हिमाचल के लोक कलाकार: आकाशवाणी शिमला से दो दशक से बज रहे दौलतराम सारस्वत के लोकगीत


महासुवीं पहाड़ी के लोकगायक दौलतराम सारस्वत के लोकगीत आकाशवाणी शिमला से पिछले दो दशकों से बज रहे हैं। रेडियो पर उनके 'राणिये परागुए' और 'रेहड़ी लागा जुब्बड़ी दा' जैसे गीतों की आज भी धूम है। सारस्वत अस्वस्थ होने के कारण वर्तमान में लोकगायन नहीं कर पा रहे हैं। फिर भी उन्होंने जो पुराना लोकगायन किया, उससे उन्हें संतोष है। सारस्वत का कहना है कि उन्हें पारंपरिक लोकगायकी से की जा रही छेड़खानी सहन नहीं हो रही है। मौजूदा समय का लोकगायन पुरानी गायन शैली को खो चुका है। यह अच्छा नहीं है। 60 वर्षीय दौलतराम सारस्वत मूल रूप से जिला शिमला की ठियोग तहसील की कमाह पंचायत के पलाना गांव के निवासी हैं। उन्होंने लोकगायन की शिक्षा अपने पिता पंडित देवी दत्त से ली थी। पंडित देवी दत्त पारंपरिक लोकगाथा 'रांझा मियां' के गायन के लिए मशहूर थे। घंटों गाई जाने वाली इस लोकगाथा के कुछ अंशों का गायन दौलतराम सारस्वत ने भी उनसे सीखा।

दौलत राम सारस्वत ने नब्बे के दशक के शुरू में आकाशवाणी शिमला से करीब 15 लोकगीतों को गाया। तबसे लेकर अब तक 'धारा री गीत', 'कृषिजगत कार्यक्रम' या अन्य कार्यक्रमों में बजाए जाते हैं। दौलतराम सारस्वत ने इसके लिए आकाशवाणी शिमला का भी आभार व्यक्त किया कि 'राणिये परागुए' और 'रेहली लागा जुब्बड़ी दा' लोकगीतों को रेडियो से बार-बार बजाया जाता रहा है। सारस्वत नब्बे के दशक में ही कई ऑडियो एलबम भी निकाल चुके हैं।

उनका कहना है कि आज जो ये सोशल मीडिया का दौर है, यह लोकगायन के लिए तो अच्छा है, मगर जिस तरह से लोकगीतों से छेड़खानी की जा रही है और ठेठ लोकगायन को जिस तरह से नहीं किया जा रहा है, यह लोक संस्कृति के लिए घातक है। सारस्वत ने कहा कि सोशल मीडिया की इस नई क्रांति के बावजूद कई लोकगायक अच्छा गायन कर रहे हैं। इसके लिए वह उन्हें बधाई देते हैं।

श्रेय और स्त्रोत :https://www.amarujala.com/shimla/bashindey/himachal-folk-singer-daulatram-saraswat-is-singing-for-two-decades-in-all-india-radio-shimla

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