गांधीजी को 11 नवंबर, 1947 को कुरूक्षेत्र में पाकिस्तान के झंग और मुल्तान से आए लाखों शरणार्थियों से मिलने जाना था, लेकिन वह नहीं जाए पाए। इस कारण से उन्होंने 12 नवंबर को आकाशवाणी से कुरूक्षेत्र के शरणार्थी कैंपों में रहने वाले विस्थपितों को संबोधित किया।
हाइलाइट्समहात्मा गांधी ने पहली और आखिरी बार रेडियो पर अपना संदेश 12 नवंबर 1947 को प्रसारित किया था
बापू ने आकाशवाणी से कुरूक्षेत्र के शरणार्थी कैंपों में रहने वाले विस्थपितों को संबोधित किया था
उन कैंपों में पाकिस्तान के झंग और मुल्तान से आए लाखों शरणार्थी रहते थे
बापू ने अपने संदेश की शुरुआत ही यह कहकर की कि उन्हें यह माध्यम अच्छा नहीं लगता
विवेक शुक्ला, नई दिल्ली
आप आकाशवाणी भवन के मेन गेट से जैसे ही अंदर की तरफ बढ़ते हैं, दायीं तरफ दीवार पर एक फलक (प्लाक) लगा मिलता है। उस पर लिखा है- 'महात्मा गांधी 12 नवंबर,1947 को आकाशवाणी भवन आए थे। उस दिन उन्होंने देश को संबोधित किया था।' दरअसल वो उस दिन आकाशवाणी के किसी भी केन्द्र में पहली और अंतिम बार आए थे। वो दिन में करीब 3 बजे आकाशवाणी भवन पहुंचे थे। उनके साथ केन्द्रीय स्वास्थय मंत्री राजकुमारी अमृत कौर भी आईं थीं। वे उन दिनों अलबुर्कर रोड (अब 30 जनवरी मार्ग) स्थित बिड़ला हाउस में रहते थे।
शरणार्थियों को किया संबोधित
गांधीजी को 11 नवंबर, 1947 को कुरूक्षेत्र में पाकिस्तान के झंग और मुल्तान से आए लाखों शरणार्थियों से मिलने जाना था। हालांकि उन्हें कांग्रेस की एक अहम बैठक में भाग लेने के कारण अपना कुरूक्षेत्र जाने का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था। इस कारण से उन्होंने 12 नवंबर को आकाशवाणी से कुरूक्षेत्र के शरणार्थी कैंपों में रहने वाले विस्थपितों को संबोधित किया।
बापू को पसंद नहीं था रेडियो
महात्मा गांधी ने अपने दशकों लंबे सार्वजनिक जीवन में लिखने और बोलने का काम खूब किया, लेकिन 12 नवंबर को गांधीजी ने अपनी बात कहने के लिए पहली बार आकाशवाणी का सहारा लिया। गांधीजी ने अपने संदेश का श्रीगणेश यह कहकर किया कि उन्हें यह माध्यम (रेडियो) अच्छा नहीं लगता। इसलिए उन्होंने रेडियो का उपयोग इससे पहले करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। संयोग से उस दिन दिवाली भी थी। उन्होंने शरणार्थियों को दीपोत्सव की बधाई देते हुए कहा, 'आप लोगों के कष्ट शीघ्र ही दूर हो जाएंगे। आप सब धैर्य से काम लें। मुझे मालूम है कि आपके सामने एक बड़ी विपत्ति आई हुई है।'
बापू ने यह भी कहा कि दुखियों के साथ दुख उठाना और उनके दुखों को दूर करना ही उनके जीवन का काम रहा है। इसलिए गांधी जी को दूर बैठकर रेडियो पर भाषण देकर, अपनों के दुख में शामिल होना ठीक नहीं लगा था। उन्होंने इस माध्यम में यह कमी देखी थी।
बापू ने दी थी दिवाली की बधाई
संपूर्ण गांधी वांग्मय के लगभग 100 खंड उनके लेखन, उद्बोधन और चिंतन की गहराई के उदाहरण हैं। गांधीजी जो लिखते या बोलते थे, वह कितनी तेजी से पूरे भारत में फैल जाता था और उसका किस-किस पर कैसा-कैसा असर होता था, इसे भी हम सब अच्छी तरह जानते हैं। माना जा सकता है कि बापू ने 12 नवंबर 1947 को लिखने और बोलने के दो सशक्त माध्यमों के अलावा एक तीसरे माध्यम का पहली बार उपयोग किया था और वह था आकाशवाणी से प्रसारण। कहते हैं कि आकाशवाणी से अपनी बात रखने के बाद वो जाते वक्त यहां के कर्मियों को दिवाली की बधाई देकर निकले।
प्रख्यात कॉमेंटेटर जसदेव सिंह बताते थे कि वे जब आकाशवाणी भवन में बापू के यहां आने संबंधी जानकारी देने वाले प्लाक के आगे से गुजरते हैं तो उनके पैर ठिठक जाते हैं। वे कुछ पलों के लिए वहां रुक जाते हैं। उन्हें बापू के आकाशवाणी आने और यहां के स्टाफ से मिलने की जानकारी रेडियो की महान पर्सनैलिटी मेलविलो डिमेलो ने दी थी। मेलविल डिमेलो तब आकाशवाणी में काम कर रहे थे। उन्होंने ही बापू की अंतिम यात्रा का आंखों देखा हाल भी रेडियो से दुनिया को सुनाया था।
12 नवंबर को मनता है लोकसेवा प्रसारण दिवस
बहरहाल, 1997 में गांधीजी के इस ऐतिहासिक प्रसारण के पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में दिल्ली की जन प्रसार नामक संस्था ने इस दिवस को जन प्रसारण दिवस की तरह मनाना प्रारंभ किया। इसके बाद आकाशवाणी ने भी इस दिन के महत्व को स्वीकार किया। अब इस दिन को लोक सेवा प्रसारण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
द्वारा अग्रेषित :- श्री. झावेंद्र कुमार ध्रूव