विपिन पटवा : आकाशवाणी गोरखपुर के कलाकार की ऊंची छलांग ! आकाशवाणी गोरखपुर की एक युवा संगीत प्रतिभा विपिन पटवा का नाम इन दिनों बालीवुड मेें चमक रहा है। विपिन के संगीत पर दलेर मेंहदी, कुमार शानू, अतिफ असलम, अरिजीत सिंह, श्रेया घोषाल, सोनू निगम, सुनिधि चौहान सरीखे फिल्मी दुनिया के शीर्ष पार्श्व गायक न केवल अपना सुर दे रहे हैं, बल्कि उनकी सांगीतिक प्रतिभा के कायल भी हो रहे हैं। आंकड़ों की बात करें तो विपिन अब तक आधा दर्जन से अधिक फिल्मों में संगीत देने के साथ पार्श्व गायन भी कर चुके हैं । उनकी आधा दर्जन से अधिक फिल्में पाइप लाइन में हैं। राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म 'हम चार' भी उनमें से एक है। महज 35 वर्ष की उम्र में विपिन की यह उपलब्धि न केवल गोरखपुर, बल्कि समूचे पूर्वांचल का मान फिल्मी दुनिया में बढ़ा रही है।फिल्म संगीत की बुलंदियों की ओर तेजी से बढ़ रहे विपिन का फिल्मी सफर संघर्षों की प्रेरणादायी दास्तान है। मूल रूप से दोहरीघाट,गोरखपुर के रहने वाले विपिन पटवा की सांगीतिक तालीम की शुरुआत गांव के ही संगीत गुरु सत्यनारायण प्रसाद से हुई। माध्यमिक शिक्षा पूरी हुई तो माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विपिन संगीत की उच्च तालीम के लिए गोरखपुर आ गए और विश्वविद्यालय में दाखिला लेकर गुरु श्री सांवरे लाल पांडेय(प्रख्यात तबलावादक) के शागिर्द बन गए। गोरखपुर में रिहाइश के दौरान वह आकाशवाणी से जुड़े और बी-हाई ग्रेड के कंपोजर का दर्जा हासिल कर लिया। हौसला बढ़ा तो विपिन ने दिल्ली की राह पकड़ ली और वहां दिल्ली विश्वविद्यालय से संगीत में एम.ए. और एम.फिल की उपाधि हासिल की। बाद में प्रयाग संगीत समिति से संगीत प्रभाकर और भातखंडे विश्वविद्यालय लखनऊ से विशारद की उपाधि हासिल कर अकादमिक रूप से खुद को काफी मजबूत कर लिया तो शुभचिंतकों ने विपिन को मुंबई जाने की सलाह दी।
बकौल विपिन 2010 की शुरुआत में वह मुंबई पहुंच गए। उसके बाद शुरू हुआ उनका फिल्मी दुनिया का संघर्ष। संगीतकारों के दरवाजे-दरवाजे पहुंचकर अपनी सांगीतिक हुनर के प्रदर्शन का सिलसिला एक-दो महीने नहीं, बल्कि पूरे डेढ़ वर्ष चला। संघर्ष रंग लाया और 2012 बीतते-बीतते उन्हें जूनियर राजन की फिल्म 'लव यू सोनियो' में संगीत निर्देशन का अवसर मिल गया। फिर तो सिलसिला बढ़ चला। एक के बाद एक 'लाल रंग', 'मैं और चार्ल्स', 'बालीवुड की डायरी', 'लाली की शादी', 'दासदेव', 'काशी' जैसी फिल्मों में संगीत निर्देशन से बालीवुड में उनका सिक्का जम गया। विपिन बताते हैं कि संघर्ष के दौरान उन्हें कई बार निराशा ने घेरा, लेकिन बड़े भाई नवीन पटवा के हौसले ने उन्हें अवसाद में जाने से रोका, नतीजा सामने है।
बनारस के घाट ने भी सिखाया संगीत !
विपिन बताते हैं कि गोरखपुर में संगीत की तालीम के दौरान उन्हें जानकारी मिली कि बनारस के घाट पर हर रोज संगीत की महफिल सजती है। फिर तो उसे देखने और उससे कुछ सीखने की ललक उनमें जग गई। इसके लिए वह कई बार घर से भाग-भाग कर बनारस गए और रात-रात तक जागकर वहां होने वाले कंसर्ट को देखा। विपिन के मुताबिक घाट से मिली तालीम आज भी उनके बहुत काम आती है।बालीवुड में पूर्वांचल के समृद्ध लोक संगीत की हनक का न होना विपिन को हमेशा अखरता है। उनकी ख्वाहिश है कि वहां लोक संगीत को मजबूत स्थान मिले, जिसके वह हकदार है। इससे न केवल लोक संगीत देश भर में गूंजेगा, बल्कि इससे जुड़े कलाकारों को आगे बढऩे का मौका भी मिलेगा। वे कहते हैं वह बहुत जल्द गोरखपुर आएंगे और यहां संगीत विशेषज्ञों के साथ बैठकर इसके लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार करेंगे। इसके पीछे उनकी यह भी मंशा है कि पूर्वांचल के कलाकारों को आगे बढऩे के लिए दर-दर की ठोकरें न खानी पड़ें।
प्रसार भारती तथा आकाशवाणी गोरखपुर परिवार उनके क़ामयाबी की शुभकामनाएं व्यक्त कर रहा है।
स्त्रोत-दैनिक जागरण
ब्लॉग रिपोर्ट-प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ,darshgrandpa@gmail.com