प्रसार भारती परिवार ब्लॉग द्वारा आपकी स्वरचित हिन्दी कविताएं - तू शहर बनो बनारस की


तू शहर बनो बनारस की

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मैं सांझ-सबेंरे भटकूं तुझमें
तू गली बनो घाटों की
मैं सांझ-सबेरे भटकूं तुझमें ।
तू शहर बनो बनारस की ।।

तू फूल बनो बगिया की
मैं भौंरा बन बस जाऊं तुझमें
तू मृगदांव बनो तथागत की
तू शहर बनो बनारस की ।।

तू लहर बनो नदियां की
मैं गंगा बन जनजीवन में
तू असी बनो बनारस की
तू शहर बनो बनारस की ।।

तू नन्दी बन जा भोले की
मैं बेल पत्र रखूं करतल में
तू घंटी बन जा मंदिर की ।
तू शहर बनो बनारस की ।
रमता -जपता फकीर भी
कूंच गलियों से घाटों की
धमक धूप और मंजीर की
तू शहर बनो बनारस की ।

मैं सांझ-सबेरे भटकूं तुझमें
तू शहर बनो बनारस की ।।

रचना :–ड़ाकरुणा शंकर दुबे, सेवानिवृत्त सहायक निदेशक, कार्यक्रम ,आकाशवाणी अल्मोड़ा उत्तराखण्ड , kdubey306@gmail.com

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