमें से हैलो एफएम लाइव फोन इन प्रोग्राम काफी पॉपुलर हुआ। आप यूं समझिए कि आधे घंटे के प्रोग्राम के दौरान कैसरबाग फोन एक्सचेंज ब्लॉक हो जाया करता था ऐसा अधिकारीगण बताते हैं।
आकाशवाणी लखनऊ साहित्य और कला का पर्याय रहा। यहां की खासियत रही कि इसने कला के पारखियों को तलाशा और उन्हें खुद से जोड़ा। इस तलाश में डिग्रियों की कभी कोई जगह नहीं रही। जिसकी वजह से हमारे साथ वो लोग भी जुड़े जो कभी स्कूल तक नहीं गए। इनमें ढोलक वादक बफाती भाई जैसे कई नाम शामिल है। दूसरा यहां के प्रोग्राम के किरदार बहुत पॉपुलर हुए। जैसे पंचायत घर के रमईकाका, पलटू/ झपेटे, बालसंघ के रज्जन लाल उर्फ भैय्या और दीदी के किरदार। प्रोग्राम की बात करें तो पत्र के लिए धन्यवाद और प्रसारित नाटकों को श्रोताओं का खूब प्यार मिला।
बेगम अख़्तर का सांसों का रिश्ता रहा यहां से ।ग़ज़ल गायिका अख़्तरी बाई फैज़ाबादी ने 1945 में बैरिस्टर इश्ताक अहमद अब्बासी से निकाह किया। जब दोनों के बीच शादी की बात हुई तो शर्त रखी गई कि वह संगीत से रिश्ता तोड़ लेंगी। जिस पर बेगम अख़्तर राजी हो गईं, लेकिन 5 साल तक आवाज की दुनिया से दूर रहने का सदमा वह बर्दाश्त न कर सकीं और बीमार रहने लगीं। हकीम और डॉक्टर की दवा ने भी कोई असर न किया, नतीजन उनकी तबियत बिगड़ने लगी। हालात को देखकर पति और घर वालों ने आकाशवाणी में गाने की इजाज़त दे दी। पहला प्रोग्राम ठीक से न गा सकने की वजह से अख़बार में उनकी क़ाबिलियत पर उंगली उठाई गई। लेकिन उसके बाद आकाशवाणी की वजह से उन्होंने अपनी खोई पहचान वापस पा ली थी और ग़ज़ल के साथ अपनी ज़िंदगी जी ली थी।
आकाशवाणी का अब तक का सफर बहुत शानदार रहा है। आज भी अपनी पुरानी शैली पर काम करते हुए भाषायी शालीनता का प्रयोग लखनऊ केंद्र को ख़ास बनाने हुए है । आज भी भाषा, संस्कार, तमीज़ ,तहज़ीब ,और बोलने की अदा के लिए जाना जाने वाला आकाशवाणी लखनऊ शान से सर उठाये हर दिल की धड़कनों में अपनी मखमली आवाज़ों के जादू से हलचल पैदा करने में अव्वल है। आज भी युवा दिलों की धड़कन है ,आज भी महिलाओं की सखी है, आज भी कल्पतरु की छाया है ,आज भी किसानों की उन्नत फसल का कृषि सलाहकार है , आज भी बचपन के गलियारों में बालजगत का संसार है और आज भी यहां बजते हुए नग़मे सदाबहार हैं ।क्योंकि आज भी हम जैसों को आकाशवाणी से बेहद प्यार है
"सदियों तलक महकती रहे, नज़ाक़त, अदब और अदा के घूंघट में नशीली शाम सी… आकाशवाणी बसी रहे बनकर दिलों में धड़कन सुबह-ओ-शाम सी"
(शालिनी सिंह)
स्त्रोत :- http://bit.ly/2UpVhwH #editor /target= post;postID=8630374033539206087
द्वारा अग्रेषित : श्री झावेन्द्र कुमार ध्रुव,jhavendra.dhruw@gmail.com