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शहर की शास्त्रीय गायिका और संगीतकार पंडित कृष्णराव मुजुमदार की पुत्री तथा शिष्या कल्पना झोकरकर और वायलिन वादक कमल कामले को आकाशवाणी महानिदेशालय, नई दिल्ली ने टॉप ग्रेड दी है। गायन और वादन के क्षेत्र में दोनों ही कलाकारों ने सांगीतिक परिदृश्य में अपनी पुख्ता पहचान बनाई है। कल्पना झोकरकर देश के कई प्रतिष्ठित संगीत समारोह में शास्त्रीय और उपशास्त्रीय गायन कर चुकी हैं और कई सम्मानों ने नवाज़ी गई है। शास्त्रीय गायिका कल्पना झोकरकर बताती हैं कि पुणे में एक कार्यक्रम में मेरे गायन की रिकॉर्डिंग की गई। यह रिकॉर्डिंग जब अपनी पत्नी वत्सला जोशी के ज़रिए किराना घराने के दिग्गज गायक पंडित भीमसेन जोशी ने सुनी। जब उन्हें पता लगा कि मैं पंडित कृष्णराव मजुमदार की पुत्री हूं तो उन्होंने अपने पीए से मुझे फोन लगवाया। पीए ने कहा कि आप 9 दिसंबर को फ्री हैं क्या? मैंने कहा कि नहीं, मैं तो इस दिन पुणे में सवाई गंधर्व संगीत समारोह सुनने जा रही हूं। पीए ने जवाब दिया कि आप सुनने नहीं, गायन करने के लिए आ रही हैं। पंडित भीमसेन जोशी चाहते हैं कि आप इस समारोह में गायन करें। मैं चकित थी और यह मेरे जीवन का सबसे मधुर और रोमांचक क्षण था। यह बात सन् 1998 की है। पंडितजी ने मेरा एक-सवा घंटे गायन सुना और बाद में कहा कि आपके गले में आपके पिता के गले की तमाम खूबियां हैं और मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। और जब उनकी पत्नी वत्सला जोशी का निधन हो गया तो उनकी स्मृति स्थापित किया गया पहला संगीत सम्मान पंडित भीमसेन जोशी ने मुझे सन् 2005 में दिया। मेरे जीवन का यह सबसे बड़ा अवॉर्ड है। अपने पिता के बारे में कल्पना झोकरकर बताती हैं कि मेरे पिता ने अपने गुरु उस्ताद रज़बअली खां की दुर्लभ बंदिशें सिखाईं जो अब कहीं नहीं गाई जाती। उनकी उड़ान की तानें और बल-पेंच सिखाए। इसमें राग अडाना की एक बंदिश तुम मोहे चित्त से बिसारी मैंने मुंबई में एक समारोह में गाई और लोगों ने खासी पसंद की। मैं अपने पिता की स्मृति में हर साल पंडित मामा साहब मजुमदार स्मृति संगीत समारोह करती हूं। 

जब पंडित रविशंकर ने मुझे स्टेज पर आकर गले लगाया 

वायलिन वादक कमल कामले ने संगीत की तालीम पिता छोटेलाल कामले से ली। इसके बाद जगदीशप्रसाद वैद्य और मोईनुद्दीन खां से संगीत सीखा। वे कहते हैं कि मैंने चार तारों के वायलिन में खरज के लिए एक तार और जोड़कर अपनी वादन शैली बनाई। इसमें सारंगी अंग और गायकी अंग से मैं वादन करता हूं। मैं वह दिन नहीं भूलता जब सन् 1985-86 में मैं इंदौर के सांघी मुक्ताकाश मंच पर वायलिन किया। तब मेरे सामने विश्वविख्यात सितारवादक पंडित रविशंकर और उस्ताद अल्लारखां बैठे थे। मेरे वादन सुनने के बाद पंडित रविशंकर स्टेज पर आए मुझे गले लगा लिया। वह पल मेरी ज़िंदगी का सबसे यादगार पल है। मुझे वायलिन पर खासतौर पर सुबह का राग बैरागी भैरव, शाम का राग मारवा और रात का राग जोग तथा मालकौंस बजाना बहुत पसंद है। यह मेरा सौभाग्य है कि मैंने जर्मनी, इटली, फ्रांस और कनाडा में भी वायलिन वादन किया और देश के कई कार्यक्रमों पंडित छन्नूलाल मिश्र, पंडित अजय पोहनकर, वाणी जयराम, अनूप जलोटा और पिनाज मसानी के साथ वा वायलिन वादन किया है।

द्वारा योगदान :- श्री. झावेंद्र कुमार ध्रुव, jhavendra.dhruw@gmail.com

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