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समाजसेवी अनूप खन्ना दादी की रसोई में बना खाना लोगों को खिलाने के लिए नोएडा सेक्टर 29 में आते हैं। यहां लोग उन्हें सिर्फ 5 रुपये देते हैं और वो उन्हें इन पैसों में भरपेट खाना खिलाते हैं।
खाना ऐसा कि खुशबू से ही भूख लग जाए। दादी की रसोई में खाना सिर्फ देसी घी में बनाया जाता है। सिर्फ 5 रुपये में लोगों को भरपेट खाना खिलाया जाता है। गरीब हो या फिर अमीर हर किसी को दादी की रसोई में बने इस खाने की खूशबू अपनी ओर खींच लाती है। एक बार आपने अगर यहां खाना खा लिया तो आप फिर बार-बार यहीं पर खाना खाने के लिए आएंगी। कहते हैं जिस घर में बड़े-बुज़ुर्गों का आशीर्वाद होता है वहां हमेशा खुशियां रहती हैं और जिस खाने में दादी के हाथों का स्वाद हो तो आप समझ ही जाइए कि वो कितना स्वादिष्ट होगा। अब आप अपने घर पर खाना खाते-खाते बोअर हो चुकी हैं तो दादी की रसोई में आपका भी स्वागत है।

वैसे दादी की रसोई गरीब और जरुरतमंद लोगों के लिए है। ऐसे लोग जिन्हें दिन में पेटभर खाना भी नसीब नहीं होता। दादी की रसोई आज कल से नहीं बल्कि पिछले 2-3 सालों से ये काम कर रही है। अनूप खन्ना 500 लोगों का खाना बनाकर नोएडा के सेक्टर 29 के गंगा कॉम्प्लेक्स में लेकर आते हैं। टेबल पर खाना लगाते हैं और फिर खाना खाने वालों की लंबी लाइन लग जाती है। 5 रुपये दो और दादी की रसोई में बना खाना खाओ। दोपहर 12 बजे से 2 बजे के बीच में अनूप खन्ना का सारा खाना खत्म हो जाता है। कभी-कभी तो उससे पहले भी।

अनूप खन्ना का कहना है कि वो चाहते हैं की दादी की रसोई सिर्फ नोएडा में ही नहीं बल्कि भारत के कई और शहरों में भी होनी चाहिए वो इसके लिए मेहनत भी कर रहे हैं। वैसे यहां दादी की रसोई का खाना खाने वाले लोग अनूप खन्ना को सैंटा मानते हैं क्योंकि वो गरीबों को खिलाने के नाम पर यहा सस्ता  खाना देने के नाम पर लोगो के स्वाद को बनाए रखने की हमेशा ही कोशिश में लगे रहते हैं।

अनूप खन्ना ने दादी की रसोई की शुरूआत साल 2015 में की थी। एक खास बातचीत में उन्होंने बताया कि उनकी दादी सिर्फ खाने में खिचड़ी ही खाती थी और हमेशा कहती थी कि मैं सिर्फ खिचड़ी खाती हूं मेरे खाने के जो पैसे बचते हैं उससे गरीबों को खाना खिलाया करो। आज भी समाज में गरीब और जरुरतमंद लोगों की कमी नहीं है दिन में भरपेट खाना मिल जाए इसकी जंग करते आज भी हज़ारों लोग आपको सड़कों पर मिल जाएंगें। खाने के नाम पर पेट भरने के लिए वो कुछ भी खा लेते हैं ऐसे में अनूप खन्ना भले ही 5 रुपये लेते हैं लेकिन वो 5 रुपये में लोगों को भरपेट देसी घी में बना स्वादिष्ट खाना ही खिलाते हैं।

अनूप खन्ना की इस कोशिश के लिए उन्हें उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी सराह चुके हैं। 2015 से शायद ही ऐसा कोई दिन बीता हो जब अनूप खन्ना की दादी की रसोई का खाना यहां ना आया हो। उनकी सच्ची निष्ठा और लोगों के लिए उनका ये प्यार उन्हें समाज में एक नयी पहचान दे रहा है। लोगों से उन्हें इतना प्यार और आशीर्वाद मिल रहा है कि वो अपने इस काम को और भी मेहनत से अच्छी तरह से कर पाने में कामयाब हो रहे हैं। आप सोचते होंगे की 5 रुपये ही तो ले रहे हैं खिचड़ी खिला देते होंगे। लेकिन नहीं ऐसा नहीं है। दादी की रसोई में खाने के लिए कई लजीज़ पकवान हैं। देसी घी में तड़का लगायी हुई दाल, अच्छी क्वालिटी के चावल, रोटी, आचार, सलाद सब्जी सब होता है। दादी की रसोई में मिलने 5 रुपये में मिलने वाले खाने में स्वाद के साथ साथ आपकी सेहत का भी पूरा ध्यान रखा जाता है।
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 एक शख्स देसी घी के तड़के से हर दिन सिर्फ पांच रुपए में सैकड़ों लोगों को पेटभर भोजन करा रहा है। ये नोएडा शहर का एक ऐसा ठिकाना है जहां भोजन, कपड़ा और दवा तीनों चीजें सस्ती दरों में उपलब्ध हैं। यहां लोग पांच, दस रुपए देकर स्वाभिमान के साथ खाना खाते हैं और अपने मनपसंद कपड़े खरीदते हैं। 'दादी की रसोई' नाम की ये दुकान उत्तर प्रदेश में नोएडा के सेक्टर-29 स्थित गंगा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में है। जहां हर दिन देसी घी के तड़के से दोपहर 12 से 2 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ रहती है। यहां पांच रुपए में पेटभर भोजन, 10 रुपए में मनपसंद कपड़े और प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र खोलकर मरीजों को सस्ती दवा भी उपलब्ध करा रहे हैं। अनूप सिर्फ दादी की रसोई ही नहीं चला रहे हैं, बल्कि देश के किसी भी हिस्से में आयी प्राकृतिक आपदाओं में भी ये हजारों लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं। ये भी पढ़ें- पत्नी ने अचार के लिए बनाया था सिरका, पति ने खड़ा कर दिया लाखों का कारोबार दो पहिया वाहनों के चालक अगर हैलमेट नहीं पहनें तो उन्हें नहीं मिलता भोजन समाजसेवी अनूप खन्ना (59 वर्ष) से जब कम पैसों में पौष्टिक खाना देने की वजह पूछी गयी तो उन्होंने गांव कनेक्शन संवाददाता को फोन पर बताया, "मैं चाहता तो ये खाना और कपड़े मुफ्त में भी दे सकता था, पर कम पैसे लेने की वजह सिर्फ यह है कि यहां भोजन करने वाले लोगों का स्वाभिमान बना रहे। हर तबके के व्यक्ति पांच रुपए देकर सम्मान से भोजन करते हैं। वही बात कपड़ों के लिए लागू है यहां जरूरतमंद लोग अपनी मनपसंद के कपड़े 10 रुपए देकर ले सकते हैं।" दादी की रसोई में खाना खाने वाले लोग एक भिक्षुक से लेकर दुकान के मालिक तक शामिल हैं। इस रास्ते से गुजरने वाले लोग भी इसका स्वाद चखे बिना आगे नहीं बढ़ते। 'दादी की रसोई' खोलने का विचार अनूप के दिमाग में कैसे आया, इस सवाल के जबाब में अनूप ने कहा, "मेरी माँ बहुत बीमार रहती थी तो उन्हें खाने में हल्का भोजन यानि खिचड़ी देते थे। एक दिन उन्होंने खाते समय कहा कि तुम लोगों ने मेरे खाने में बहुत कटौती की है, इसलिए जितना बचाया है उसे जरूरतमंदों को खिलाना। मेरे बच्चों ने उसी समय इसका नाम 'दादी की रसोई' दे दिया।" ये भी पढ़ें- देसी गाय के गोबर से बनाते हैं वातानुकूलित घर 'दादी माँ का सद्भावना' स्टोर पर सिर्फ दस रुपए में मिलते हैं मनपसंद कपड़े। अगस्त 2015 में ये विचार आया और अनुन खन्ना ने अपने जन्मदिन 21 अगस्त को कुछ लोगों के सहयोग से इसकी शुरुआत कर दी। शुरुआत के दिनों में पांच से दस लोग भोजन करते थे। कुछ दिनों में यहां के स्वादिष्ट भोजन की ऐसी चर्चा हुई कि अब यहां रोजाना लगभग 500 लोग भोजन करते हैं। अनूप के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे उन्हीं की विचारधारा से प्रेरित होकर ये पिछले 20 वर्षों से ज्यादा अलग-अलग तरह के सामाजिक कार्य कर रहे थे। अनूप बताते हैं, "मैं किसी सरकारी पद पर नहीं था इसलिए जब भी किसी मुहिम की शुरुआत करता लोग तरह-तरह के सवाल पूंछने लगते। मुझे लगा किसी ऐसे काम की शुरुआत करूं जहां किसी का हस्तक्षेप न हो। जबसे दादी की रसोई खोला तबसे लगा यही वह काम है जिसकी मुझे तलाश थी।" ये भी पढ़ें- राजस्थान के किसान खेमाराम ने अपने गांव को बना दिया मिनी इजरायल, सालाना 1 करोड़ का टर्नओवर पांच रुपए में दोपहर में खाना खाते लोग यहां रोज खाने में चावल और अचार के साथ अलग-अलग तरह की पौष्टिक सब्जियां और दालें बनती हैं। अब तो इस रसोई की इतनी चर्चा हो गयी है कि अब लोग यहां आकर अपने बच्चों का जन्मदिन भी मनाने लगे हैं। ख़ास पर्व एवम उत्सवों पर यहां पूड़ी, हलवा, मिठाई और आइसक्रीम भी मिलती है। 'दादी की रसोई' को चलाने के लिए पैसे कहां से आते हैं इस सवाल के जबाब में अनूप ने कहा, "इस रसोई को चलाने के लिए सहयोगी व्हाट्स ऐप ग्रुप और फेसबुक पेज के माध्यम से हमारी मदद करते हैं। जो भी मदद करने वाले साथी हैं उन्हें हमारे काम पर इतना भरोसा हो गया है। उन्हें लगता है अगर हम इस समूह को पैसा देंगे तो वह जरूरतमंद तक जरुर पहुंचेगा।" ये भी पढ़ें-बिना जुताई के जैविक खेती करता है ये किसान, हर साल 50 - 60 लाख रुपये का होता है मुनाफा, देखिए वीडियो दादी मां की रसोई में छुट्टी के बाद स्कूल के बच्चे अनूप ये सारा काम अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए करते हैं। अनूप के इस सराहनीय कार्य को देखते हुए अब मदद करने वालों की कमी नहीं रह गयी है। यहां के विधायक पंकज सिंह भी दादी की रसोई में सहयोग करते हैं, इन्होंने एक रसोई की और शुरुआत कर दी है। अनूप 'दादी माँ का सदभावना स्टोर' के बारे में बताते हैं, "यहां सक्षम लोग हर तरह के कपड़े दे जाते हैं। कुछ लोग ब्रांडेड कपड़े भी देते हैं, कई लोग शादी के अपने महंगे जोड़े दे जाते हैं। मुझे लगता है भिक्षुक और मजदूर भी अपने मनपसंद कपड़े सस्ते दरों में पहन सकें। इसलिए इस स्टोर में अपने मनपसंद कोई एक जोड़ी कपड़े सिर्फ 10 रुपए में खरीद सकते हैं।" अनूप का मानना है कि सरकार को भी कोई भी चीज मुफ्त में नहीं देनी चाहिए बल्कि उसे सस्ती दरों में उपलब्ध कराना चाहिए।

https://www.gaonconnection.com/badalta-india/quality-food-in-just-5-rupes-in-noida-and-clotos-in-10-rupees-a-man-of-who-serves-the-poor-people खाना ऐसा कि खुशबू से ही भूख लग जाए। दादी की रसोई में खाना सिर्फ देसी घी में बनाया जाता है। सिर्फ 5 रुपये में लोगों को भरपेट खाना खिलाया जाता है। गरीब हो या फिर अमीर हर किसी को दादी की रसोई में बने इस खाने की खूशबू अपनी ओर खींच लाती है। एक बार आपने अगर यहां खाना खा लिया तो आप फिर बार-बार यहीं पर खाना खाने के लिए आएंगी। कहते हैं जिस घर में बड़े-बुज़ुर्गों का आशीर्वाद होता है वहां हमेशा खुशियां रहती हैं और जिस खाने में दादी के हाथों का स्वाद हो तो आप समझ ही जाइए कि वो कितना स्वादिष्ट होगा। अब आप अपने घर पर खाना खाते-खाते bor हो चुकी हैं तो दादी की रसोई में आपका भी स्वागत है।
वैसे दादी की रसोई गरीब और जरुरतमंद लोगों के लिए है। ऐसे लोग जिन्हें दिन में पेटभर खाना भी नसीब नहीं होता। समाजसेवी अनूप खन्ना दादी की रसोई में बना खाना लोगों को खिलाने के लिए नोएडा सेक्टर 29 में आते हैं। यहां लोग उन्हें सिर्फ 5 रुपये देते हैं और वो उन्हें इन पैसों में भरपेट खाना खिलाते हैं। आपको ये भी बता दें कि दादी की रसोई आज कल से नहीं बल्कि पिछले 2-3 सालों से ये काम कर रही है। अनूप खन्ना 500 लोगों का खाना बनाकर नोएडा के सेक्टर 29 के गंगा कॉम्प्लेक्स में लेकर आते हैं। टेबल पर खाना लगाते हैं और फिर खाना खाने वालों की लंबी लाइन लग जाती है। 5 रुपये दो और दादी की रसोई में बना खाना खाओ। दोपहर 12 बजे से 2 बजे के बीच में अनूप खन्ना का सारा खाना खत्म हो जाता है। कभी-कभी तो उससे पहले भी।
इस बढ़ती महंगाई में नोएडा का एक शख्स देसी घी के तड़के से हर दिन सिर्फ पांच रुपए में सैकड़ों लोगों को पेटभर भोजन करा रहा है। ये नोएडा शहर का एक ऐसा ठिकाना है जहां भोजन, कपड़ा और दवा तीनों चीजें सस्ती दरों में उपलब्ध हैं। यहां लोग पांच, दस रुपए देकर स्वाभिमान के साथ खाना खाते हैं और अपने मनपसंद कपड़े खरीदते हैं। 'दादी की रसोई' नाम की ये दुकान उत्तर प्रदेश में नोएडा के सेक्टर-29 स्थित गंगा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में है। जहां हर दिन देसी घी के तड़के से दोपहर 12 से 2 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ रहती है। यहां पांच रुपए में पेटभर भोजन, 10 रुपए में मनपसंद कपड़े और प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र खोलकर मरीजों को सस्ती दवा भी उपलब्ध करा रहे हैं। अनूप सिर्फ दादी की रसोई ही नहीं चला रहे हैं, बल्कि देश के किसी भी हिस्से में आयी प्राकृतिक आपदाओं में भी ये हजारों लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं।

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इस बढ़ती महंगाई में नोएडा का एक शख्स देसी घी के तड़के से हर दिन सिर्फ पांच रुपए में सैकड़ों लोगों को पेटभर भोजन करा रहा है। ये नोएडा शहर का एक ऐसा ठिकाना है जहां भोजन, कपड़ा और दवा तीनों चीजें सस्ती दरों में उपलब्ध हैं। यहां लोग पांच, दस रुपए देकर स्वाभिमान के साथ खाना खाते हैं और अपने मनपसंद कपड़े खरीदते हैं। 'दादी की रसोई' नाम की ये दुकान उत्तर प्रदेश में नोएडा के सेक्टर-29 स्थित गंगा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में है। जहां हर दिन देसी घी के तड़के से दोपहर 12 से 2 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ रहती है। यहां पांच रुपए में पेटभर भोजन, 10 रुपए में मनपसंद कपड़े और प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र खोलकर मरीजों को सस्ती दवा भी उपलब्ध करा रहे हैं। अनूप सिर्फ दादी की रसोई ही नहीं चला रहे हैं, बल्कि देश के किसी भी हिस्से में आयी प्राकृतिक आपदाओं में भी ये हजारों लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं। ये भी पढ़ें- पत्नी ने अचार के लिए बनाया था सिरका, पति ने खड़ा कर दिया लाखों का कारोबार दो पहिया वाहनों के चालक अगर हैलमेट नहीं पहनें तो उन्हें नहीं मिलता भोजन समाजसेवी अनूप खन्ना (59 वर्ष) से जब कम पैसों में पौष्टिक खाना देने की वजह पूछी गयी तो उन्होंने गांव कनेक्शन संवाददाता को फोन पर बताया, "मैं चाहता तो ये खाना और कपड़े मुफ्त में भी दे सकता था, पर कम पैसे लेने की वजह सिर्फ यह है कि यहां भोजन करने वाले लोगों का स्वाभिमान बना रहे। हर तबके के व्यक्ति पांच रुपए देकर सम्मान से भोजन करते हैं। वही बात कपड़ों के लिए लागू है यहां जरूरतमंद लोग अपनी मनपसंद के कपड़े 10 रुपए देकर ले सकते हैं।" दादी की रसोई में खाना खाने वाले लोग एक भिक्षुक से लेकर दुकान के मालिक तक शामिल हैं। इस रास्ते से गुजरने वाले लोग भी इसका स्वाद चखे बिना आगे नहीं बढ़ते। 'दादी की रसोई' खोलने का विचार अनूप के दिमाग में कैसे आया, इस सवाल के जबाब में अनूप ने कहा, "मेरी माँ बहुत बीमार रहती थी तो उन्हें खाने में हल्का भोजन यानि खिचड़ी देते थे। एक दिन उन्होंने खाते समय कहा कि तुम लोगों ने मेरे खाने में बहुत कटौती की है, इसलिए जितना बचाया है उसे जरूरतमंदों को खिलाना। मेरे बच्चों ने उसी समय इसका नाम 'दादी की रसोई' दे दिया।" ये भी पढ़ें- देसी गाय के गोबर से बनाते हैं वातानुकूलित घर 'दादी माँ का सद्भावना' स्टोर पर सिर्फ दस रुपए में मिलते हैं मनपसंद कपड़े। अगस्त 2015 में ये विचार आया और अनुन खन्ना ने अपने जन्मदिन 21 अगस्त को कुछ लोगों के सहयोग से इसकी शुरुआत कर दी। शुरुआत के दिनों में पांच से दस लोग भोजन करते थे। कुछ दिनों में यहां के स्वादिष्ट भोजन की ऐसी चर्चा हुई कि अब यहां रोजाना लगभग 500 लोग भोजन करते हैं। अनूप के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे उन्हीं की विचारधारा से प्रेरित होकर ये पिछले 20 वर्षों से ज्यादा अलग-अलग तरह के सामाजिक कार्य कर रहे थे। अनूप बताते हैं, "मैं किसी सरकारी पद पर नहीं था इसलिए जब भी किसी मुहिम की शुरुआत करता लोग तरह-तरह के सवाल पूंछने लगते। मुझे लगा किसी ऐसे काम की शुरुआत करूं जहां किसी का हस्तक्षेप न हो। जबसे दादी की रसोई खोला तबसे लगा यही वह काम है जिसकी मुझे तलाश थी।" ये भी पढ़ें- राजस्थान के किसान खेमाराम ने अपने गांव को बना दिया मिनी इजरायल, सालाना 1 करोड़ का टर्नओवर पांच रुपए में दोपहर में खाना खाते लोग यहां रोज खाने में चावल और अचार के साथ अलग-अलग तरह की पौष्टिक सब्जियां और दालें बनती हैं। अब तो इस रसोई की इतनी चर्चा हो गयी है कि अब लोग यहां आकर अपने बच्चों का जन्मदिन भी मनाने लगे हैं। ख़ास पर्व एवम उत्सवों पर यहां पूड़ी, हलवा, मिठाई और आइसक्रीम भी मिलती है। 'दादी की रसोई' को चलाने के लिए पैसे कहां से आते हैं इस सवाल के जबाब में अनूप ने कहा, "इस रसोई को चलाने के लिए सहयोगी व्हाट्स ऐप ग्रुप और फेसबुक पेज के माध्यम से हमारी मदद करते हैं। जो भी मदद करने वाले साथी हैं उन्हें हमारे काम पर इतना भरोसा हो गया है। उन्हें लगता है अगर हम इस समूह को पैसा देंगे तो वह जरूरतमंद तक जरुर पहुंचेगा।" ये भी पढ़ें-बिना जुताई के जैविक खेती करता है ये किसान, हर साल 50 - 60 लाख रुपये का होता है मुनाफा, देखिए वीडियो दादी मां की रसोई में छुट्टी के बाद स्कूल के बच्चे अनूप ये सारा काम अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए करते हैं। अनूप के इस सराहनीय कार्य को देखते हुए अब मदद करने वालों की कमी नहीं रह गयी है। यहां के विधायक पंकज सिंह भी दादी की रसोई में सहयोग करते हैं, इन्होंने एक रसोई की और शुरुआत कर दी है। अनूप 'दादी माँ का सदभावना स्टोर' के बारे में बताते हैं, "यहां सक्षम लोग हर तरह के कपड़े दे जाते हैं। कुछ लोग ब्रांडेड कपड़े भी देते हैं, कई लोग शादी के अपने महंगे जोड़े दे जाते हैं। मुझे लगता है भिक्षुक और मजदूर भी अपने मनपसंद कपड़े सस्ते दरों में पहन सकें। इसलिए इस स्टोर में अपने मनपसंद कोई एक जोड़ी कपड़े सिर्फ 10 रुपए में खरीद सकते हैं।" अनूप का मानना है कि सरकार को भी कोई भी चीज मुफ्त में नहीं देनी चाहिए बल्कि उसे सस्ती दरों में उपलब्ध कराना चाहिए।

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इस बढ़ती महंगाई में नोएडा का एक शख्स देसी घी के तड़के से हर दिन सिर्फ पांच रुपए में सैकड़ों लोगों को पेटभर भोजन करा रहा है। ये नोएडा शहर का एक ऐसा ठिकाना है जहां भोजन, कपड़ा और दवा तीनों चीजें सस्ती दरों में उपलब्ध हैं। यहां लोग पांच, दस रुपए देकर स्वाभिमान के साथ खाना खाते हैं और अपने मनपसंद कपड़े खरीदते हैं। 'दादी की रसोई' नाम की ये दुकान उत्तर प्रदेश में नोएडा के सेक्टर-29 स्थित गंगा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में है। जहां हर दिन देसी घी के तड़के से दोपहर 12 से 2 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ रहती है। यहां पांच रुपए में पेटभर भोजन, 10 रुपए में मनपसंद कपड़े और प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र खोलकर मरीजों को सस्ती दवा भी उपलब्ध करा रहे हैं। अनूप सिर्फ दादी की रसोई ही नहीं चला रहे हैं, बल्कि देश के किसी भी हिस्से में आयी प्राकृतिक आपदाओं में भी ये हजारों लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं।

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इस बढ़ती महंगाई में नोएडा का एक शख्स देसी घी के तड़के से हर दिन सिर्फ पांच रुपए में सैकड़ों लोगों को पेटभर भोजन करा रहा है। ये नोएडा शहर का एक ऐसा ठिकाना है जहां भोजन, कपड़ा और दवा तीनों चीजें सस्ती दरों में उपलब्ध हैं। यहां लोग पांच, दस रुपए देकर स्वाभिमान के साथ खाना खाते हैं और अपने मनपसंद कपड़े खरीदते हैं। 'दादी की रसोई' नाम की ये दुकान उत्तर प्रदेश में नोएडा के सेक्टर-29 स्थित गंगा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में है। जहां हर दिन देसी घी के तड़के से दोपहर 12 से 2 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ रहती है। यहां पांच रुपए में पेटभर भोजन, 10 रुपए में मनपसंद कपड़े और प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र खोलकर मरीजों को सस्ती दवा भी उपलब्ध करा रहे हैं। अनूप सिर्फ दादी की रसोई ही नहीं चला रहे हैं, बल्कि देश के किसी भी हिस्से में आयी प्राकृतिक आपदाओं में भी ये हजारों लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं।

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