बात अक्टूबर 1994 की है।वाराणसी केंद्र पर हम लोगों का इंडक्शन कोर्स चल रहा था।हम लोग इसके समापन के अवसर पर संगीत स्टूडियो में एकत्र थे और मुख्य अतिथि का इंतज़ार कर रहे थे।तभी रेशमी साड़ी में लिपटी,चेहरे पर सौम्य मुस्कान लिए एक शालीन,सुसंस्कृत,भव्य आकृति ने स्टूडियो में प्रवेश किया।हम लोग चमत्कृत से खड़े उस आकृति को देख रहे थे।ये विदुषी गिरिजा देवी जी से पहली मुलाकात थी।उन्होंने सिर्फ हमें प्रमाण पत्र ही नहीं दिए बल्कि ये सीख भी दी कि परफेक्शन रियाज़ से ही आता है।उनके गले से जो भी आवाज़ निकलती लगता संगीत बह रहा है।उसके बरसों बाद आकाशवाणी इलाहाबाद के स्वर्ण जयंती समारोह में और उसके बाद केंद्र द्वारा आकाशवाणी संगीत सम्मेलन में शामिल होने आईं तो उनसे भेंट हुई।उनका सहज सरल बाल सुलभ व्यवहार आज भी ज़ेहन में तारी है।वे आज जब नही रहीं तो उनकी स्मृतियों से मन भीग रहा है।उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
Source : दीपेन्द्र सिवाच