ये है...विविध भारती...दिल की सुरीली धड़कन...
यह वो लाइन है जिसके श्रोता आज भी हैं। मोबाइल और तकनीकि ने आज के दौर में आज भी रेडियो के सुनने वाले हैं। जो समय-समय पर फरमाइशें भेजते हैं। विविध भारती की सुरीली धड़कन की आवाज हर गली कोने में गूंजा करती थी। घर का बरामदा हो या फिर चाय-पान की दुकानें। हर कहीं एक बड़ा सा रेडियो सेट और विविध भारती की आवाज के साथ चाय की चुस्कीयां लेकर लोग इसे बड़े ही ध्यान से सुनते थे।
वक्त के साथ चीजें भी बदली, नहीं बदली तो लोगों की रेडियो सुनने की दीवानगी। अब भी ऐसे श्रोता हैं जो पूरी शिद्दत के साथ रेडियो सुनते हैं। आज भी हजारों श्रोता पत्र भेजकर अपनी फरमाइश का कार्यक्रम सुनते हैं। रेडियो विश्व का सबसे सुलभ मीडिया है। दुनिया के किसी भी कोने में रेडियो सुना जा सकता है।
वे लोग, जो पढऩा-लिखना नहीं जानते, रेडियो सुनकर सारी जानकारियाँ पा जाते हैं। आपातकालीन परिस्थितियों में रेडियो सम्पर्क-साधन की भूमिका भी निभाता है और लोगों को सावधान और सतर्क करता है। कोई भी प्राकृतिक आपदा आने पर बचाव-कार्यों के दौरान भी रेडियो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Source : झावेन्द्र कुमार ध्रुव