मां, सास, दादी, नानी जैसे रोल करने वाली एक्ट्रेसेज़ को हिंदी फिल्मों के दर्शकों ने कुछ नहीं गिना. लेकिन हकीकत ये है कि शिक्षा और एक्टिंग क्षमताओं के मामले में ये अभिनेत्रियां हीरो लोगों से कई गुना ज्यादा काबिलियत वाली रही हैं. ऐसा ही एक नाम है दीना पाठक का. उन्हें हम फिल्मों में क्यूट दादी मां के तौर पर याद करते हैं. जिनकी आवाज की मक्खन लगी खनक अगले सौ बरस तक सुनाई देती रहेगी. उन्हें देख ऐसे लगता था कि पड़ोस में ही रहने वाली कोई बुजुर्ग महिला हैं, या फिर अपने परिवार में ही कोई नानी हैं. और ऐसा हर दर्शक को लगा होगा. एक एक्टर के तौर पर यही सबसे बड़ी सफलता होती है कि आप दर्शक को ऐसा महसूस करवा पाएं.
'परदेस' (1997) में उनका गंगा की दादी का रोल ले लीजिए. या फिर ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'गोलमाल' (1979) जिसमें वे रामप्रसाद/लक्ष्मणप्रसाद की नकली मां बनती हैं. या मुखर्जी की ही अगले साल आई फिल्म 'खूबसूरत' जिसमें वे गुप्ता परिवार की कड़क मुखिया निर्मला गुप्ता बनी थीं. पॉपुलर हिंदी सिनेमा में उनके ऐसे अनेक रोल रहे हैं जो हमें याद आते जाते हैं. उतनी ही मात्रा में उन्होंने आर्टहाउस सिनेमा में भी हिस्सा लिया.
जैसे गुलज़ार की फिल्म 'मीरा' (1979) में उन्होंने राजा बीरमदेव की रानी कुंवरबाई का रोल किया. जैसे उन्होंने केतन मेहता की 'भवनी भवई' (1980), 'मिर्च मसाला' (1987) और 'होली' (1984) में काम किया. सईद अख़्तर मिर्ज़ा के डायरेक्शन में बनी 'मोहन जोशी हाज़िर हो' (1984) में दीना ने मोहन जोशी की पत्नी का रोल किया. उन्होंने गोविंद निहलानी की सीरीज 'तमस' (1988) में बंतो की भूमिका की. ऐसी और भी बहुत सी फिल्में हैं.