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उत्तर भारत के लोकप्रिय भक्त कवि कबीर दास का एक प्रसिद्ध दोहा है- "मेरो मन अनत कहां सुख पावै,जैसे उड़ि जहाज को पंछी ,पुनि जहाज पर आवै।"यह दोहा आकाशवाणी के पुरोधा श्री सुशील राबर्ट बैनर्जी की रंगमंच के अपने मौलिक घर में सुखद वापसी हो जाने से एक बार फिर चरितार्थ हो गई है !आकाशवाणी और कर्मचारी प्रशिक्षण संस्थान(कार्यक्रम)में लम्बी पारी खेलने के बाद मूलतः रंगकर्म से जुड़े श्री सुशील राबर्ट बैनर्जी की एक बार फिर से रंगमंच पर सुखद वापसी हो गई है।आज फिल्मों में कार्यरत अनेक प्रतिष्ठित थियेटर आर्टिस्टों के बैच में एन.एस.डी.से रंगकर्म की डिग्री लेकर उन्होंने आजीविका के लिए आकाशवाणी का चयन किया था और उस दौरान उन्होंने अनेक केन्द्रों पर रहकर एक से एक बढ़िया रेडियो ड्रामे भी तैयार किये थे।आकाशवाणी लखनऊ में वे केन्द्र निदेशक/उप महानिदेशक (कार्यक्रम)पद पर दि.3-11-2009 से31-08-3012तक कार्यरत रहे और यही से रिटायर हो गये थे।
कल लखनऊ के भारतेंदु नाटक अकादमी में मंचित नाटक "संझा "के मुख्य पात्र के रुप में उन्होंने जीवंत अभिनय करके दर्शकों को अपने अभिनय से मंत्रमुग्ध कर दिया ।कथाकार डा.किरण सिंह की थर्ड जेंडर पर लिखी कहानी पर आधारित इस नाटक का निर्देशन प्रदीप घोष ने किया ।
ब्लॉग लेखक ने प्रसार भारती परिवार की ओर से उनको रिटायरमेंट के छह साल बाद उनकी रंगमंचीय सक्रियता पर मुबारकबाद दिया है और आशा व्यक्त किया है कि उनकी ऐसी सक्रियता आगे भी बनी रहेगी।
स्त्रोत-दैनिक जागरण(लखनऊ)
ब्लॉग रिपोर्ट-प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ।मोबाइल-9839229128ईमेल;

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