आकाशवाणी और दूरदर्शन के समाचार एकांश में विभिन्न पदों पर रहते हुए देश और विदेश में अपनी मूल्यवान सेवाएं देने वाले श्री राम सागर शुक्ल रिटायरमेंट के बाद भी लेखन और समाज सेवा के पुनीत कार्य में जुटे हुए हैं।बढ़ती उम्र उनके कर्मयोग में बाधक नहीं आ रही है। श्रीराम सागर शुक्ल ने अभी कुछ दिन पहले एक पुस्तक लिखी थी- "वन चले राम रघुराई । "अब उनकी दूसरी पुस्तक भी आ चुकी है- "एशिया के ज्योतिपुंज-गुरु गोरखनाथ ! "
श्री शुक्ल कहते हैं कि हिन्दी का आदि कवि कौन है ? जब तक मैथिली को अलग भाषा का दर्जा नहीं मिला था तब तक मैथिली के महान कवि विद्यापति को ही हिंदी का आदि कवि माना जाना उचित था पर अब नहीं ।कुछ लोग अमीर खुसरो को हिन्दी का आदि कवि मानते हैं ।परंतु अमीर खुसरो से भी पहले और सबसे पहले गोरखनाथ ने अवधी, भोजपुरी और राजस्थानी में कविताएँ लिखी ।अगर ये बोलियां हिन्दी हैं ... तो गुरु गोरखनाथ को हिंदी का आदि कवि माना जाना चाहिए।"वे अपनी बात बढ़ाते हुए कहते हैं कि अक्सर लोग पूछते हैं कि क्या गुरु गोरखनाथ बौद्ध मतावलंबी थे ? और यह भी कि 'गोरखधंधा' शब्द का विकास कैसे हुआ ? वे दावे के साथ बताते हैं कि गुरु गोरखनाथ के बारे में अन्य ऐसे ही कई सामान्यत: उलझे प्रश्नो के सप्रमाण उत्तर हाल ही में प्रकाशित मेरी पुस्तक 'एशिया के ज्योतिपुंज गुरु गोरखनाथ' में मैनें देने का प्रयास किया है। उम्मीद है विद्वतजन स्वीकारेंगे।
इस पुस्तक के लेखन और प्रकाशन पर प्रसार भारती परिवार श्री शुक्ल को बधाई दे रहा है।