...........ग़ज़ल साम्राज्ञी बेगम अख़्तर आकाशवाणी/दूरदर्शन की कोहनूर हैं।उन्हें सहेज कर रखना हमारा गौरव है।
प्रसार भारती के पुरोधा, अखिल भारतीय प्रसारण सेवा के पूर्व अधिकारी श्री नित्यानन्द मैठाणी ने एक मुलाक़ात में बताया है कि उनकी पुस्तक ग़ज़ल साम्राज्ञी बेगम अख़्तर की गायकी पर उनके अपने अनुभवों और बेगम साहिबा से हुई अनेक मुलाक़ातों पर आधारित है। पुस्तक में बेगम अख़्तर के समग्र जीवन कृतित्व का विवेचन तो हुआ ही है उनके बारे में फैली तरह- तरह की किंवदंतियों की सप्रमाण सच्चाई भी सामने आई है।अक्सर ऐसा हो रहा है कि कुछ अति उत्साही लोग बेगम अख्तर साहिबा से निकटता दिखाने के लिए झूठे प्रसंगों को भी अब सामने ला रहे हैं।
1958 से 1974 तक मैठाणी साहब बेगम साहिबा से किसी न किसी प्रकार जुड़े रहे हैं।लखनऊ में 1974 में उनकी मृत्यु के समय वे आकाशवाणी लखनऊ में संगीत विभाग के कार्यक्रम अधिकारी पद पर तैनात थे। यह भी संयोग की बात है कि उसी केन्द्र पर संगीत के कार्यक्रम अधिकारी रह चुके इस ब्लाग लेखक के योगदान के बारे में वे इस पुस्तक में लिखते हैं-"संगीत विभाग के अधिकारी श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी मेरे पुराने मित्र हैं।उन्होंने बेगम साहिबा की याद में "कुछ नक़्श तेरी याद के"शीर्षक से तेरह एपिसोड के कार्यक्रम बनाए थे।त्रिपाठी जी मेरी इस पुस्तक के आधार हैं।.."कुछ नक़्श तेरी याद के" के प्रसारण की छाप अनेक स्थानों पर इस पुस्तक में मिलेगी।श्री त्रिपाठी का सहयोग मैं कभी भुला नहीं सकता।"श्री मैठाणी ने अपने आमुख में लिखा है कि "बेगम साहिबा की सबसे बड़ी उपलब्धि थी भारत के संगीत की मुख्य धारा में उनका अवतरित होना।उन्होंने संगीत को समय की मांग समझा था।अत:वे भारतीय संगीत की सही प्रतिनिधि कही जा सकती हैं।"आकर्षक और दुर्लभ चित्रों और प्रकाशन की साज सज्जा से सम्पन्न इस पुस्तक में बारह अध्याय हैं।इनमें ,सच मानिये ,बेगम साहिबा की ज़िन्दगी से जुड़े कई ऐसे तथ्य भी हैं जो अभी तक जानकारी में या तो आये नहीं थे या अगर सामने आये थे तो आधे अधूरे थे।भले ही उनकी मौत अहमदाबाद में हुई लेकिन सच्चे दिल से लखनऊ को प्यार करने वाली बेगम साहिबा को लखनऊ आज भी उतना ही प्यार करता है।लखनऊ में आज भी संगीत की हर महफ़िल उनकी यादों को ताज़गी देती रहती है।
उधर प्रसार भारती आज भी अपने प्रसारणों में बेगम साहिबा की रिकार्डिंग प्रसारित करता रहता है।उनकी आडियो-वीडियो सी.डी.उपलब्ध कराता है।उनके सम्मान में संगीत की महफिलों को रौशन करता रहता है। गर आकाशवाणी /दूरदर्शन ना होता तो मलिका ए गज़ल की यादों को कौन इतनी ईमानदारी और श्रद्धा से सहेज पाता ?
प्रेषक :- श्री. प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,लखनऊ